पटना। पटना समाहरणालय स्थित जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में
कर्मचारियों की ड्यूटी सुबह दस के बजाए 12 बजे के बाद ही शुरू होती है।
अधिकारी भी 12 बजे के बाद ही नजर आते हैं। इसके पहले इस दफ्तर में
इक्का-दुक्का कर्मचारी व कुछ कनीय अधिकारी पान खाते या खैनी मसलते मिल
जाएंगे।
सोमवार को जब कार्यालय में मौजूद कर्मचारियों से बड़े अधिकारियों के बारे में पूछा तो जवाब मिला साहब आरडीडी के यहां बैठक में हैं। छोटे साहब डीएम ऑफिस बैठक में शामिल होने गए हैं। जब डीएम कार्यालय के अधिकारियों ने बताया कि यहां कोई बैठक है ही नहीं। आरडीडी कार्यालय में जब बड़े साहब से मिलने की कोशिश की गई तो बताया गया कि आज कोई बैठक नहीं है।
दफ्तर के बाबू काम कराने आए शिक्षकों को चश्मा नीचे कर देखते हैं। शिक्षक इशारा समझ जाते हैं और चाय-पानी के लिए नीचे चलने का आग्रह करते हैं। पहले शिक्षक और बाद में बाबू चाय दुकान पर पहुंच जाते हैं। चाय की चुसकी के बीच डील तय होती है, जो शिक्षक इसमें माहिर नहीं हैं, उन्हें महीनों दफ्तर का चक्कर लगाना पड़ता है।
दृश्य-1, समय 10 बजे
समाहरणालय परिसर में जिला परिषद भवन के ऊपरी माले पर जिला शिक्षा अधिकारी का कार्यालय है। दस बजे से दफ्तर में काम शुरू हो जाना है। लेकिन, पूरा दफ्तर खाली है। मात्र दो कर्मचारी मौजूद हैं। दो आदेश पालक सफाई करने में जुटे हैं। कुछ फरियादी अपने काम की स्थिति जानने के लिए दफ्तर के बाहर खडे़ बाबूओं का इंतजार कर रहे हैं। जिला शिक्षा अधिकारी मेधो दास का कक्ष बंद है। उनके बगल में योजना अधिकारी का कक्ष भी बंद है। उनके बगल वाला कक्ष खुला है, लेकिन अधिकारी नदारद हैं। डीपीओ स्थापना का कक्ष भी अन्य से जुदा नहीं है। स्थापना कार्यालय में कर्मचारी मौजूद हैं।
दृश्य-2, समय-11 बजे
अब कर्मचारी आने लगे हैं। कुछ बाबू दफ्तर आते ही काम में जुट गए। लेकिन, अधिकांश कर्मचारी गप्प हांकने में लगे हैं। फरियादी उनके आगे-पीछे हाथ जोड़ अपने फाइल को साहब तक बढ़ाने का अनुरोध कर रहे हैं। लेकिन, बाबू इससे खुद को अंजान दिखाने में जुटे हैं। डीपीओ लेखा शाखा के साथ ही एक महिला पीओ अधिकारी अपने कक्ष में बैठी हैं। सारे फरियादी उनके ही कक्ष में बड़े साहब के आने के बारे में पूछ रहे हैं। दफ्तर के एक कोने में दो-तीन पुलिस अधिकारी सादी वर्दी में किसी इंटर कॉलेज के घोटाले की जानकारी ले रहे हैं।
दृश्य-3, समय-12 बजे
जिला शिक्षा अधिकारी का कक्ष अभी भी बंद है। बगल में डीपीओ माध्यमिक शिक्षा अशोक कुमार का कक्ष भी बंद है। पूछने पर पता चला कि जिला शिक्षा अधिकारी आरडीडी के साथ बैठक में हैं। जब आरडीडी कार्यालय में तहकीकात की गई तो पता चला कि डीईओ साहब वहां नहीं है। सामने में डीपीओ स्थापना का कक्ष है। एक बजे तक यहां भी ताला ही लगा हुआ है। उनके दफ्तर में मात्र आठ कर्मचारी मौजूद है। एक कर्मचारी बकायदा टेबल को बेड बना गहरी नींद ले रहा है।
बारिश में भीग रहा शिक्षकों का भविष्य
जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में फाइलों को रखने की कोई व्यवस्था नहीं है। बारिश के पानी में फाइल बर्बाद हो रहे हैं। पुराने बने रैक पर फाइलों का अंबार लगा है। सुरक्षा के नाम पर यहां कोई व्यवस्था नहीं है।
कंप्यूटरीकृत नहीं है कार्यालय
जिला शिक्षा अधिकारी का कार्यालय कंप्यूटरीकरण से कोसो दूर है। यहां लगभग 115 कर्मचारी कार्यरत हैं। आज तक इस दफ्तर में कंप्यूटर नहीं लगाए गए हैं। शिक्षक का डाटा उपलब्ध कराने के लिए बाबू महीनों का समय लेते हैं। बाकी सब बाबूओं को जुबानी है। किस स्कूल के घोटाले की फाइल कब गायब हो जाएगी कहना मुश्किल है।
शिक्षक लगा रहे दौड़
मनोरमा गर्ल्स हाई स्कूल से 31 जुलाई को सेवानिवृत्त हुई शिक्षिका इला प्रसाद बो¨रग रोड में रहती हैं। वह सेवानिवृत्ति लाभ व पेंशन की फाइल को स्कूल के प्राचार्य से अग्रसारित कराकर डीईओ के दफ्तर में भेजवा चुकी हैं। आज वह अपने फाइल की स्थिति जानने दफ्तर पहुंची थीं। कई बार वह दफ्तर आई, लेकिन साहब से मुलाकात नहीं हो पा रही है।
मनेर निवासी दिनदयाल सिंह 2008 में ही गोना हाई स्कूल से रिटायर हुए थे। उनके पेंशन निर्धारण के लिए सर्विस बुक की आवश्यकता है। आठ साल से वह पेंशन फिक्स कराने के लिए विभाग का चक्कर लगा रहे हैं। उनका सर्विस बुक ही गायब बताया जा रहा है। उनका कहना है कि बाबू को खुश नहीं कर सकते इस कारण काम लटका है।
नालंदा जिले के राजगीर थाना के बराकर निवासी मो. जमाल खान 30 सितंबर 2012 को ही आरएस हाई स्कूल सदीसोपुर से सेवानिवृत्त हुए थे। पिछले चार साल से वह पेंशन के लिए जिला शिक्षा अधिकारी के दफ्तर का चक्कर लगा रहे हैं। एक साल तक उन्हें औपबंधिक पेंशन दिया गया, जिसे तीन साल पहले ही बंद कर दिया गया। वे बीमारी व भूखमरी से जूझ रहे हैं। राजगीर से यहां आने में हर बार 300 रुपये खर्च हो जाता है। महीना में पांच-छह मर्तबा भी आते हैं तो 2000 रुपये खर्च हो जाता है।
कोट
जिला शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्यालय होने के बावजूद यहां जगह की काफी कमी है। फाइलों को रखने की कोई व्यवस्था नहीं है। फाइलें चोरी हो जाती हैं। नए परिसर के लिए केवल आश्वासन ही मिल रहा है। चार-चार जगह दफ्तर चल रहे हैं। हमेशा कर्मचारियों व अधिकारियों को इन दफ्तरों में जाना पड़ता है। कर्मचारियों के विलंब से आने का मामला संज्ञान में है। ऐसे कर्मियों से जबाव-तलब किया जाएगा। सोमवार को उच्च न्यायालय में गए हुए थे, इस कारण कार्यालय देर से पहुंचे।
मेधो दास, जिला शिक्षा पदाधिकारी
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सोमवार को जब कार्यालय में मौजूद कर्मचारियों से बड़े अधिकारियों के बारे में पूछा तो जवाब मिला साहब आरडीडी के यहां बैठक में हैं। छोटे साहब डीएम ऑफिस बैठक में शामिल होने गए हैं। जब डीएम कार्यालय के अधिकारियों ने बताया कि यहां कोई बैठक है ही नहीं। आरडीडी कार्यालय में जब बड़े साहब से मिलने की कोशिश की गई तो बताया गया कि आज कोई बैठक नहीं है।
दफ्तर के बाबू काम कराने आए शिक्षकों को चश्मा नीचे कर देखते हैं। शिक्षक इशारा समझ जाते हैं और चाय-पानी के लिए नीचे चलने का आग्रह करते हैं। पहले शिक्षक और बाद में बाबू चाय दुकान पर पहुंच जाते हैं। चाय की चुसकी के बीच डील तय होती है, जो शिक्षक इसमें माहिर नहीं हैं, उन्हें महीनों दफ्तर का चक्कर लगाना पड़ता है।
दृश्य-1, समय 10 बजे
समाहरणालय परिसर में जिला परिषद भवन के ऊपरी माले पर जिला शिक्षा अधिकारी का कार्यालय है। दस बजे से दफ्तर में काम शुरू हो जाना है। लेकिन, पूरा दफ्तर खाली है। मात्र दो कर्मचारी मौजूद हैं। दो आदेश पालक सफाई करने में जुटे हैं। कुछ फरियादी अपने काम की स्थिति जानने के लिए दफ्तर के बाहर खडे़ बाबूओं का इंतजार कर रहे हैं। जिला शिक्षा अधिकारी मेधो दास का कक्ष बंद है। उनके बगल में योजना अधिकारी का कक्ष भी बंद है। उनके बगल वाला कक्ष खुला है, लेकिन अधिकारी नदारद हैं। डीपीओ स्थापना का कक्ष भी अन्य से जुदा नहीं है। स्थापना कार्यालय में कर्मचारी मौजूद हैं।
दृश्य-2, समय-11 बजे
अब कर्मचारी आने लगे हैं। कुछ बाबू दफ्तर आते ही काम में जुट गए। लेकिन, अधिकांश कर्मचारी गप्प हांकने में लगे हैं। फरियादी उनके आगे-पीछे हाथ जोड़ अपने फाइल को साहब तक बढ़ाने का अनुरोध कर रहे हैं। लेकिन, बाबू इससे खुद को अंजान दिखाने में जुटे हैं। डीपीओ लेखा शाखा के साथ ही एक महिला पीओ अधिकारी अपने कक्ष में बैठी हैं। सारे फरियादी उनके ही कक्ष में बड़े साहब के आने के बारे में पूछ रहे हैं। दफ्तर के एक कोने में दो-तीन पुलिस अधिकारी सादी वर्दी में किसी इंटर कॉलेज के घोटाले की जानकारी ले रहे हैं।
दृश्य-3, समय-12 बजे
जिला शिक्षा अधिकारी का कक्ष अभी भी बंद है। बगल में डीपीओ माध्यमिक शिक्षा अशोक कुमार का कक्ष भी बंद है। पूछने पर पता चला कि जिला शिक्षा अधिकारी आरडीडी के साथ बैठक में हैं। जब आरडीडी कार्यालय में तहकीकात की गई तो पता चला कि डीईओ साहब वहां नहीं है। सामने में डीपीओ स्थापना का कक्ष है। एक बजे तक यहां भी ताला ही लगा हुआ है। उनके दफ्तर में मात्र आठ कर्मचारी मौजूद है। एक कर्मचारी बकायदा टेबल को बेड बना गहरी नींद ले रहा है।
बारिश में भीग रहा शिक्षकों का भविष्य
जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में फाइलों को रखने की कोई व्यवस्था नहीं है। बारिश के पानी में फाइल बर्बाद हो रहे हैं। पुराने बने रैक पर फाइलों का अंबार लगा है। सुरक्षा के नाम पर यहां कोई व्यवस्था नहीं है।
कंप्यूटरीकृत नहीं है कार्यालय
जिला शिक्षा अधिकारी का कार्यालय कंप्यूटरीकरण से कोसो दूर है। यहां लगभग 115 कर्मचारी कार्यरत हैं। आज तक इस दफ्तर में कंप्यूटर नहीं लगाए गए हैं। शिक्षक का डाटा उपलब्ध कराने के लिए बाबू महीनों का समय लेते हैं। बाकी सब बाबूओं को जुबानी है। किस स्कूल के घोटाले की फाइल कब गायब हो जाएगी कहना मुश्किल है।
शिक्षक लगा रहे दौड़
मनोरमा गर्ल्स हाई स्कूल से 31 जुलाई को सेवानिवृत्त हुई शिक्षिका इला प्रसाद बो¨रग रोड में रहती हैं। वह सेवानिवृत्ति लाभ व पेंशन की फाइल को स्कूल के प्राचार्य से अग्रसारित कराकर डीईओ के दफ्तर में भेजवा चुकी हैं। आज वह अपने फाइल की स्थिति जानने दफ्तर पहुंची थीं। कई बार वह दफ्तर आई, लेकिन साहब से मुलाकात नहीं हो पा रही है।
मनेर निवासी दिनदयाल सिंह 2008 में ही गोना हाई स्कूल से रिटायर हुए थे। उनके पेंशन निर्धारण के लिए सर्विस बुक की आवश्यकता है। आठ साल से वह पेंशन फिक्स कराने के लिए विभाग का चक्कर लगा रहे हैं। उनका सर्विस बुक ही गायब बताया जा रहा है। उनका कहना है कि बाबू को खुश नहीं कर सकते इस कारण काम लटका है।
नालंदा जिले के राजगीर थाना के बराकर निवासी मो. जमाल खान 30 सितंबर 2012 को ही आरएस हाई स्कूल सदीसोपुर से सेवानिवृत्त हुए थे। पिछले चार साल से वह पेंशन के लिए जिला शिक्षा अधिकारी के दफ्तर का चक्कर लगा रहे हैं। एक साल तक उन्हें औपबंधिक पेंशन दिया गया, जिसे तीन साल पहले ही बंद कर दिया गया। वे बीमारी व भूखमरी से जूझ रहे हैं। राजगीर से यहां आने में हर बार 300 रुपये खर्च हो जाता है। महीना में पांच-छह मर्तबा भी आते हैं तो 2000 रुपये खर्च हो जाता है।
कोट
जिला शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्यालय होने के बावजूद यहां जगह की काफी कमी है। फाइलों को रखने की कोई व्यवस्था नहीं है। फाइलें चोरी हो जाती हैं। नए परिसर के लिए केवल आश्वासन ही मिल रहा है। चार-चार जगह दफ्तर चल रहे हैं। हमेशा कर्मचारियों व अधिकारियों को इन दफ्तरों में जाना पड़ता है। कर्मचारियों के विलंब से आने का मामला संज्ञान में है। ऐसे कर्मियों से जबाव-तलब किया जाएगा। सोमवार को उच्च न्यायालय में गए हुए थे, इस कारण कार्यालय देर से पहुंचे।
मेधो दास, जिला शिक्षा पदाधिकारी
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