नहीं निकलती है ई-मासिक पत्रिका
मैनेज हो जाता है आरटीआई का आवेदन
राकेश सिन्हा, जमुई :जिले में गरीबी उन्मूलन या फिर विकास की योजनाओं में पारदर्शिता के लिए कोई ई-मासिक पत्रिका नहीं निकलती है बल्कि आरटीआई ही पारदर्शिता का पैमाना है। भले ही डिजिटल इंडिया की बात हो रही है पर सरकारी योजनाओं में लूट-खसोट और गरीबों का हक उन तक नहीं पहुंचने की कहानी कोई नई नहीं है। जन वितरण व्यवस्था हो या आइसीडीएस या फिर मध्याह्न भोजन। सभी योजनाओं में भ्रष्टाचार कूट-कूटकर भरा है। यह बात किसी से नहीं छिपी है कि झाझा के एक शिक्षक द्वारा छात्रों का पैसा निकालने के मामले में जब बवाल मचा तो जांच हुई और शिक्षक पर प्राथमिकी दर्ज हो गई।
भ्रष्टाचार के मामले में दो दिन पूर्व जनता उच्च विद्यालय के अड़सार के एक शिक्षक को बर्खास्त कर दिया गया। फर्जी प्रमाण-पत्र पर शिक्षक की नौकरी पाने वालों में हड़कंप मच गया है और तेरह शिक्षकों ने न्यायालय के डर से अपना त्याग पत्र दे दिया। अब आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि जिले में भ्रष्टाचार किस कदर फैला है। इन सब के लिए आखिर कौन है जिम्मेदार? पारदर्शिता के नाम पर जिले के पोर्टल पर योजना से संबंधित जानकारी और प्रगति प्रतिवेदन डाल दिया जाता है। सरकार की योजनाओं की जानकारी होडिंग और दीवार लेखन के माध्यम से दी जाती है पर इससे पारदर्शिता कितना आएगा यह सबको पता है। 24 घंटे पूर्व जिलाधिकारी ने उर्वरक के हेरफेर पर खुद निगरानी करने की बात कही। जगह-जगह होडिंग लगाकर दुकानों के नाम और उर्वरक के स्टॉक लिखे जाने का निर्देश दिया गया। आखिर इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? स्पष्ट है कि पारदर्शिता नाम की कोई चीज ठीक नहीं है। विकास योजनाओं की बात करें तो ऊपर से लेकर नीचे तक लोग भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। हर योजनाओं में अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों का कमीशन बंधा हुआ है। यदि आरटीआई का कोई कार्यकर्ता पारदर्शिता लाने के लिए जानकारी मांगता है तो या तो उसे मैनेज कर लिया जाता है या फिर झूठे मुकदमे में फंसाने या अन्य प्रकार की धमकी मिलना नई बात नहीं है। कभी-कभी तो सूचना अधिकारी महीनों-महीनों तक जानकारी नहीं देते हैं। जिले का इकलौता उदाहरण सिकन्दरा प्रखंड के ईटासागर पंचायत का है जहां एक आरटीआई कार्यकर्ता शैलेंद्र कुमार ने पंचायत के विकास योजनाओं में फैले भ्रष्टाचार को सामने लाया जिसका नतीजा हुआ कि संबंधित पंचायत का मुखिया सुरेश प्रसाद को जेल जाना पड़ा।
भ्रष्टाचार के मामले में दो दिन पूर्व जनता उच्च विद्यालय के अड़सार के एक शिक्षक को बर्खास्त कर दिया गया। फर्जी प्रमाण-पत्र पर शिक्षक की नौकरी पाने वालों में हड़कंप मच गया है और तेरह शिक्षकों ने न्यायालय के डर से अपना त्याग पत्र दे दिया। अब आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि जिले में भ्रष्टाचार किस कदर फैला है। इन सब के लिए आखिर कौन है जिम्मेदार? पारदर्शिता के नाम पर जिले के पोर्टल पर योजना से संबंधित जानकारी और प्रगति प्रतिवेदन डाल दिया जाता है। सरकार की योजनाओं की जानकारी होडिंग और दीवार लेखन के माध्यम से दी जाती है पर इससे पारदर्शिता कितना आएगा यह सबको पता है। 24 घंटे पूर्व जिलाधिकारी ने उर्वरक के हेरफेर पर खुद निगरानी करने की बात कही। जगह-जगह होडिंग लगाकर दुकानों के नाम और उर्वरक के स्टॉक लिखे जाने का निर्देश दिया गया। आखिर इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? स्पष्ट है कि पारदर्शिता नाम की कोई चीज ठीक नहीं है। विकास योजनाओं की बात करें तो ऊपर से लेकर नीचे तक लोग भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। हर योजनाओं में अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों का कमीशन बंधा हुआ है। यदि आरटीआई का कोई कार्यकर्ता पारदर्शिता लाने के लिए जानकारी मांगता है तो या तो उसे मैनेज कर लिया जाता है या फिर झूठे मुकदमे में फंसाने या अन्य प्रकार की धमकी मिलना नई बात नहीं है। कभी-कभी तो सूचना अधिकारी महीनों-महीनों तक जानकारी नहीं देते हैं। जिले का इकलौता उदाहरण सिकन्दरा प्रखंड के ईटासागर पंचायत का है जहां एक आरटीआई कार्यकर्ता शैलेंद्र कुमार ने पंचायत के विकास योजनाओं में फैले भ्रष्टाचार को सामने लाया जिसका नतीजा हुआ कि संबंधित पंचायत का मुखिया सुरेश प्रसाद को जेल जाना पड़ा।
क्या कहते हैं लोग
राजेश कुमार कहते हैं कि पारदर्शिता के लिए ई-मासिक पत्रिका निकलनी चाहिए जो जिलेवासियों के लिए सुलभ हो। इससे पारदर्शिता पर सवाल नहीं उठेगा।
अश्विनी कुमार कहते हैं कि स्मार्ट सिटी का एक पैमाना पारदर्शिता भी है। जब लूट-खसोट जारी रहेगा तो स्मार्ट सिटी कैसे बनेगा।
आकाश कुमार कहते हैं कि जनहित के लिए चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी आसानी से अगर उपलब्ध हो जाए तो पारदर्शिता लाने में आम जनता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है पर ऐसा नहीं है।
ऋषि कुमार कहते हैं कि जमुई जैसे पिछड़े इलाके में पोर्टल से कितने लोग जुड़े हैं ये सभी जानते हैं। जहां बिजली, पेयजल और सड़क की सुविधा नहीं हो वहां के लोग इंटरनेट पर योजनाओं की जानकारी कैसे ले सकेंगे।
हरिकिशोर कुमार कहते हैं कि योजनाओं की जानकारी पंचायत स्तर पर मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर सारी चीजों की जानकारी सुलभ तरीके से मिले तभी योजनाओं में पारदर्शिता आ सकती है।
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