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बिहार चुनावः आधी आबादी ने उड़ाए दिग्गजों के होश

नवीन कुमार मिश्र, पटना। पहले और दूसरे चरण के मतदान में महिलाओं की बढ़ी भागीदारी ने दिग्गज सियासतदांओं के होश उड़ा दिए हैं। महिलाओं की मतदान के प्रति जागरूकता ने सियासी समीकरणों को गड़बड़ा दिया है। मतदान के बाद अब सियासी पंडित ये गुणा-भाग करने में लगे हैं कि महिलाओं के वोट से किसे हो रहा फायदा और किसे नुकसान।
राजग हो महागठबंधन या दूसरे दल, दावे तो सब कर रहे हैं कि महिलाओं की जमात उनके लिए निकली है, लेकिन हकीकत में भीतर ही भीतर सब डरे हुए हैं। बिहार के चुनाव में राजग और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है। ऐसे में ज्यादातर सीटों पर हार-जीत का अंतर बहुत कम मतों से होने के आसार हैं।
जाहिर है इसमें थोड़े से मतों का भी बड़ा महत्व है। ऐसे में आधी आबादी की पांच-साढ़े पांच फीसद की बढ़त लोगों को सोचने पर मजबूर कर रही है। ज्यादा मतदान किसी का भी ग्राफ चढ़ा और गिरा सकता है। महिलाओं की धमक बिहार में दो चरणों में 243 में से 81 सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है। पहले चरण में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में साढ़े पांच फीसद अधिक मतदान किया तो दूसरे चरण में भी पांच फीसद अधिक। वास्तव में यह आंकड़ा या गैप और बड़ा है, क्योंकि ताजा आंकड़ों के अनुसार बिहार में प्रति हजार पुरुष की तुलना में महिलाओं की संख्या 918 है और मतदाता सूची में 848। इसके बावजूद मतदान में पुरुषों की तुलना में ज्यादा प्रतिशत कुछ कहता है।
अपना-अपना भरोसा महिलाओं को स्थानीय निकायों के चुनाव, शिक्षा समितियों, शिक्षक नियोजन में 50 फीसद आरक्षण, साइकिल जैसी योजनाओं का श्रेय नीतीश कुमार के शासन को जाता है। स्वयं सहायता समूह भी एक ताकत है। वैसे जीतन राम मांझी ने भी कुछ समय के मुख्यमंत्रित्व काल में महिलाओं को अराजपत्रित सरकारी नौकरियों में 35 फीसद आरक्षण की घोषणा की थी।
साइकिल-पोशाक-छात्रवृत्ति योजना में 75 फीसद उपस्थिति की अनिवार्यता घटा दी थी। पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी एक कदम आगे बढ़कर स्कूटी और पेट्रोल की बात भी कर रहे हैं। सबसे बड़ा डर राज्य में विधि-व्यवस्था में सुधार से महिलाओं में नीतीश कुमार के प्रति बड़ा भरोसा पैदा हुआ था। लेकिन, अब नीतीश उन्हीं लालू के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में महिलाओं का नीतीश के प्रति भरोसा कायम रखना भी एक चुनौती है।


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