राज्य बाल संरक्षण आयोग की दो महिला सदस्य कैमूर जिले में कस्तूरबा
विद्यालय व आंगनबाड़ी केंद्रों की जांच करने के उद्देश्य से पहुंची। सर्व
प्रथम समाहरणालय में पहुंच कर बाल सरंक्षण पदाधिकारी संतोष चौधरी से
मुलाकात की। तत्पश्चात वे आंगनबाड़ी केंद्र के जांच के लिए निकली।
लेकिन उस समय आंगनबाड़ी केंद्रों के बंद हो जाने से वो हर प्रखंड में सरकार की ओर से संचालित कसूतुरबा विद्यालय की जांच के लिए निकली। इसी क्रम में टीम के सदस्य भभुआ के सीवों में स्थित कस्तूरबा विद्यालय की जांच की। जिसमें कई खामियां देखने को मिली।
जांच में सभी सामान तितर बितर दिखाई दिए। वहीं बिस्तर आदि की साफ- सफाई
न होना आदि कई समस्या दिखा। कस्तूरबा विद्यालय में आरओ भी खराब पाया गया।
इसके अलावा शिक्षिका के रूम में कूलर, फ्रीज आदि भी मिला। शिक्षिका का रूम व
वार्डेन का आफिस के अलावा सभी रूम गंदा पाया गया। वहीं एक ही परिजन के साथ
में पांच से अधिक बच्चियों को भेजा हुआ भी रजिस्टर के माध्यम से जानकारी
मिली। बड़ी बात है कि बच्चियों की स्वास्थ्य जांच के लिए पुरूष चिकित्सक आते
है। ऐसे में कोई अनहोनी हो जाए तो इसको नकारा नहीं जा सकता। जबकि आगंतुक
पंजी में भी सही से नहीं संधारण किया जाता है। बीते 19 अगस्त को एक पुरूष
चिकित्सक गए थे। जिन्होंने अपना नाम व मोबाइल नंबर दूसरे का लिखा हुआ है।
ऐसे में वो व्यक्ति कौन है यह भी सवाल खड़ा होता है। टीम के सदस्यों ने अब
से सिर्फ महिला चिकित्सक से इलाज कराने का निर्देश दिया। इसके अलावा टीम
भगवानपुर के कस्तूरबा आवासीय विद्यालय की जांच की। जहां साफ- सफाई देखने को
मिली। वहां पर स्थित कमरे में बच्चियों के कपड़ा व अन्य सामानों का रख रखाव
सही पाया गया। लेकिन उस आवासीय विद्यालय में मात्र आगंतुक पंजी है। वहां
भी चिकित्सक के लिए पंजी नहीं बनाया गया है। वहां भी वार्डेन कल्पना कुमारी
ने काफी देर तक पूछताछ की। इसके अलावा बनाए जा रहे नाश्ता की भी जांच की।
टीम के सदस्यों ने दोनों ही आवासीय विद्यालय की हर बिदू से जांच पड़ताल की।
उसके बाद रिपोर्ट लिखा गया। उसके बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भी टीम
ने जाकर जायजा लिया। जिसमें पता चला कि वहां से अधिकतर बच्चों को इलाज के
लिए रेफर कर दिया जाता है। क्योंकि वहां पर आइसीएनसीयू की सुविधा नहीं है।
इसके अलावा कुपोषित बच्चों का इलाज कैसे होता है,वार्ड में क्या सुविधा है,
आदि का जांच भी टीम ने किया। उसके बाद जिला अतिथि गृह में बैठकर रिपोर्ट
तैयार की गई। उसके बाद मंगलवार की देर रात को ही टीम वापस हो गई। टीम के
सदस्य उषा देवी व प्रमिला देवी ने बताया कि रिपोर्ट विभाग को सौंपा जाएगा।
कुछ जगह खामियां मिली है। चेत नहीं रहा है विभाग-
मुजफ्फरपुर बालिका गृहकांड व कुदरा के अल्पावास गृह के मामले सामने आने के बाद भी शिक्षा विभाग ऐसे मामलों को लेकर गंभीर नहीं दिख रहा है। जबकि सभी प्रखंड में कस्तूरबा आवासीय विद्यालय संचालित होते है। भभुआ प्रखंड में स्थित सीवों में देखा गया तो पिछले एक साल में कोई जांच नहीं हुआ है। अगस्त 2018 में राज्य के सचिव के निर्देश पर भभुआ बीईओ जांच में गई थी।उसके बाद से कोई जांच नहीं हुआ। ऐसे में वार्डेन द्वारा क्या खाना दिया जाता है या बच्चियां किस हाल में है इस की जांच नियमित होनी चाहिए। सबसे बड़ी बात है कि परिजन अपने बच्चे को आवासीय विद्यालय में पढ़ने के लिए भेज तो देते हैं लेकिन आवासीय विद्यालय में उनके साथ कैसा व्यवहार होता है इसकी जांच विभाग की ओर से हर 15 दिन पर होते रहनी चाहिए।
लेकिन उस समय आंगनबाड़ी केंद्रों के बंद हो जाने से वो हर प्रखंड में सरकार की ओर से संचालित कसूतुरबा विद्यालय की जांच के लिए निकली। इसी क्रम में टीम के सदस्य भभुआ के सीवों में स्थित कस्तूरबा विद्यालय की जांच की। जिसमें कई खामियां देखने को मिली।
मुजफ्फरपुर बालिका गृहकांड व कुदरा के अल्पावास गृह के मामले सामने आने के बाद भी शिक्षा विभाग ऐसे मामलों को लेकर गंभीर नहीं दिख रहा है। जबकि सभी प्रखंड में कस्तूरबा आवासीय विद्यालय संचालित होते है। भभुआ प्रखंड में स्थित सीवों में देखा गया तो पिछले एक साल में कोई जांच नहीं हुआ है। अगस्त 2018 में राज्य के सचिव के निर्देश पर भभुआ बीईओ जांच में गई थी।उसके बाद से कोई जांच नहीं हुआ। ऐसे में वार्डेन द्वारा क्या खाना दिया जाता है या बच्चियां किस हाल में है इस की जांच नियमित होनी चाहिए। सबसे बड़ी बात है कि परिजन अपने बच्चे को आवासीय विद्यालय में पढ़ने के लिए भेज तो देते हैं लेकिन आवासीय विद्यालय में उनके साथ कैसा व्यवहार होता है इसकी जांच विभाग की ओर से हर 15 दिन पर होते रहनी चाहिए।