सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने फिर एक बार दोहराया कि बिहार के 3.56 लाख नियोजित शिक्षकों को समान वेतन नहीं दिया जा सकता है। समान वेतन देने में आर्थिक समस्या है। मंगलवार को 21 वें दिन भी सुनवाई अधूरी ही रही। बुधवार को राज्य सरकार अपना पक्ष रखेगी। न्यायाधीश एएम सप्रे और यूयू ललित की कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
केंद्र नहीं बढ़ा सकती राशि
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केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि फिर कहा कि समान वेतन राज्य सरकार अपने प्रयास से दे सकती है। इसके लिए केंद्र सरकार अतिरिक्त राशि नहीं देगी।
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सर्व शिक्षा अभियान मद की राशि राज्यों की जनसंख्या और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर दी जाती है, न कि वेतन में बढ़ोतरी के लिए। केंद्र अपने कोटा से राशि नहीं बढ़ा सकती है।
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कोर्ट ने कहा-बिहार को शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के तहत अलग से कितनी राशि दी है? इस पर अटार्नी जनरल ने कहा कि संयुक्त सचिव से बात कर बताएंगे।
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कैसे सफल होगी योजना?
शिक्षक संघ की ओर सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चला रही है, लेकिन इस अभियान की सफलता की जिम्मेदारी जिन शिक्षकों पर है, उन्हें ही उचित वेतन नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में इस प्रकार की योजना कैसे सफल होगी?
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केंद्र और राज्य सरकार की ओर से पिछले दिनों भी यह तर्क दिया कि नियमित शिक्षकों की बहाली बीपीएससी के माध्यम से हुई है। नियोजित शिक्षकों की बहाली पंचायती राज संस्था से ठेके पर हुई है। इसलिए इन्हें समान वेतन नहीं दिया जा सकता है।
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समान वेतन देने की स्थिति में नहीं सरकार
सरकार के वकील ने कहा कि समान वेतन देने की आर्थिक स्थिति नहीं है। पहले भी केंद्र सरकार की ओर से एटार्नी जनरल वेणु गोपाल ने कहा था समान वेतन देने में 1.36 लाख करोड़ का अतिरिक्त भार केंद्र सरकार को वहन करना संभव नहीं है।
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राज्य सरकार के वकील ने भी कहा था कि आर्थिक स्थिति नहीं कि 3.56 लाख नियोजित शिक्षकों को पुराने शिक्षकों के बराबर समान वेतन दे सके। समान काम समान वेतन देने पर सरकार को सालाना 28 हजार करोड़ का बोझ पड़ेगा। एरियर देने की स्थिति में 52 हजार करोड़ भार पड़ेगा।