जागरण संवाददाता, सुपौल: पिछले दिनों त्रिवेणीगंज पतरघट्टी गांव में
संचालित छात्रावास में घटी अगलगी की घटना के बाद आखिरकार शिक्षा विभाग की
तंद्रा टूटी है।
इस घटना में छात्रावास में एक बच्चे की मौत हो गई थी। घटना के बाद विभाग ने जिले भर में बिना प्रस्वीकृति प्राप्त निजी विद्यालय व अवैध रूप से संचालित छात्रावासों की सूची इकट्ठा कर विभाग को समर्पित करने को कहा है। इसको लेकर प्राथमिक शिक्षा एवं सर्व शिक्षा अभियान के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी ने सभी बीईओ को आदेश निर्गत कर ऐसे विद्यालय व छात्रावासों की स्थलीय जांच करने को कहा है। जारी आदेश में डीपीओ ने सभी बीईओ से कहा है कि आपके क्षेत्राधीन वैसे निजी विद्यालय जो बिना विभागीय प्रस्वीकृति लिए अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं उनका स्थलीय जांच कर प्रतिवेदन समर्पित करें। सूचना मिल रही है कि कुछ विद्यालय विभाग से प्रस्वीकृति विद्यालय संचालन को लेकर लिए हुए हैं। परंतु यह अवैध रूप से छात्रावास भी चलाते हैं। साथ ही कुछ ऐसे निजी विद्यालय भी हैं जिसने विभाग से प्रस्वीकृति लिया ही नहीं है। बावजूद वे विद्यालय और छात्रावास दोनों का संचालन कर रहे हैं। ऐसे विद्यालयों की जांच कर एक सप्ताह के अंदर प्रतिवेदन समर्पित करें ताकि उनके विरुद्ध कार्रवाई की जा सके। हालांकि यह पहली दफा नहीं है कि विभाग ने ऐसे विद्यालयों की सूची की मांग की है। इससे पूर्व भी कई बार इस तरह के प्रतिवेदन की मांग की जा चुकी है। लेकिन हर बार प्रखंड स्तरीय शिक्षा अधिकारियों द्वारा इस दिशा में शिथिलता बरती जाती रही है। जिस कारण निजी विद्यालयों के संचालकों की मनमानी चरम पर है। संचालकों द्वारा नियम को ताक पर रख काम किए जाने से नामांकित बच्चे पूरी तरह असुरक्षित महसूस करते हैं। हालांकि ऐसा नहीं कि इस बात की जानकारी स्थानीय शिक्षा कार्यालय को नहीं रहती है। वे जान कर भी अंजान बने रहते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिले में अधिकांश निजी विद्यालय सिर्फ यू डायस कोड निकाल कर बिना रजिस्ट्रेशन किए विद्यालय का संचालन करते हैं। कई विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति पंजी तक उपलब्ध नहीं होती है। छात्र के नाम पर फर्जी छात्रों का नामांकन कर कोरम पूरा किया जाता है। आइआरटीआइ के तहत एक भी बच्चे का निश्शुल्क नामांकन नहीं किया जाता है। प्राइवेट विद्यालय खोलने के लिए कम से कम 4 कट्ठा जमीन चाहिए। उधर कई विद्यालय किराये के मकान में संचालित किए जाते हैं। 30 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए। लेकिन इसका पालन नहीं किया जाता है। परिणाम है कि जिले में हर वर्ष कुकुरमुत्ते की तरह निजी विद्यालय खुल रहा है। इसके साथ एक संचालकों द्वारा सरकारी नियम के प्रतिकूल काम को अंजाम दिया जाता रहा है। यहां के अभिभावकों को बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना दिखाकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने का निरंतर प्रयास जारी है। संचालकों द्वारा बच्चों को कॉपी, किताब, पेंसिल सहित अन्य स्टेशनरी सामग्री मुहैया कराई जाती है और इन सामग्री पर भी बाजार मूल्य से अधिक राशि वसूली जाती है।
इस घटना में छात्रावास में एक बच्चे की मौत हो गई थी। घटना के बाद विभाग ने जिले भर में बिना प्रस्वीकृति प्राप्त निजी विद्यालय व अवैध रूप से संचालित छात्रावासों की सूची इकट्ठा कर विभाग को समर्पित करने को कहा है। इसको लेकर प्राथमिक शिक्षा एवं सर्व शिक्षा अभियान के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी ने सभी बीईओ को आदेश निर्गत कर ऐसे विद्यालय व छात्रावासों की स्थलीय जांच करने को कहा है। जारी आदेश में डीपीओ ने सभी बीईओ से कहा है कि आपके क्षेत्राधीन वैसे निजी विद्यालय जो बिना विभागीय प्रस्वीकृति लिए अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं उनका स्थलीय जांच कर प्रतिवेदन समर्पित करें। सूचना मिल रही है कि कुछ विद्यालय विभाग से प्रस्वीकृति विद्यालय संचालन को लेकर लिए हुए हैं। परंतु यह अवैध रूप से छात्रावास भी चलाते हैं। साथ ही कुछ ऐसे निजी विद्यालय भी हैं जिसने विभाग से प्रस्वीकृति लिया ही नहीं है। बावजूद वे विद्यालय और छात्रावास दोनों का संचालन कर रहे हैं। ऐसे विद्यालयों की जांच कर एक सप्ताह के अंदर प्रतिवेदन समर्पित करें ताकि उनके विरुद्ध कार्रवाई की जा सके। हालांकि यह पहली दफा नहीं है कि विभाग ने ऐसे विद्यालयों की सूची की मांग की है। इससे पूर्व भी कई बार इस तरह के प्रतिवेदन की मांग की जा चुकी है। लेकिन हर बार प्रखंड स्तरीय शिक्षा अधिकारियों द्वारा इस दिशा में शिथिलता बरती जाती रही है। जिस कारण निजी विद्यालयों के संचालकों की मनमानी चरम पर है। संचालकों द्वारा नियम को ताक पर रख काम किए जाने से नामांकित बच्चे पूरी तरह असुरक्षित महसूस करते हैं। हालांकि ऐसा नहीं कि इस बात की जानकारी स्थानीय शिक्षा कार्यालय को नहीं रहती है। वे जान कर भी अंजान बने रहते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिले में अधिकांश निजी विद्यालय सिर्फ यू डायस कोड निकाल कर बिना रजिस्ट्रेशन किए विद्यालय का संचालन करते हैं। कई विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति पंजी तक उपलब्ध नहीं होती है। छात्र के नाम पर फर्जी छात्रों का नामांकन कर कोरम पूरा किया जाता है। आइआरटीआइ के तहत एक भी बच्चे का निश्शुल्क नामांकन नहीं किया जाता है। प्राइवेट विद्यालय खोलने के लिए कम से कम 4 कट्ठा जमीन चाहिए। उधर कई विद्यालय किराये के मकान में संचालित किए जाते हैं। 30 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए। लेकिन इसका पालन नहीं किया जाता है। परिणाम है कि जिले में हर वर्ष कुकुरमुत्ते की तरह निजी विद्यालय खुल रहा है। इसके साथ एक संचालकों द्वारा सरकारी नियम के प्रतिकूल काम को अंजाम दिया जाता रहा है। यहां के अभिभावकों को बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना दिखाकर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने का निरंतर प्रयास जारी है। संचालकों द्वारा बच्चों को कॉपी, किताब, पेंसिल सहित अन्य स्टेशनरी सामग्री मुहैया कराई जाती है और इन सामग्री पर भी बाजार मूल्य से अधिक राशि वसूली जाती है।