गोपालगंज। प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षण व्यवस्था को दुरुस्त करने के दिशा में सरकारी स्तर पर भले ही काफी प्रयास किये गये हों, लेकिन धरातल पर तो प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था बेहतर नहीं दिखती है। यह स्थिति सिर्फ प्राथमिक विद्यालयों तक ही सीमित नहीं है। माध्यमिक विद्यालयों में भी वर्ग कक्ष की कमी से लेकर संसाधनों का अभाव एक बड़ी समस्या है।
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पूरे जिले में प्राथमिक विद्यालयों में अव्यवस्था हावी दिखती है। भवन व भूमि के अभाव से लेकर शिक्षकों तक की कमी प्राथमिक शिक्षा की बदहाली का सबसे बड़ा कारण है। लगातार प्रयासों के बाद भी भवन व भूमि के अभाव में तत्काल विद्यालयों को दूसरे विद्यालयों से टैग किया गया है। लेकिन असली समस्या भूमि व भवन की अब भी बनी हुई है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि तमाम व्यवस्था के बाद भी जिला प्रशासन जिले में संचालित करीब दो सौ विद्यालयों को भवन व भूमि उपलब्ध नहीं करा सका है। आज के इस दौर में जब अभिभावकों का रुझान निजी विद्यालयों की ओर अधिक दिख रहा है, प्राथमिक विद्यालयों में बच्चे आज के जमाने में भी जमीन पर बोरा व चट्टी पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करने को विवश हैं। सरकारी विद्यालयों में अव्यवस्था का आलम यह है कि यहां शिक्षकों की कमी के कारण शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है। कभी हड़ताल के नाम पर तो कभी अन्य कार्य से शिक्षण कार्य बाधित होने के कारण अभिभावक भी परेशान दिखते हैं। बावजूद इसके स्थिति में सुधार होता निकट भविष्य में नहीं दिख रहा।
समस्या बनी शिक्षकों की अनुपस्थिति : प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था की बदहाली का एक और बड़ा कारण विद्यालयों में शिक्षकों का समय से नहीं पहुंचना है। प्रशासनिक स्तर पर जब भी दबाव बनाया जाता है कि विद्यालय में शिक्षकों की उपस्थिति व्यवस्था की पोल खुल जाती है। हालत यह है कि शिक्षक प्रशासन के दबाव के बाद भी विद्यालय जाने से कतराते रहे हैं। सरकारी आंकड़ों की मानें तो लगातार कई माह से विद्यालय से अनुपस्थित रहने वाले शिक्षकों की संख्या पांच दर्जन से अधिक है। इनके विरुद्ध कार्रवाई के आदेश के बाद भी कार्रवाई की रफ्तार सुस्त है।
प्रायोगिक उपकरणों का अभाव : हाई स्कूलों में प्रायोगिक कक्षाओं का संचालन बगैर प्रायोगिक उपकरण के किया जाता है। राशि उपलब्ध जाने के बाद भी जिले के 40 प्रतिशत हाई स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए आजतक प्रायोगिक उपकरणों की खरीद नहीं की जा सकी है।
खुले आसमान में शिक्षा : प्राथमिक विद्यालयों के साथ ही हाई स्कूलों में वर्ग कक्ष की कमी के कारण छात्र-छात्राओं को खुले आसमान के नीचे बैठकर शिक्षा ग्रहण करने को विवश होना पड़ता है। वर्ग कक्ष की कमी का आलम यह है कि एक कमरे में बैठकर दो-दो सौ छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने को विवश होना पड़ता है। आलम यह है कि विद्यालयों में अतिरिक्त वर्ग कक्ष के निर्माण के लिए राशि आवंटित किये जाने के बाद भी ढाई हजार से अधिक अतिरिक्त वर्ग कक्ष का निर्माण कार्य अधूरा है।
हाई स्कूलों में शिक्षकों की कमी : माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है। हालत यह कि इनकी कमी के कारण संस्कृत के शिक्षक को हिन्दी तथा विज्ञान के शिक्षक को सामाजिक विज्ञान की कक्षाओं में जाना पड़ता है। शिक्षकों के नियोजन की प्रक्रिया निर्धारित अवधि में पूर्व नहीं होने के कारण यह समस्या और बढ़ गयी है।
न खेल का मैदान न शारीरिक शिक्षक : हाई स्कूलों में शारीरिक शिक्षकों की तैनाती की गयी। स्कूल के सिड्यूल में एक घंटी शारीरिक शिक्षा की होती है। लेकिन आलम यह है कि जिले के कई स्कूलों में शारीरिक शिक्षक का पद लंबे सयम से रिक्त है। इतना ही नहीं किसी भी हाई स्कूल में ढंग का खेल मैदान तक नहीं है। हां खेल मैदान के विकास के नाम पर वर्ष 2002 से 20005 के बीच आयी लाखों रुपये की हेराफरी जरुर की जा चुकी है।
कहां है गतिरोध
* स्कूलों में शिक्षकों का अभाव।
* वर्ग कक्ष की भारी कमी।
* खुले आसमान में पढ़ने से नहीं मिली मुक्ति।
* हाई स्कूलों में प्रायोगिक संसाधन का अभाव।
* हाई स्कूलों में कई विषयों के शिक्षकों का पद रिक्त होना।
* शारीरिक शिक्षकों का पद रिक्त होना।
* शिक्षकों की समय से विद्यालय में उपस्थिति नहीं।
कैसे होगा समस्या का समाधान
* अतिरिक्त वर्ग कक्ष का हो निर्माण।
* अनुपस्थित रहने वाले शिक्षकों पर हो कड़ी कार्रवाई।
* हाई स्कूल में रिक्त पड़े शिक्षकों के पद को भरा जाय।
* बने ढंग के खेल मैदान, हो शारीरिक शिक्षक की तैनाती।
* हाई स्कूलों में हो प्रायोगिक कक्षा का संचालन।
* मानक के अनुसार हो स्कूलों में शिक्षक की तैनाती।
* स्कूलों में हो बिजली की व्यवस्था, मिले संसाधन।
* प्रारंभिक विद्यालयों में दूर हो शिक्षक की कमी।
* बेहतर तरीके से हो एमडीएम का संचालन।
कहते हैं अधिकारी
शिक्षकों की कमी की समस्या दूर करने के लिए इनका नियोजन किया जा रहा है। जहां भी शिक्षक अनुपस्थित मिलते हैं, उनपर विधि सम्मत कार्रवाई की जाती है।
अशोक कुमार
जिला शिक्षा पदाधिकारी।
कहते हैं लोग
अनूप तिवारी कहते हैं कि आज के दौर में निजी विद्यालयों की तुलना में सरकारी स्कूलों में संसाधन का अभाव है। शिक्षा विभाग को इस स्थिति में सुधार के लिए काफी प्रयास करने की जरुरत है। ताकि सरकारी विद्यालयों के लोगों में आकर्षण बढ़े।
शाहिद इमाम कहते हैं कि आज भी सरकारी स्कूलों में बच्चे बोरा चट्टी पर बैठने को विवश होते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए उचित प्रयास की जरुरत है। स्कूलों में वर्ग कक्ष का अभाव भी एक बड़ी समस्या है। इसका समाधान जरुरी है।
रितेश कुमार कहते हैं कि सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित की जाय। विद्यालयों में शैक्षणिक माहौल बनाने में शिक्षक भी अपनी ओर से प्रयास करें। शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कड़े कदम भी उठाने की जरुरत है।
अरविंद प्रसाद कहते हैं कि हाई स्कूलों में प्रायोगिक कक्षाओं का संचालन आजतक शुरु नहीं हो सका है। समय के साथ शारीरिक शिक्षा की घंटी भी गायब हो गयी है। इस स्थिति में सुधार की जरुरत है। इसके लिए शिक्षा विभाग को विद्यालय के साथ मिलकर संयुक्त रूप से प्रयास करने की जरुरत है।
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