Advertisement

सरकारी नौकरी vs राजनीति

सरकारी नौकरी vs राजनीति
नमस्कार मित्रों

मधुकर उपाध्याय एक सरकारी सेवा में थे।मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार के सबसे बड़े पुत्र थे।माता-पिता के साथ भाई का परिवार भी साथ था,जो बेरोजगार था।परिवार में कुल 14 व्यक्ति थे।शाम को घर लौटते तो बेरोजगारों की अधिकता देखकर प्रसन्न नहीं होते थे।वे हमेशा सोचते कि सभी को कुछ न कुछ रोजगार मिलता।सभी अयोग्य ,काहिल और निठल्ले थे।
उन्होनें ने देखा कि एकमात्र सरकारी नौकरी से कल्याण होनेवाला नहीं है।विधानसभा चुनाव आने वाला था।कठोर निर्णय लिया और नौकरी से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ा।समीकरण और चुनावी हवा ने साथ दिया।चुनाव भारी मतों से जीत गए,महत्वाकांक्षा ने cm की कुर्सी तक पहुंचा दिया।
मधु बाबू अब अपने कुनबे के सभी काहिलों,अयोग्यों और निठल्लों को उच्च पदों पर आसीन करा कर खूब जनता के माल को लूटा और अपना साम्राज्य स्थापित किया।
अतः हम देखते हैं कि अपने लिए सरकारी नौकरी की व्यवस्था तो थोड़ा सा चालाक व्यक्ति आसानी से कर लेता है,लेकिन समूचे कुनबों के लिए व्यवस्था सिर्फ कुछ राजनीतिज्ञ ही कर पाते हैं।
धन्यवाद,
धीरेन्द्र प्रताप
एक शिक्षक,
TSUNSS.

UPTET news

Blogger templates