मित्रों ! जैसा कि आप विदित हैं कि आज शिक्षा मंत्री महोदय ने शिक्षक और स्नातक क्षेत्रों से निर्वाचित विधान पार्षदों के साथ बैठक आयोजित की थी । बैठक के निर्णयों को जानने की उत्सुकता स्वाभाविक है ।
आप सोंच रहे होंगे कि आखिर विधान पार्षदों के साथ मंत्रीजी की वार्ता का क्या रहस्य है? हमने अपने स्तर से इसकी पड़ताल की है । हमारी भी पैनी नजर इस बैठक पर थी । आप सभी को अवगत कराना चाहता हूँ कि इस बैठक के पीछे एक रहस्य है । वह यह है कि 28 जुलाई से विधान मंडल का सत्र शुरु होने वाला है । सरकार इस बात से अवगत है कि मैट्रिक और इंटरमीडिएट के खराब रिजल्ट और शिक्षकों की समस्याओं को लेकर विपक्ष का हंगामा तय है । चूंकि शिक्षा से संबंधित मुद्दे पर इन्हीं स्नातक और शिक्षक विधान पार्षदों का तेवर हमलावर होता है , इसलिए सत्र के पहले हीं विभागीय मंत्रीजी सचेत होने की तैयारी कर रहे हैं । अंदरखाने के सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार सरकार के मुखिया भी चौपट व्यवस्था को लेकर विभागीय मंत्री से खिन्न हैं । परीक्षा परिणामों के बाद मुखिया ने विभागीय मंत्री और अधिकारियों को तलब किया था तो मंत्रीजी हीं सरकार के निशाने पर रहे थे । इसी बीच आगामी मॉनसून सत्र ने धमक दी तो अपनी किरकिरी की पूरजोर गुंजाइश की आशंका ने यह बैठक बुलवा दी ।
एक और बात बताना जरूरी है कि शिक्षा विभाग ने इस सत्र के लिए अपनी खूब अक्लमंदी वाली चाल चली । आप जानते होंगे कि विधान मंडल में विधायक / विधान पार्षदों द्वारा शिक्षा संबंधी पूछे गए सवालों का विभागीय मंत्री द्वारा प्रत्येक सप्ताह शुक्रवार को हीं जवाब दिया जाता है । जरा चालबाजी देखिए । सदन शुक्रवार को शुरू हो रहा है और गुरुवार को समाप्त । सदन जिस दिन शुरू होता है उस दिन औपचारिक रस्मअदायगी के सिवा कुछ नहीं होता है । अर्थात सत्र की अवधि इस प्रकार तय किया गया है कि सत्र के दौरान एक भी शुक्रवार न पड़े । न शुक्रवार आएगा और न हीं शिक्षा पर चर्चा होगी । यह सरकार की होशियारी नहीं तो और क्या है? लेकिन मित्रों ! हमलोगों ने इसका तोड़ खोजने की कोशिश की । हमने माननीय विधान पार्षद नवल भैया से इस पर बात की तो एक रास्ता निकला ।उन्होंने बताया कि यदि किसी मुद्दे पर सदन मे गैर सरकारी संकल्प लाया जाए तो इस पर सरकार को बहस कराना पड़ता है और उसके पक्ष - विपक्ष में सदन में हीं वोटिंग भी करानी पड़ती है ।और इसी नियम को देखते हुए हमलोगों के अनुरोध पर उन्होंने खटाई में पड़ी सेवा शर्त पर गैर सरकारी संकल्प दे दिया है ।अब सरकार फिर जाल में फंस गई ।अब तो इस पर बहस और वोटिंग दोनों होना तय है ।कुछ हो या न हो शिक्षा विभाग की किरकिरी होना तो तय हीं है ।इसी कारण विधान पार्षदों को बुलाकर उन्हें Normal करने की कवायद के हिस्सा के रूप में आज यह बैठक हुई है ।
निर्णय तो कुछ होना था नहीं तो बस मंत्रीजी ने आश्वासन दे दिया कि 28 जुलाई से पहले नियोजित शिक्षकों के सभी संघों से वार्ता की जाएगी।प्रत्येक महीने वेतन भुगतान सुनिश्चित हो इसके लिए वित्त मंत्री से बात कर समाधान निकालेंगे। बताया गया कि बार - बार ट्रेजरी लाॅक के कारण वेतन भुगतान बाधित होता है । इसका कारण यह है कि वेतन मद में जारी किए गए अरबों रुपये के हिसाब में यदि पांच हजार रुपये की भी उपयोगिता लंबित रह जाती है तो ट्रेजरी लाॅक हो जाता है । मंत्री महोदय ने आश्वासन दिया कि उपयोगिता जमा करने के लिए वित्तीय वर्ष समाप्ति के एक वर्ष बाद तक के लिए समय की छूट देने की व्यवस्था वित्त विभाग से करायी जाएगी । नियोजित शिक्षकों को भी प्रधानाध्यापक बनायेंगे । स्कूलों में विषयवार शिक्षक की व्यवस्था करेंगे । आप अवगत हैं कि हमारी याचिका के आलोक मे माननीय उच्च न्यायालय ने सरकार से इन मुद्दों पर जवाब तलब कर रखा है । वहीं स्नातक ग्रेड में प्रोन्नति देने संबंधी हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना के खिलाफ हमने अवमाननावाद भी दायर कर दिया है । चाहे - अनचाहे कुछ तो करना ही होगा । वेतन विसंगति और सातवें वेतन आयोग के अनुरूप वेतन देने के मामले पर माननीय मंत्री ने कहा कि यह उनकी क्षमता से बाहर की बात है इसलिए इस मसले पर प्रस्ताव तैयार कर कैबिनेट और मुख्यमंत्री को भेजेंगे । कुल मिलाकर वही पुरानी बात हुई जो वर्षों से हो रही है ।
बहरहाल वार्ता का खेल जारी है । उच्च न्यायालय में भी सेवाशर्त के मामले में सरकार को जवाब देना है इसलिए वार्ता और इसके परिणाम सेवाशर्त के रूप में 15 अगस्त या 5 सितंबर के मौके पर ढोल - नगाड़े के साथ सरकारी घोषणा की उम्मीद बनाये रखें ।
सधन्यवाद आपका
- वंशीधर ब्रजवासी -
आप सोंच रहे होंगे कि आखिर विधान पार्षदों के साथ मंत्रीजी की वार्ता का क्या रहस्य है? हमने अपने स्तर से इसकी पड़ताल की है । हमारी भी पैनी नजर इस बैठक पर थी । आप सभी को अवगत कराना चाहता हूँ कि इस बैठक के पीछे एक रहस्य है । वह यह है कि 28 जुलाई से विधान मंडल का सत्र शुरु होने वाला है । सरकार इस बात से अवगत है कि मैट्रिक और इंटरमीडिएट के खराब रिजल्ट और शिक्षकों की समस्याओं को लेकर विपक्ष का हंगामा तय है । चूंकि शिक्षा से संबंधित मुद्दे पर इन्हीं स्नातक और शिक्षक विधान पार्षदों का तेवर हमलावर होता है , इसलिए सत्र के पहले हीं विभागीय मंत्रीजी सचेत होने की तैयारी कर रहे हैं । अंदरखाने के सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार सरकार के मुखिया भी चौपट व्यवस्था को लेकर विभागीय मंत्री से खिन्न हैं । परीक्षा परिणामों के बाद मुखिया ने विभागीय मंत्री और अधिकारियों को तलब किया था तो मंत्रीजी हीं सरकार के निशाने पर रहे थे । इसी बीच आगामी मॉनसून सत्र ने धमक दी तो अपनी किरकिरी की पूरजोर गुंजाइश की आशंका ने यह बैठक बुलवा दी ।
एक और बात बताना जरूरी है कि शिक्षा विभाग ने इस सत्र के लिए अपनी खूब अक्लमंदी वाली चाल चली । आप जानते होंगे कि विधान मंडल में विधायक / विधान पार्षदों द्वारा शिक्षा संबंधी पूछे गए सवालों का विभागीय मंत्री द्वारा प्रत्येक सप्ताह शुक्रवार को हीं जवाब दिया जाता है । जरा चालबाजी देखिए । सदन शुक्रवार को शुरू हो रहा है और गुरुवार को समाप्त । सदन जिस दिन शुरू होता है उस दिन औपचारिक रस्मअदायगी के सिवा कुछ नहीं होता है । अर्थात सत्र की अवधि इस प्रकार तय किया गया है कि सत्र के दौरान एक भी शुक्रवार न पड़े । न शुक्रवार आएगा और न हीं शिक्षा पर चर्चा होगी । यह सरकार की होशियारी नहीं तो और क्या है? लेकिन मित्रों ! हमलोगों ने इसका तोड़ खोजने की कोशिश की । हमने माननीय विधान पार्षद नवल भैया से इस पर बात की तो एक रास्ता निकला ।उन्होंने बताया कि यदि किसी मुद्दे पर सदन मे गैर सरकारी संकल्प लाया जाए तो इस पर सरकार को बहस कराना पड़ता है और उसके पक्ष - विपक्ष में सदन में हीं वोटिंग भी करानी पड़ती है ।और इसी नियम को देखते हुए हमलोगों के अनुरोध पर उन्होंने खटाई में पड़ी सेवा शर्त पर गैर सरकारी संकल्प दे दिया है ।अब सरकार फिर जाल में फंस गई ।अब तो इस पर बहस और वोटिंग दोनों होना तय है ।कुछ हो या न हो शिक्षा विभाग की किरकिरी होना तो तय हीं है ।इसी कारण विधान पार्षदों को बुलाकर उन्हें Normal करने की कवायद के हिस्सा के रूप में आज यह बैठक हुई है ।
निर्णय तो कुछ होना था नहीं तो बस मंत्रीजी ने आश्वासन दे दिया कि 28 जुलाई से पहले नियोजित शिक्षकों के सभी संघों से वार्ता की जाएगी।प्रत्येक महीने वेतन भुगतान सुनिश्चित हो इसके लिए वित्त मंत्री से बात कर समाधान निकालेंगे। बताया गया कि बार - बार ट्रेजरी लाॅक के कारण वेतन भुगतान बाधित होता है । इसका कारण यह है कि वेतन मद में जारी किए गए अरबों रुपये के हिसाब में यदि पांच हजार रुपये की भी उपयोगिता लंबित रह जाती है तो ट्रेजरी लाॅक हो जाता है । मंत्री महोदय ने आश्वासन दिया कि उपयोगिता जमा करने के लिए वित्तीय वर्ष समाप्ति के एक वर्ष बाद तक के लिए समय की छूट देने की व्यवस्था वित्त विभाग से करायी जाएगी । नियोजित शिक्षकों को भी प्रधानाध्यापक बनायेंगे । स्कूलों में विषयवार शिक्षक की व्यवस्था करेंगे । आप अवगत हैं कि हमारी याचिका के आलोक मे माननीय उच्च न्यायालय ने सरकार से इन मुद्दों पर जवाब तलब कर रखा है । वहीं स्नातक ग्रेड में प्रोन्नति देने संबंधी हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना के खिलाफ हमने अवमाननावाद भी दायर कर दिया है । चाहे - अनचाहे कुछ तो करना ही होगा । वेतन विसंगति और सातवें वेतन आयोग के अनुरूप वेतन देने के मामले पर माननीय मंत्री ने कहा कि यह उनकी क्षमता से बाहर की बात है इसलिए इस मसले पर प्रस्ताव तैयार कर कैबिनेट और मुख्यमंत्री को भेजेंगे । कुल मिलाकर वही पुरानी बात हुई जो वर्षों से हो रही है ।
बहरहाल वार्ता का खेल जारी है । उच्च न्यायालय में भी सेवाशर्त के मामले में सरकार को जवाब देना है इसलिए वार्ता और इसके परिणाम सेवाशर्त के रूप में 15 अगस्त या 5 सितंबर के मौके पर ढोल - नगाड़े के साथ सरकारी घोषणा की उम्मीद बनाये रखें ।
सधन्यवाद आपका
- वंशीधर ब्रजवासी -