इस स्टोरी में नीचे दिया गया मैसेज तब से ही वायरल है जब से नीतीश सरकार ने शिक्षकों के कंधे पर शराबबंदी को सफल बनाने का भार भी सौंप दिया। वैसे, बिहार के शिक्षकों को इस तरह के भार की आदत है।
सरकारी विद्यालयों के शिक्षक हर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। 2017 में खुले में शौच करने वालों को रोकने की अहम जिम्मेदारी भी सरकार ने इन शिक्षकों को दी थी। तब भी हंगामा मचा था। जमीनी हकीकत देखें तो सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को सिर्फ एक जिम्मेदारी नहीं मिली है- बच्चों को सही तरीके से पढ़ाकर कोर्स पूरा कराने की। यकीन न हो तो किसी भी अधिकारी के निरीक्षण की रिपोर्ट निकालकर खुद देख सकते हैं। साप्ताहिक निरीक्षण तक का प्रावधान है लेकिन निरीक्षण करने वाले अधिकारी सिर्फ शिक्षकों की हाजिरी देखकर लौट जाते हैं। अनुपस्थित शिक्षक पर कार्रवाई भी आसान नहीं होती क्योंकि, बिहार की कहावत में, इन्हें पढ़ाई छोड़कर छत्तीस तरह के काम सरकार ने खुद दे रखे हैं। कोई शिक्षक अंडा लाने तो कोई बोरा बेचने तक के लिए बाजार जाने की बात कह भी छूट सकते हैं।