सूबे के नियोजित शिक्षक अधिकांश समय अपनी नौकरी पक्की करने और राशन किरासन की व्यवस्था करने में व्यतीत करते हैं। ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना कहां से की जा सकती है। स्टेट के विभिन्न शिक्षक संगठनों से बात करने पर यही बात निकलकर सामने आती है। कई मांगों के बीच नियमित वेतन भुगतान की मांग भी इन शिक्षकों का अहम मुद्दा है.
सूबे के प्राथमिक और मिडिल स्कूलों में कार्यरत लगभग फ् लाख शिक्षकों को पिछले ब् महीने से वेतन नहीं मिला है। शिक्षक संगठन इस मसले को लेकर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।
केंद्र और राज्य के बीच फंसा है मामला
प्राइमरी और मिडिल स्कूलों के तीन लाख शिक्षकों का पर्व त्योहार बिना वेतन के मन चुका है। बताया गया कि शिक्षकों को वेतन केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर देती है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत केंद्र की सरकार भी सहयोग करती है। वहीं इस मसले पर टीईटी एसटीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ के मार्कंडेय पाठक कहते हैं कि केंद्र और राज्य की लड़ाई का खामियाजा शिक्षक भुगत रहे हैं। इस मसले को लेकर बिहार पंचायत नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ ने भी बैठक कर आंदोलन करने का निर्णय लिया है। पाठक ने कहा कि नियमित भुगतान के मसले को लेकर संघ ख्9 फरवरी को विधानसभा का घेराव करेगा.
इन्हें तो 9 महीने से नहीं मिला है वेतन
सूबे के उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालयों के हाई स्कूल के नियोजित शिक्षकों की संख्या लगभग क्0 हजार के आसपास है। बताया गया कि इन शिक्षकों को पिछले 9 महीने से वेतन नहीं मिला है। इन शिक्षकों को वेतन राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद से आता है। ऐसे में शिक्षकों का कहना है कि अगर राज्य सरकार विशेष राज्य के दर्जा के लिए लड़ाई लड़ सकती है तो उसे हमारे वेतन के लिए भी आवाज उठानी चाहिए।
इनका नहीं है काेई बकाया
राजकीय राजकीयकृत प्रोजेक्ट माध्यमिक उच्चतर माध्यमिक प्रोजेक्ट के विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों का वेतन बकाया नहीं है। इन शिक्षकों को दिए जाने वाले वेतन में केंद्रांश नहीं होता है। राज्य में ऐसे शिक्षकों की संख्या लगभग तीस हजार के अासपास है।
कोर्ट भी कह चुका है दें रेग्यूलर वेतन
शिक्षक संघ पटना हाईकोर्ट और राज्य मानवाधिकार के फैसले का भी हवाला देता है। बताया कि कई साल पहले कोर्ट ने भी राज्य सरकार को शिक्षकों को नियमित भुगतान करने की बात कही है। इसके साथ ही राज्य मानवाधिकार भी इस मसले पर अपनी राय रख चुकी है। बावजूद इसके विभिन्न कारणों से शिक्षकों को वेतन नियमित नहीं मिल पाता है। इसका असर अध्ययन- अध्यापन पर भी पड़ता है।
कोट
आरटीई की आत्मा ही कहती है कि शिक्षक अगर मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहेंगे तभी वे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे पाएंगे। इस महंगाई के दौर में शिक्षक बिना वेतन के छह- छह महीने काम करते हैं। ऐसे में उनकी मानसिक स्थिति की कल्पना की जा सकती है। यह गंभीर मसला है। हमारी मांग है कि नियमित वेतन भुगतान को सुनिश्चित किया जाए नहीं तो आंदोलन तेज की जाएगी।
मार्कण्डेय पाठक, प्रदेश अध्यक्ष, टीएसयूएनएसएस
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