छपरा। सारण जिले के प्रत्येक प्रखंड के चयनित पांच मध्य विद्यालय में
कम्प्यूटर ट्रेनिंग देने की अनुमति के मामले में शिक्षा विभाग के
पदाधिकारियों की गर्दन फंस गयी है।
वर्ष 2014 में तत्कालिक जिला शिक्षा पदाधिकारी मधुसुदन पासवान के कार्यकाल में जिस संस्था को कम्प्यूटर प्रशिक्षण देने की अनुमति दी गयी थी। वह संस्था फर्जी निकली है। इतना ही नहीं संस्था ने संयुक्त सचिव का जो पत्र दिया था वह भी फर्जी मालूम पड़ रहा है। इस पत्र के आलोक में शिक्षा विभाग ने बीईओ को विद्यालय चयन कर सूची देने गया था। जिसके बाद बीईओ ने प्रत्येक प्रखंड में पांच मध्य विद्यालय का चयन कर सूची सौंप दी है। इसके बाद संस्था ने प्रत्येक स्कूल में कम्प्यूटर शिक्षक की नियुक्ति कर दी है। इसी में बड़ा खेल हुआ है।
बताया जाता है कि संस्था ने कम्प्यूटर शिक्षक के नियुक्ति में पैसे का खेल हुआ है। शिक्षक नियुक्ति अभ्यर्थियों से मोटी रकम भी वसूली गयी। करीब छह माह शिक्षकों ने कम्प्यूटर शिक्षक के रूप में कार्य भी किया। लेकिन उन्हें वेतन नहीं मिला। कम्प्यूटर शिक्षक जब वेतन लिए संस्था के पदाधिकारियों से संपर्क किया गया तो आज कल में सरकार द्वारा राशि आने के बाद वेतन देने की बात टालमटोल कर दिया। लेकिन एक साल के बाद भी उन्हें वेतन नहीं मिला। संस्था के पदाधिकारियों को मोबाइल स्वीच आफ आने लगा तो कम्प्यूटर शिक्षकों संस्था स्थित कार्यालय में गये तो वहां ताला बंद मिला। इसके बाद शिक्षक डीइओ एवं स्थापना डीपीओ के कार्यालय में भी चक्कर लगाया लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। जिसके बाद शिक्षकों ने डीएम से भी गुहार लगायी। यह मामला विधान परिषद में उठाया गया था। इस संबंध में विधान परिषद के निवेदन समिति ने भी जांच प्रतिवेदन मांगा है। 2 जुलाई को विधान परिषद की निवेदन समिति छपरा आ रही है। जिसको लेकर डीईओ कार्यालय से लेकर एसएसए डीपीओ कार्यालय में आज पूरे दिन कम्प्यूटर प्रशिक्षण की अनुमति देने की फाइल खोजने में पदाधिकारी से लेकर कर्मचारी तक लगे रहे। तत्कालीन डीईओ मधुसूदन पासवान से भी फाइल के बारे में शिक्षा विभाग के कर्मचारी से लेकर पदाधिकारी जानकारी लेने में परेशान दिखे।
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वर्ष 2014 में तत्कालिक जिला शिक्षा पदाधिकारी मधुसुदन पासवान के कार्यकाल में जिस संस्था को कम्प्यूटर प्रशिक्षण देने की अनुमति दी गयी थी। वह संस्था फर्जी निकली है। इतना ही नहीं संस्था ने संयुक्त सचिव का जो पत्र दिया था वह भी फर्जी मालूम पड़ रहा है। इस पत्र के आलोक में शिक्षा विभाग ने बीईओ को विद्यालय चयन कर सूची देने गया था। जिसके बाद बीईओ ने प्रत्येक प्रखंड में पांच मध्य विद्यालय का चयन कर सूची सौंप दी है। इसके बाद संस्था ने प्रत्येक स्कूल में कम्प्यूटर शिक्षक की नियुक्ति कर दी है। इसी में बड़ा खेल हुआ है।
बताया जाता है कि संस्था ने कम्प्यूटर शिक्षक के नियुक्ति में पैसे का खेल हुआ है। शिक्षक नियुक्ति अभ्यर्थियों से मोटी रकम भी वसूली गयी। करीब छह माह शिक्षकों ने कम्प्यूटर शिक्षक के रूप में कार्य भी किया। लेकिन उन्हें वेतन नहीं मिला। कम्प्यूटर शिक्षक जब वेतन लिए संस्था के पदाधिकारियों से संपर्क किया गया तो आज कल में सरकार द्वारा राशि आने के बाद वेतन देने की बात टालमटोल कर दिया। लेकिन एक साल के बाद भी उन्हें वेतन नहीं मिला। संस्था के पदाधिकारियों को मोबाइल स्वीच आफ आने लगा तो कम्प्यूटर शिक्षकों संस्था स्थित कार्यालय में गये तो वहां ताला बंद मिला। इसके बाद शिक्षक डीइओ एवं स्थापना डीपीओ के कार्यालय में भी चक्कर लगाया लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। जिसके बाद शिक्षकों ने डीएम से भी गुहार लगायी। यह मामला विधान परिषद में उठाया गया था। इस संबंध में विधान परिषद के निवेदन समिति ने भी जांच प्रतिवेदन मांगा है। 2 जुलाई को विधान परिषद की निवेदन समिति छपरा आ रही है। जिसको लेकर डीईओ कार्यालय से लेकर एसएसए डीपीओ कार्यालय में आज पूरे दिन कम्प्यूटर प्रशिक्षण की अनुमति देने की फाइल खोजने में पदाधिकारी से लेकर कर्मचारी तक लगे रहे। तत्कालीन डीईओ मधुसूदन पासवान से भी फाइल के बारे में शिक्षा विभाग के कर्मचारी से लेकर पदाधिकारी जानकारी लेने में परेशान दिखे।
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