सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार को 3.55 लाख नियोजित शिक्षकों को ‘समान काम समान वेतन’ मामले में कोई राहत नहीं दी है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस आर. एली. नरीमन की पीठ ने
गुरुवार को इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा, “शिक्षकों को पानी पिलाने वाले चपरासी को 36 हजार रुपये, तो फिर छात्रों का भविष्य बनाने वाले शिक्षकों को मात्र 26 हजार रुपये ही वेतन क्यों?” कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि इसे कैसे लागू किया जा सकता है, यह केंद्र और राज्य सरकार मिलकर तय करें। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 27 मार्च को तय की है।
सरकार की ओर से सीनियर वकील मुकुल रोहतगी और राकेश द्विवेदी ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा। दूसरी तरफ, विभिन्न शिक्षक संघों की ओर से वरिष्ठ अधिक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, विजय हंसारिया और रंजित कुमार ने इस मसले पर बहस की। बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 29 जनवरी को पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने उस वक्त राज्य सरकार से नियोजित शिक्षकों को दिए जा सकने वाले वेतन की जानकारी मांगी थी। कोर्ट ने कहा था कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी इस बारे में जानकारी दे। बता दें कि कमेटी में मुख्य सचिव के अलावा जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव अरुण कुमार सिंह और सामान्य प्रशासन विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी शामिल हैं। इससे पहले कमेटी ने विभिन्न शिक्षक और संबंधित लोगों से इस बारे में प्रस्ताव लिया था।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले सरकार के वकील ने कोर्ट से कहा था कि समान काम के बदले समान वेतन देना संभव नहीं है। उन्होंने कहा था कि नियोजित शिक्षकों के वेतन में केंद्र सरकार का हिस्सा 60% जबकि राज्य सरकार का 40% है। लेकिन पिछले कुछ सालों से केंद्र ने राज्य को अपेक्षित सहयोग नहीं दिया है। इस पर कोर्ट ने तर्क दिया कि शिक्षा का अधिकार और सर्व शिक्षा अभियान लागू नहीं होता, तो क्या राज्य सरकार बच्चों को शिक्षा नहीं देती। सरकार ने कोर्ट को बताया था कि समान वेतन देने के लिए प्रति वर्ष शिषकों के वेतन पर 28 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा। अगर इसमें एरियर जोड़ दिया जाए तो यह राशि 52 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है।
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