बगहा । शास्त्रों के मुताबिक गुरु का स्थान सबसे उपर माना गया है।
शिक्षक देश के भविष्य निर्माता होते हैं। उनकी गोद में खेल रहा 'बचपन' कल
सफलता का नया सवेरा लेकर आएगा। लेकिन वर्तमान व्यवस्था में शिक्षक तंगहाली
के दौर से गुजर रहे हैं। सरकारी स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों का भविष्य बना
रहे शिक्षक सरकार की उदासीनता का शिकार हैं।
सिस्टम में रहकर बच्चों को शिक्षा देने वाले कई शिक्षकों के समक्ष आर्थिक समस्या मुंह बाए खड़ी है। नियोजित शिक्षकों की स्थिति सबसे बदतर है। उल्लेखनीय है कि कई बार शिक्षकों के समक्ष ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है कि उनके लिए घर चलाना मुश्किल हो जाता है। छह छह महीने तक वेतन नहीं मिलता। कर्ज से डूबे शिक्षक आखिर कैसे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे पाएंगे। सरकार की उदासीनता की वजह से विशेष रूप से नियोजित शिक्षक आर्थिक परेशानी झेलते हैं। कुछ शिक्षकों से बातचीत कर इस बिंदु पर उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई।
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घनश्याम कुमार मिश्र बताते हैं कि शिक्षकों की समस्या पहली तो यह है कि सभी शिक्षकों के वेतनमान अलग-अलग है। समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं मिल रहा है। दूसरा वेतन समय से नहीं मिल रहा है जिससे दैनिक जीवन में परेशानी हो रही है।
राजीव रेनी बताते हैं कि महंगाई के इस युग में शिक्षकों का वेतन काफी कम है। सो उन्हें अपना दैनिक खर्च पूरा करने के लिए और भी काम करना पड़ता है। वहीं स-समय वेतन न मिलने से शिक्षकों की परेशानी बढ़ जाती है।
संजय प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि शिक्षा विभाग द्वारा भले ही शिक्षा के गुणवत्ता को सुधारने के लिए तमाम नए नियम बनाए गए हैं। परंतु वास्तविक समस्या जिससे शिक्षक ग्रसित हैं अधिकारियों का ध्यान नहीं गया। काम करने के बाद भी आवश्यकता समय पर पूरी न हो। तो भला शिक्षा में अभीरुचि कैसे रह सकती है।
शिक्षक बृजकिशोर मिश्र का कहना है कि विद्यालय में मध्याह्न भोजन व स्कूल निर्माण कार्य को जब तक शिक्षकों से अलग नहीं किया जाएगा। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना करना बेकार है। शिक्षा समिति के गठन से विद्यालयों का सुधार नहीं अपितु आए दिन अनावश्यक विवाद खड़ा हो रहा है।
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सिस्टम में रहकर बच्चों को शिक्षा देने वाले कई शिक्षकों के समक्ष आर्थिक समस्या मुंह बाए खड़ी है। नियोजित शिक्षकों की स्थिति सबसे बदतर है। उल्लेखनीय है कि कई बार शिक्षकों के समक्ष ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है कि उनके लिए घर चलाना मुश्किल हो जाता है। छह छह महीने तक वेतन नहीं मिलता। कर्ज से डूबे शिक्षक आखिर कैसे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे पाएंगे। सरकार की उदासीनता की वजह से विशेष रूप से नियोजित शिक्षक आर्थिक परेशानी झेलते हैं। कुछ शिक्षकों से बातचीत कर इस बिंदु पर उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई।
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घनश्याम कुमार मिश्र बताते हैं कि शिक्षकों की समस्या पहली तो यह है कि सभी शिक्षकों के वेतनमान अलग-अलग है। समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं मिल रहा है। दूसरा वेतन समय से नहीं मिल रहा है जिससे दैनिक जीवन में परेशानी हो रही है।
राजीव रेनी बताते हैं कि महंगाई के इस युग में शिक्षकों का वेतन काफी कम है। सो उन्हें अपना दैनिक खर्च पूरा करने के लिए और भी काम करना पड़ता है। वहीं स-समय वेतन न मिलने से शिक्षकों की परेशानी बढ़ जाती है।
संजय प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि शिक्षा विभाग द्वारा भले ही शिक्षा के गुणवत्ता को सुधारने के लिए तमाम नए नियम बनाए गए हैं। परंतु वास्तविक समस्या जिससे शिक्षक ग्रसित हैं अधिकारियों का ध्यान नहीं गया। काम करने के बाद भी आवश्यकता समय पर पूरी न हो। तो भला शिक्षा में अभीरुचि कैसे रह सकती है।
शिक्षक बृजकिशोर मिश्र का कहना है कि विद्यालय में मध्याह्न भोजन व स्कूल निर्माण कार्य को जब तक शिक्षकों से अलग नहीं किया जाएगा। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना करना बेकार है। शिक्षा समिति के गठन से विद्यालयों का सुधार नहीं अपितु आए दिन अनावश्यक विवाद खड़ा हो रहा है।
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