--> <!--Can't find substitution for tag [post.title]--> | The Bihar Teacher Times - बिहार शिक्षक नियोजन

LIVE : UPTET Result 2021

Breaking Posts

बिहार के संस्कृत स्कूलों को ले बड़ा खुलासा, न शिक्षक रहे न शास्त्र की पूछ

पटना [दीनानाथ साहनी]। वेद, व्याकरण, ज्योतिष, कर्म काण्ड, साहित्य, दर्शन शास्त्र और धर्मशास्त्र-ये ऐसे विषय हैं, जिनसे संस्कृत स्कूलों की पहचान जुड़ी रही है। मगर मौजूदा दौर में संस्कृत स्कूल-कालेजों में इनकी पूछ नहीं रही। इसकी कई वजह हैं-संसाधनों की किल्लत, शास्त्रों की उपयोगिता को लेकर संदेह और गुरुओं के प्रति सम्मान में कमी।

हाल में संस्कृत स्कूलों पर आई रिपोर्ट ने व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। रिपोर्ट से संस्कृत स्कूलों की बदहाली की जो सूरत सामने आई है उससे व्यवस्था से जुड़े लोग बेनकाब हो चुके हैं।
सरकारी दस्तावेज के मुताबिक प्रदेश में मात्र 11 राजकीय संस्कृत विद्यालय हैं जिन्हें सीधे सरकार संचालित करती है पर इन विद्यालयों में स्वीकृत 106 पदों के विरुद्ध मात्र 6 शिक्षक कार्यरत हैं। ऐसे विद्यालयों में पठन-पाठन बंद हो चुका है। सरकार द्वारा अनुदानित 531 संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों के कुल 3330 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 1563 पद खाली पड़े हैं। संसाधनों की बात करना ही बेमानी है।

सवाल लाजिमी है-सरकार का शिक्षा के लिए 20 हजार करोड़ से ज्यादा का बजट किस काम का? सरकार ने जिन 300 संस्कृत विद्यालयों को प्रस्वीकृति दी थी, उसे अनुदान देने पर रोक लगा रखी है। ऐसे विद्यालय बंदी के कगार पर पहुंच गए हैं। स्पष्ट है कि संस्कृत व शास्त्र शिक्षा की सरकारी उपेक्षा की भारी कीमत समाज को ही चुकता करनी पड़ रही है।
90 फीसद विद्यालयों में छात्र-छात्राओं का नामांकन इसलिए नहीं हो पा रहा है कि पिछले दो साल से परीक्षा का रिजल्ट ही प्रकाशित नहीं हुआ है। इसके लिए संस्कृत भाषा को देववाणी कहकर गौरवान्वित होनेवाले गुरु भी कटघरे में हैं, जिन्होंने संस्कृत को लोकभाषा बनने के मार्ग में कई रोड़े अटकाने का कार्य किया है।

चौंकाने वाली बात यह है कि संस्कृत शिक्षकों में कई ऐसे गुट हैं, जो मध्यमा परीक्षा कराने और रिजल्ट देने के नाम पर केवल अपना स्वार्थ साध रहे हैं। ऐसे तत्व कई बार 'एक्सपोज' हो चुके हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक मध्यमा परीक्षा उत्तीर्ण होने पर ही विद्यार्थियों को संस्कृत महाविद्यालयों में उपशास्त्री (इंटर) और शास्त्री (स्नातक) की उपाधि मिलती है, किंतु शास्त्र ज्ञान देनेवाले शिक्षकों की लापरवाही और सरकारी उपेक्षा से ऐसे शिक्षण संस्थानों में भी संस्कृत शिक्षा का बुरा हश्र है। संस्कृत शिक्षा को दोबारा पटरी पर लाने के लिए सरकार को भगीरथ प्रयास करने होंगे।


शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा ने माना है कि संस्कृत स्कूलों में शिक्षण कार्य हाशिए पर है। इसकी कई वजह है। आधारभूत संरचना का अभाव है। जिन स्कूलों में आधारभूत संरचना उपलब्ध भी है, वहां पर संस्कृत शिक्षा में सुधार के लिए काफी प्रयास करना होगा। इसमें शिक्षकों का सहयोग आवश्यक है। सभी जिलों के संस्कृत स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था में सुधार के लिए अभियान चलाया जाएगा। इस अभियान को सफल बनाने में शिक्षकों की मदद चाहिए।

Popular Posts

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();