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सरकारी शिक्षकों को नहीं है सरकारी विद्यालयों पर भरोसा

समस्तीपुर। शाहपुरपटोरी में सरकारी स्कूल के गुरुजी को आकर्षक वेतनमान व अन्य सुविधाएं चाहिए लेकिन अपने बच्चों को पढ़ाने की बारी आती है तो वे भेजते हैं निजी स्कूलों में। विभिन्न विद्यालयों के ऐसे गुरुजी को अपनी शिक्षण क्षमता व सरकारी व्यवस्था पर बिल्कुल ही विश्वास नहीं रहा।
नतीजा यह है कि अनुमंडल के तीनों प्रखंडों पटोरी, मोहनपुर, मोहीउद्दीननगर के विभिन्न स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों में से नब्बे प्रतिशत शिक्षकों के बच्चे निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं। देश का भविष्य गढ़ने का जिम्मा संभाल रहे ये शिक्षक भारतीय शिक्षा व्यवस्था को प्रतिदिन तमाचा मारते हैं। इनकी पत्नी प्रतिदिन दो डब्बे में टिफिन तैयार करती हैं, एक अपने बच्चे के लिए और दूसरा अपने पति के लिए। सर,विद्यालय का भोजन करना उचित नहीं समझते।
निजी विद्यालयों में पढ़ रहे गुरुपुत्र लेते हैं ड्रेस व साइकिल के पैसे भले ही सरकारी विद्यालयों के शिक्षक अपने बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ाते हैं ¨कतु उनका नाम सरकारी विद्यालयों के रजिस्टर में रहता है। ऐसे शिक्षकों के बच्चे वैसी सभी सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाते हैं जो उस विद्यालय के छात्र उठाते हैं। गुरुजी के पाल्यों को विद्यालय के छात्रों की तरह पोशाक के पैसे, छात्रवृत्ति साइकिल की राशि वगैरह नियमित मिलती है। विद्यालयों मे पढ़ाई का स्तर इतना बुरा है कि यहां के बच्चे अंग्रेजी अक्षर सही से नहीं जानते।
परीक्षाएं नहीं होती सरकारी विद्यालयों में
किसी भी छात्र के फेल नहीं करने के सरकारी आदेश का पूरा लाभ सरकारी विद्यालय के शिक्षक उठाते हैं। बिना पढ़ाई और परीक्षा के ही छात्र अगली कक्षा में दाखिला ले लेते हैं। नतीजा यह होता है कि छात्र अपने घर पर भी नहीं पढ़ते हैं। अर्थात छात्रों के नहीं पढ़ने की पुख्ता व्यवस्था सरकारी स्कूलों में कर दी गयी है। शिक्षा व्यवस्था का यह गंदा खेल पटोरी प्रखंड के लगभग 150 प्राथमिक से लेकर उच्च विद्यालयों में बदस्तूर जारी है। इन विद्यालयों के लगभग दो लाख से अधिक छात्रों के भविष्य को बर्बाद करने की सुनियोजित सरकारी साजिश में यहां के हजारों शिक्षक खुलकर शामिल हो रहे हैं।
उच्चाधिकारियों की नहीं है निगरानी
पटोरी तथा जिले में वैसे इसकी कभी भी कोई निगरानी नहीं की जाती। प्रखंड के शिक्षा अधिकारियों के द्वारा इस सिलसिले में विद्यालय की जांच शायद ही की जाती है। छात्रों के बन रहे एमडीएम की जांच करने अधिकारी अवश्य पहुंचते हैं ¨कतु उन्हें इस बात से कोई विशेष मतलब नहीं रहता कि उस विद्यालय के छात्रों की परीक्षा होती है या नहीं, वहां के शिक्षकों के पाल्य उस विद्यालय में पढ़ते हैं या नहीं। जिला के किसी शिक्षा से जुड़े अधिकारियों ने आज तक आकर शायद ही किसी स्कूल का निरीक्षण किया होगा।
गुरुजी के रवैये से अच्छे छात्र नहीं जाते सरकारी स्कूल

जब शिक्षकों के बच्चे सरकारी विद्यालय में नहीं पढ़ते हैं तो आम अभिभावकों व उनके बच्चों को सरकारी विद्यालयों से विश्वास उठ चुका है। सरकारी व्यवस्था की बदहाली के कारण आम लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजना उचित नहीें समझते। सरकार के द्वारा इन विद्यालयों पर प्रति माह करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी सरकार की यह व्यवस्था आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। शिक्षा की इस व्यवस्था से सरकार पूरे क्षेत्र में शिक्षा की नदी बहाने का दावा भले ही कर ले ¨कतु हकीकत यह है कि उनके रहनुमाओं ने इसे साक्षर बनाने का साधन भी नहीं रख छोड़ा है।
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