पटना [नवीन कुमार मिश्र]। महिलाओं यानी आधी आबादी का जिक्र छिड़ते ही अनायास
अबला की प्रतिमूर्ति उभरती है, मगर ये अबला महाबलियों को डरा रही हैं। महाबली वे जो
सत्ता पर काबिज हैं, सत्ता की दौड़ में हैं। वोटरों को घरों से निकाल कर बूथों तक
पहुंचाना राजनीतिक दलों के लिए चुनौती रही है, मगर महिलाएं जब बूथों पर पहुंचीं तो लोगों
का गणित गड़बड़ा रहा है। अब ये फोर्स हो गई हैं।
वोट बैंक हैं। राजग हो महागठबंधन या दूसरे दल, दावे तो सब कर रहे हैं कि महिलाओं की जमात उनके लिए निकली है, लेकिन हकीकत में भीतर ही भीतर सब डरे हुए हैं। ये महिलाएं किनके लिए निकली हैं। किसका हिसाब बिगाड़ेंगी।
बिहार के चुनाव में राजग और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है। ऐसे में ज्यादातर सीटों पर हार-जीत का अंतर बहुत कम मतों से होगा। जाहिर है थोड़े से मतों का भी बड़ा महत्व है। ऐसे में आधी आबादी की पांच-साढ़े पांच फीसद की बढ़त लोगों को सोचने पर मजबूर कर रही है। ज्यादा मतदान किसी का भी ग्राफ चढ़ा और गिरा सकता है।
पिछले चुनाव में हुई थी वृद्धि
2010 में महिलाओं के मतदान के प्रतिशत में खासा इजाफा हुआ था। उस समय इसका श्रेय नीतीश कुमार के नेतृत्व में सुशासन, विकास के काम, कानून-व्यवस्था में सुधार आदि को गया।
महिलाओं की धमक
बिहार में दो चरणों में 243 में से 81 सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है। पहले चरण में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में साढ़े पांच फीसद अधिक मतदान किया तो दूसरे चरण में भी पांच फीसद अधिक। वास्तव में यह आंकड़ा या गैप और बड़ा है, क्योंकि ताजा आंकड़ों के अनुसार बिहार में प्रति हजार पुरुष की तुलना में महिलाओं की संख्या 918 है और मतदाता सूची में 848। इसके बावजूद मतदान में पुरुषों की तुलना में ज्यादा प्रतिशत कुछ कहता है।
अपना-अपना भरोसा
महिलाओं को स्थानीय निकायों के चुनाव, शिक्षा समितियों, शिक्षक नियोजन में 50 फीसद आरक्षण, साइकिल जैसी योजनाओं का श्रेय नीतीश कुमार के शासन को जाता है। स्वयं सहायता समूह भी एक ताकत है। वैसे जीतन राम मांझी ने भी कुछ समय के मुख्यमंत्रित्व काल में महिलाओं को अराजपत्रित सरकारी नौकरियों में 35 फीसद आरक्षण की घोषणा की थी।
साइकिल-पोशाक-छात्रवृत्ति योजना में 75 फीसद उपस्थिति की अनिवार्यता घटा दी थी। भाजपा से आने वाले पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी एक कदम आगे बढ़कर स्कूटी और पेट्रोल की बात भी कर रहे हैं। नीतीश कुमार का काम सामने है तो नरेंद्र मोदी से उम्मीदों का पुलिंदा भी।
सबसे बड़ा डर
अपराध किसी के साथ हो, अंतत: झेलना महिलाओं को पड़ता है। पति-बेटा मारा जाए, जेल जाए तो अंतत: घर चलाने वाली महिलाओं को ही झेलना पड़ता है। विधि-व्यवस्था में सुधार से महिलाओं में नीतीश कुमार के प्रति बड़ा भरोसा पैदा हुआ था।
लालू प्रसाद का खौफनाक चेहरा दिखाते हुए जंगल राज के खात्मे और न्याय के साथ विकास के नारे पर राजग सत्ता में आया। आज नीतीश कुमार उसी लालू प्रसाद की पार्टी राजद के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में महिलाओं का भरोसा कायम रखना भी एक चुनौती है। वैसे नीतीश कुमार इस मसले पर कहते रहे हैं कि वे ड्राइविंग सीट पर हैं। किसी को उस मोर्चे पर चिंता करने की जरूरत नहीं।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
वोट बैंक हैं। राजग हो महागठबंधन या दूसरे दल, दावे तो सब कर रहे हैं कि महिलाओं की जमात उनके लिए निकली है, लेकिन हकीकत में भीतर ही भीतर सब डरे हुए हैं। ये महिलाएं किनके लिए निकली हैं। किसका हिसाब बिगाड़ेंगी।
बिहार के चुनाव में राजग और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है। ऐसे में ज्यादातर सीटों पर हार-जीत का अंतर बहुत कम मतों से होगा। जाहिर है थोड़े से मतों का भी बड़ा महत्व है। ऐसे में आधी आबादी की पांच-साढ़े पांच फीसद की बढ़त लोगों को सोचने पर मजबूर कर रही है। ज्यादा मतदान किसी का भी ग्राफ चढ़ा और गिरा सकता है।
पिछले चुनाव में हुई थी वृद्धि
2010 में महिलाओं के मतदान के प्रतिशत में खासा इजाफा हुआ था। उस समय इसका श्रेय नीतीश कुमार के नेतृत्व में सुशासन, विकास के काम, कानून-व्यवस्था में सुधार आदि को गया।
महिलाओं की धमक
बिहार में दो चरणों में 243 में से 81 सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है। पहले चरण में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में साढ़े पांच फीसद अधिक मतदान किया तो दूसरे चरण में भी पांच फीसद अधिक। वास्तव में यह आंकड़ा या गैप और बड़ा है, क्योंकि ताजा आंकड़ों के अनुसार बिहार में प्रति हजार पुरुष की तुलना में महिलाओं की संख्या 918 है और मतदाता सूची में 848। इसके बावजूद मतदान में पुरुषों की तुलना में ज्यादा प्रतिशत कुछ कहता है।
अपना-अपना भरोसा
महिलाओं को स्थानीय निकायों के चुनाव, शिक्षा समितियों, शिक्षक नियोजन में 50 फीसद आरक्षण, साइकिल जैसी योजनाओं का श्रेय नीतीश कुमार के शासन को जाता है। स्वयं सहायता समूह भी एक ताकत है। वैसे जीतन राम मांझी ने भी कुछ समय के मुख्यमंत्रित्व काल में महिलाओं को अराजपत्रित सरकारी नौकरियों में 35 फीसद आरक्षण की घोषणा की थी।
साइकिल-पोशाक-छात्रवृत्ति योजना में 75 फीसद उपस्थिति की अनिवार्यता घटा दी थी। भाजपा से आने वाले पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी एक कदम आगे बढ़कर स्कूटी और पेट्रोल की बात भी कर रहे हैं। नीतीश कुमार का काम सामने है तो नरेंद्र मोदी से उम्मीदों का पुलिंदा भी।
सबसे बड़ा डर
अपराध किसी के साथ हो, अंतत: झेलना महिलाओं को पड़ता है। पति-बेटा मारा जाए, जेल जाए तो अंतत: घर चलाने वाली महिलाओं को ही झेलना पड़ता है। विधि-व्यवस्था में सुधार से महिलाओं में नीतीश कुमार के प्रति बड़ा भरोसा पैदा हुआ था।
लालू प्रसाद का खौफनाक चेहरा दिखाते हुए जंगल राज के खात्मे और न्याय के साथ विकास के नारे पर राजग सत्ता में आया। आज नीतीश कुमार उसी लालू प्रसाद की पार्टी राजद के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में महिलाओं का भरोसा कायम रखना भी एक चुनौती है। वैसे नीतीश कुमार इस मसले पर कहते रहे हैं कि वे ड्राइविंग सीट पर हैं। किसी को उस मोर्चे पर चिंता करने की जरूरत नहीं।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC