बिहार में बारहवीं की बोर्ड परीक्षा के खराब रिजल्ट ने सामाजिक स्तर
पर खलबली मचा दी है. ओवर ऑल 64 प्रतिशत छात्र फेल हो गये, जिनमें 70 फीसदी
साइंस स्ट्रीम, 62 प्रतिशत आर्ट्स और 25 फीसदी कॉमर्स के स्टूडेंट शामिल
हैं. इस खराब रिजल्ट की सबसे बड़ी वजह कड़ाई से ली गयी परीक्षा मानी जा रही
है. परीक्षा में कामयाब नहीं हो पानेवाले छात्रों के साथ-साथ उनके
माता-पिता भी चिंतित व परेशान हैं. रिजल्ट के बाद से राज्य की शिक्षा और
परीक्षा पर व्यापक बहस चल रही है. राज्य सरकार इस चिंता से वाकिफ है और
शिक्षा-व्यवस्था में गुणात्मक सुधार के लिए एक ब्लूप्रिंट लाने की बात कही
गयी है.
यह सर्वमान्य तथ्य है कि बेहतर शिक्षा से ही बेहतर समाज बनता है.
तो राज्य में शिक्षा की स्थिति को बेहतर करने की राह क्या है, आज के बिग
इश्यू में हमने इसी से जुड़े सवाल राज्य के शिक्षा मंत्री और बिहार
विद्यालय परीक्षा समिति के चेयरमैन के अलावा कुछ ऐसी शख्सीयतों के सामने
रखे, जो शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्यों और ईमानदार प्रयासों के
लिए जाने जाते हैं. बहस का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा. हमारी कोशिश है
कि राज्य की शिक्षा-व्यवस्था के सामने खड़ी चुनौतियों की पहचान हो सके और
एक सुसंगत राह निकल सके.
रोड मैप पर काम शुरू, दूर होंगी उच्च माध्यमिक शिक्षा की कमियां
अशोक चौधरी
शिक्षा मंत्री, िबहार सरकार
- इंटरमीडिएट का रिजल्ट क्या संकेत दे रहा है और सरकार इसे किस रूप में ले रही है?
- राज्य सरकार ने कदाचारमुक्त परीक्षा का आयोजन किया था. उसका असर तो
दिखेगा ही. पूर्व के सालों में प्रदेश में कदाचार होता था, जिससे रिजल्ट
बेहतर होता था. दो साल पहले इसकी तसवीर भी वायरल हुई थी और बिहार की बदनामी
हुई थी. कदाचार कर पास करने वाले बच्चे दूसरी जगहों पर भी सफल नहीं हो
पाते हैं. ऐसे में इस साल जो रिजल्ट आया है, उससे पास किये बच्चे हर
क्षेत्र में सफल होंगे. इससे बिहार की छवि सुधरेगी.
- भविष्य में रिजल्ट बेहतर हो, इसके लिए क्या रास्ता है?
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश के बाद माध्यमिक व उच्च
माध्यमिक शिक्षा का रोड मैप तैयार किया जा रहा है. विभाग के अधिकारियों को
एक सप्ताह में ब्लू प्रिंट तैयार करने को कहा गया है. माध्यमिक व उच्च
माध्यमिक शिक्षा में जो कमियां हैं, चाहे वह आधारभूत संरचना की हो,
शिक्षकों की हो या फिर उनकी गुणवत्ता की, सभी को दुरुस्त किया जायेगा.
तैयार होने वाले ब्लू प्रिंट का प्रजेंटेशन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के
सामने भी किया जायेगा और अंतिम रूप से माध्यमिक-उच्च माध्यमिक शिक्षा का
रोडमैप पर काम शुरू होगा. इससे भविष्य में मैट्रिक व इंटर के रिजल्ट में
बेहतर परिणाम आयेंगे.
- हाइ-प्लस टू स्कूलों में शिक्षकों के खाली पद भी बड़ी चुनौती है?
- हाइ व प्लस टू स्कूलों में शिक्षकों के पद खाली हैं, खास कर गणित,
विज्ञान व अंगरेजी के. इन विषयों में अभ्यर्थी नहीं मिल रहे हैं. विभाग ने
कई बार काउंसेलिंग करायी और आवेदन भी लिया, लेकिन अभ्यर्थी नहीं मिले. इस
वजह से हाइ व प्लस टू स्कूलों में मुख्य रूप से इन विषयों के शिक्षक नहीं
हैं. विभाग ने फिर से एसटीइटी लेने के लिए बिहार विद्यालय परीक्षा समिति को
प्रस्ताव भेजा है. अब बिहार बोर्ड एसटीइटी लेने की तैयारी कर रहा है.
शिक्षकों की बहाली में एक समस्या उनके वेतन को लेकर भी सामने आ रही है.
मुख्यमंत्री ने भरोसा दिया है कि माध्यमिक व उच्च माध्यमिक की बेहतरी में
राशि की कमी नहीं होने देंगे, ऐसे में शिक्षकों के वेतनमान पर भी चर्चा हो
सकती है.
- फिर से टॉपर घोटाले की बात सामने आ रही है?
- इस बार किसी प्रकार का टॉपर स्कैम नहीं हुआ है. जो बच्चे टॉप किये
हैं और जो पास हुए हैं, वे मेरिट के हिसाब से पास किये हैं. बिहार विद्यालय
परीक्षा समिति ने टॉपर की कॉपियों और अंकों को दोबारा देख कर ही उनके
नामों का एलान किया है. इंटर आर्ट्स के टॉपर गणेश कुमार के संगीत विषय को
आधार मान कर उनकी योग्यता पर सवाल उठाया जा रहा है. उस विषय का प्रैक्टिकल
भी होता है और होम सेंटर में ही उस स्कूल से ही नंबर दिये जाते हैं. उन्हें
प्रैक्टिकल में ही ज्यादा अंक मिले हैं.
- जो छात्र असफल हुए हैं उन्हें कब तक मिलेगा दोबारा मौका?
- जिन छात्र-छात्राओं का रिजल्ट अच्छा नहीं हुआ है और जिन्हें लगता है
कि किसी विषय में कम अंक मिल हैं, तो वे कॉपियों की स्क्रूटनी के लिए
आवेदन दे सकते हैं. यह प्रक्रिया शनिवार से शुरू हो जायेगी. स्क्रूटनी का
रिजल्ट भी इस माह के तीसरे सप्ताह तक दे दिया जायेगा, ताकि जो बच्चे आइआइटी
जेइइ में क्वालिफाइ कर चुके हैं, उन्हें काउंसेलिंग में शामिल होने का
मौका मिल सके. इसके अलावा जुलाई में ही कंपार्टमेंटल परीक्षा होगी. इसमें
पहले एक विषय के लिए ही परीक्षा ली जाती थी, लेकिन अब दो विषयों में असफल
छात्र भी इसमें शामिल हो सकेंगे.
भले जीरो परसेंट रिजल्ट हो कदाचार के लिए ढील मत दीजिए
वीएस दुबे
पूर्व मुख्य सचिव एवं नालंदा ओपन विवि के पूर्व कुलपति
- इंटरमीडिएट की परीक्षा में दो तिहाई बच्चे फेल हो गये, आप इसकी क्या वजह मानते हैं?
- देखिये, बिहार की यह स्थिति कोई नयी नहीं है. पचास साल से तो मैं
देख ही रहा हूं. हमेशा से यहां नकल का बोलबाला रहा है और इसको राजनेताओं
ने भी भरपूर संरक्षण दिया है. एक मुख्यमंत्री ने तो गांधी मैदान से घोषणा
कर दी थी कि ये बच्चे मेरे जिगर के टुकड़े हैं, इन्हें फेल न किया जाये.
धीरे-धीरे बच्चे और उनके अभिभावकों ने भी मान लिया कि नकल करना उनका
जन्मसिद्ध अधिकार है. हां, तब मीडिया इतना एक्टिव नहीं था, इतनी बातें
सामने नहीं आती थीं. दो-तीन साल पहले जो परीक्षा भवन के पीछे चार मंजिल तक
लटके कदाचार कराने की तसवीर आयी है, हमने उससे भी बुरी स्थिति देखी है.
एक बार मैं जिलाधिकारी के तौर पर एक इलाके से परीक्षा के दौरान गुजर
रहा था, तो देखा कि ताड़ के पेड़ पर एक अभिभावक लाउडस्पीकर लेकर चढ़ा है
और वह एक-एक करके सारे प्रश्नों के उत्तर लिखा रहा है. हमने उसे रोकने की
कोशिश की तो उसने कहा कि वह कूद कर जान दे देगा. अब ये हालत हैं तो किसी न
किसी को तो सख्त कदम उठाना ही था. कभी न कभी तो यह काम करना ही था. इस
लिहाज से मैं इस बार की सख्त परीक्षा के लिए सरकार को बधाई देता हूं. 34
क्या जीरो फीसदी भी रिजल्ट आये तो सरकार को नकल की इजाजत नहीं देनी चाहिए.
- असफल छात्र आंदोलन कर रहे हैं, कहा जा रहा कि आइआइटी पास बच्चे भी फेल हो गये.
- यह कोई एक्सक्यूज नहीं है. दोनों अलग-अलग तरह की परीक्षाएं हैं.
सरकार को इन आंदोलन करने वालों के आगे नहीं झुकना चाहिए. यह ठीक है कि
जिन्हें कंपार्टमेंटल परीक्षा देनी हो, वे दे दें. लेकिन कॉपी रिचेकिंग या
ग्रेस नंबर देने जैसे उपायों से बचना चाहिए. नहीं तो हर बार यही होगा.
फेल करने वाले लड़के सोचेंगे दबाव बनाने से नंबर मिल जायेंगे.
नालंदा ओपन विवि में अपने कार्यकाल के दौरान मैंने परीक्षा भवन में
सीसीटीवी कैमरा लगवा दिया और पूरी सख्ती से परीक्षा ली. ढेर सारे बच्चे
फेल हो गये. हमारे कर्मचारियों ने कहा कि लड़के फेल होंगे तो यहां कोई
एडमिशन लेने नहीं आयेगा. फिर हमारा क्या होगा. मैंने कहा, यह बंद हो जाये,
मुझे इसकी फिक्र नहीं. मगर यह संस्थान चोरी करके पास करने वाले बच्चों के
संस्थान के रूप में नहीं जाना चाहिए. उसका सकारात्मक नतीजा निकला. कभी
यहां 400 बच्चे एडमिट होते थे, आज लाखों बच्चे यहां से पढ़ाई करते हैं.
- परीक्षा में बच्चों का फेल होना सिर्फ बच्चों की असफलता नहीं है,
वह तो शिक्षा विभाग की भी असफलता है कि उन्होंने साल भर क्या पढ़ाया? इसके
लिए आप क्या सुझाव देना चाहेंगे.
- आपका कहना सही है. मेरा पहला सुझाव है कि नकल को किसी भी सूरत में
परमिट नहीं किया जाये. चाहे कुछ भी हो. परीक्षा भवनों में सीसीटीवी कैमरा
लगे. ताकि बच्चों, अभिभावकों, नेताओं, शिक्षकों और तमाम लोगों को यह समझ
आना जरूरी है कि नकल उनका जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है. ऐसा हमने नालंदा ओपन
विवि में करके दिखाया है. वहां 40 फीसदी ही रिजल्ट होता है.
मगर नकल की छूट किसी को नहीं है. क्योंकि यह जब तक नहीं होगा बिहार
की शिक्षा व्यवस्था की छवि कभी नहीं सुधरेगी. अगर स्कूलों में शिक्षक नहीं
हैं, तो तत्काल उनकी नियुक्ति होनी चाहिए. अगर उसमें विलंब है तो सरकार
को अवकाश प्राप्त शिक्षकों की सेवा लेनी चाहिए. क्योंकि यह एक्सक्यूज न हो
कि शिक्षक नहीं हैं. इसके अलावा बच्चों की 75 फीसदी उपस्थिति का नियम
सख्त और अनिवार्य किया जाये और हर कक्षा से पहले उनका एटेंडेंस हो. हमें
प्राइवेट स्कूलों से सीखना चाहिए कि वहां कैसे नियमित पढ़ाई होती है. उनकी
क्या व्यवस्था है और वहां क्यों इस तरह का कदाचार नहीं होता. बिहार का
सम्मान बचाने के लिए यह कदम उठाना ही पड़ेगा.
बिहार में हो रहा शिक्षा का दुरुपयोग, ठीक करनी होगी पूरी परीक्षा व्यवस्था को
आनंद किशोर
बिहार बोर्ड अध्यक्ष
इंटर के खराब रिजल्ट के बाद समिति कार्यालय में छात्रों का
विरोध-प्रदर्शन जारी है. इस बार के रिजल्ट से यहां की शिक्षा और शिक्षण
व्यवस्था पर कई सवाल उठ रहे हैं. इसको लेकर प्रभात खबर की संवाददाता रिंकू
झा ने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आइएएस आनंद किशोर से बात
की.
- जिस तरह का हंगामा समिति में हो रहा है व छात्र रिजल्ट को गलत बता रहे हैं, इसकी क्या हकीकत है?
- चूंकि पहली बार परीक्षा में कई नये सिस्टम लागू हुए हैं. इससे कुछ
गलतियां हुई हैं. इस बार अंक देने के लिए एक ओएमआर दिया गया था. ओएमआर पर
अंक देने में कई जगहों पर शिक्षकों ने गलतियां की हैं. इससे हो सकता है अंक
इधर-उधर हो गया है. इस तरह की गड़बड़ी कई अंक पत्र पर मिली है. लेकिन इसे
पूरी तरह से स्क्रूटनी में सुधार कर लिया जायेगा. स्क्रूटनी मैनुअल होता
है, इससे जांच ठीक से होगी. जिस भी मार्क्स शीट में दिक्कतें हैं, उसे सही
कर लिया जायेगा.
-प्रैक्टिकल की परीक्षा पर प्रश्न चिह्न लग रहा है. क्या बिना परीक्षा के ही प्रैक्टिकल के अंक दिये जाते हैं?
- प्रैक्टिकल की परीक्षा कॉलेज और स्कूल स्तर पर होती है. समिति के
पास केवल अंक आते हैं. इसमें किसे कितना अंक मिला, इसकी कोई जांच समिति
द्वारा नहीं की जाती है. समिति के पास कोई ऐसा प्रावधान नहीं है कि
प्रैक्टिकल पर समिति कोई नियम बनाये. लेकिन जल्द ही समिति इस पर नीतिगत कोई
विचार कर सकती है. हो सकता है कि प्राइवेट कॉलेजों में आगे से प्रैक्टिकल
के एग्जाम नहीं लिये जायेंगे या फिर प्रैक्टिकल के एग्जाम में शिक्षकों के
सेंटर में बदलाव किया जाये. प्रैक्टिकल के एग्जाम में मार्क्स किस तरह से
दिया जाता है, इसको लेकर कभी शिकायत नहीं आयी है.
- बिहार में शिक्षा व्यवस्था सही हो, इसके लिए समिति की क्या योजना है?
- मेरे हिसाब से परीक्षा एक पवित्र चीज है और इसकी पवित्रता को बनाये
रखना चाहिए. हमें सबसे पहले परीक्षा की पूरी व्यवस्था को ठीक करना होगा.
2016 में टाॅपर स्कैम के बाद परीक्षा को पूरी तरह से गुप्त रखा गया. कई
बदलाव किये गये. कदाचारमुक्त परीक्षा के अलावा उत्तर पुस्तिका पर बार
कोडिंग करके कांफिडेंशियल किया गया. इससे पैरवी की संभावना खत्म हो गयी.
उत्तर पुस्तिका पूरी तरह से सुरक्षित रहे, इसके लिए पूरी व्यवस्था की गयी
थी. लेकिन कई शिक्षण संस्थान हैं जहां पर शिक्षा का दुरुपयोग हो रहा है.
उसे ठीक करने की जरूरत है.
इसी क्रम में समिति अब आगे काम करेगी. 2016 में 212 कॉलेजों की जांच
करवायी गयी. इन कॉलेजों में 175 कॉलेज संबंद्धता के नियम के अनुसार कई
कमियां देखी गयी हैं. इन कॉलेजों को शो कॉज करने के बाद इसकी मान्यता को
समाप्त किया गया. अगले चरण में 1317 कॉलेजों के साथ ऐसा ही किया जा रहा है.
अगले तीन महीने में ऐसे सारे कॉलेज की जांच की जायेगी. जहां पढ़ाई के नाम
पर बस खानापूर्ति हो रही है.
-हर साल इस तरह की गड़बड़ियों से शिक्षा, परीक्षा और छात्रों पर क्या प्रभाव पड़ेगा. आपकी नजर में क्या संदेश जायेगा?
- गड़बड़ियां होंगी तो उसका संकेत तो गलत ही जायेगा. लेकिन इसमें
सुधार करना भी तो हमारा ही काम है. समिति लगातार हर स्तर पर सुधार करने की
कोशिश कर रही है. पिछले साल ऑनलाइन परीक्षा फार्म भरने में दिक्कतें आयीं.
इससे कई छात्र परीक्षा फार्म नहीं भर पाये.
क्योंकि अधिकतर स्कूलों में कंप्यूटर नहीं होने से साइबर कैफे में
छात्रों का जाना पड़ा. अब आगे इस साल छात्रों को दिक्कतें ना हो, इसके लिए
समिति की ओर से कंप्यूटर उपलब्ध करवाये जायेंगे. हर जिला स्तर पर कंप्यूटर
सेंटर बनाया जायेगा जिससे छात्रों को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करने में दिक्कतें
ना हो. सुधार करके ही स्थिति को बदला जा सकता है. अगर गड़बड़ियां रहेंगी
तो शिक्षा पर प्रभाव गलत पड़ेगा.
शिक्षा व्यवस्था दोषी, सुधार की जरूरत
डॉ आइसी कुमार
सेवानिवृत्त आइएएस अफसर
- इस बार के इंटरमीडिएट के रिजल्ट पर क्या कहना चाहेंगे?
- रिजल्ट बहुत खराब हुआ है. साक्ष्य के अभाव में किसी पर दोषारोपण
करना ठीक नहीं, लेकिन इसके लिए हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था दोषी है.
- इस रिजल्ट के लिए पूरी शिक्षा व्यवस्था कैसे दोषी है?
- पूरे राज्य में योग्य शिक्षकों का अभाव है. शिक्षकों के बहुत पद
खाली हैं. खासकर फिजिक्स, कैमिस्ट्री जैसे विषय के शिक्षकों की कमी है. ऐसे
में स्टूडेंट्स को न तो अच्छी शिक्षा मिल पाती है व न ही परीक्षा की कॉपी
का ठीक से मूल्यांकन हो पाता है. इसलिए ऐसे नतीजे सामने आ रहे हैं.
- हाल के वर्षों में सरकार ने शिक्षकों की बहाली तो की है. शिक्षा के
स्तर को सुधारने के लगातार दावे किये जा रहे हैं. ऐसे में वस्तुस्थिति क्या
है?
- हां, सरकार ने शिक्षकों की बहाली की है. यही नीतिगत मामला है, लेकिन
इसमें बुनियादी गलती हुई है. साल 2006 में पंचायत स्तर पर शिक्षकों की
बहाली हुई थी. उनमें से कई में प्राथमिक योग्यता का घोर अभाव पाया गया.
उसके बाद के वर्षों में भी शिक्षकों की बहाली हुई, लेकिन बहुत की वास्तविक
योग्यता में कमी की बात सामने आयी. मैं कुछ स्कूलों को निजी तौर पर जानता
हूं जहां के शिक्षक अपना सब्जेक्ट ठीक से पढ़ा नहीं पाते. ऐसे में परीक्षा
में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर स्टूडेंट्स न तो सही दे सकेंगे और न ही ये
शिक्षक परीक्षा की कॉपी ठीक से जांच सकेंगे. फिर तो हालत ऐसी ही होगी न,
जैसी है.
- शिक्षा व्यवस्था में और किस तरह की कमी देखते हैं?
- हमारे स्कूलों में अच्छे शिक्षकों के साथ-साथ बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर
की भी कमी है. कई स्कूलों में लाइब्रेरी और लेबोरेटरी का अभाव है. जहां ये
हैं भी तो वहां इनका रख-रखाव ठीक से नहीं है. कई जगह तो स्टूडेंट्स के लिए
ये नियमित रूप से उपलब्ध भी नहीं है. लेबोरेट्री में कहीं उपकरणों की कमी
है, तो कहीं स्टाफ की. ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में बिजली व्यवस्था की
कमी गंभीर समस्या है.
- किस तरह सुधार किया जा सकता है?
- दरअसल पुराने सिलेबस में परिवर्तन कर दिया गया, लेकिन उसके अनुसार
शिक्षकों का ज्ञान अपडेट करवाने की कोई व्यवस्था नहीं बनायी गयी. इसके लिए
समय-समय पर उनका प्रशिक्षण होना चाहिए जिससे कि तत्कालीन परिस्थितियों में
वे विषयों से अवगत रहें. इसका भरपूर लाभ स्टूडेंट्स को मिल सकेगा.
इस बहस में आप भी शामिल हों
राज्य में शिक्षा की मौजूदा स्थिति को कैसे दुरुस्त किया जा सकता
है, यह सवाल आपको भी मथता और परेशान करता होगा. प्रभात खबर आपकी समझ और
दृष्टिकोण को मंच देना चाहता है. `कैसे सुधरे शिक्षा - कैसे बने बेहतर
भविष्य` विषय पर अधिकतम तीन सौ शब्दों में अपना नजरिया अपनी हालिया
तसवीर के साथ हमें kumar.manoj@prabhatkhabar.in पर 9 जून तक मेल कर
दें. हम उम्दा विचारों-नजरिये को आपकी तसवीर के साथ प्रकाशित करेंगे.
कार्ययोजना के साथ अमल भी जरूरी
सुरेंद्र किशोर
वरिष्ठ विश्लेषक
यह अच्छी बात है कि ‘बिहार की डूबती शिक्षा-परीक्षा’ को उबारने के
लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कार्ययोजना तैयार करने का निर्देश शिक्षा
विभाग को दे दिया है. उम्मीद है कि जल्द योजना तैयार होगी और उस पर अमल भी
होगा. पर सवाल है कि क्या किसी भी योजना पर अमल के लिए आज का शासन तंत्र
तैयार है.
क्या तरह-तरह के निहितस्वार्थी तत्व उस पर अमल होने देंगे. याद रहे कि
शिक्षा-परीक्षा का धंधा ताकतवर माफियाओं के लिए अरबों रुपये के मुनाफे का
धंधा बन चुका है. जो हो,पर एक सुंदर सपना पालने में क्या दिक्कत है, पर इस
सपने को कार्य रूप देने के लिए राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोगों के खिलाफ
निर्मम कार्रवाई करने की जरूरत पड़ेगी. मुख्यमंत्री ने सकारात्मक सोच के
साथ पहल की है.
सकारात्मक सोच वाले लोगों को चाहिए कि वे बेहतरी की उम्मीद करें. वैसे
भी शिक्षा को पूरी तरह डूब जाने से बचा लेने के लिए अब कोई समय बचा नहीं
है. दरअसल 1996 के अनुभव के बाद शासन तंत्र से उम्मीद पालना कई लोगों के
लिए कठिन हो रहा है. पटना हाइकोर्ट के सख्त निर्देश और जिला जजों की
प्रत्यक्ष निगरानी में उस साल पूर्णतः कदाचारमुक्त परीक्षाएं हुई थीं. 1
जून, 1996 का अखबार मेरे सामने है. मुख्य शीर्षक है - ‘इंटर विज्ञान में 85
प्रतिशत परीक्षार्थी अनुत्तीर्ण. उप शीर्षक है-मैट्रिक परीक्षा के रिजल्ट
से माध्यमिक शिक्षा की कलई खुली.
पटना जिले में केवल 16 प्रतिशत उत्तीर्ण. उस रिजल्ट के बाद तत्कालीन
शिक्षा मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव ने कहा था कि ‘मैट्रिक और इंटर की
परीक्षाओं के परिणामों से जाहिर हो गया कि बिहार में शिक्षा माफियाओं के
पैर उखड़ गये हैं. फर्जी शिक्षा संस्थान अब स्वतः बंद हो जायेंगे. पर बाद
में मंत्री की यह सदिच्छा पूरी नहीं होने दी गयी. क्योंकि शिक्षा माफिया,
शिक्षा मंत्री से अधिक ताकतवर निकले. शासन की ओर से शिक्षा माफियाओं को
संरक्षण मिल गया. शिक्षा-परीक्षा में बेहतरी का सुनहरा अवसर गंवा दिया
गया.
कहां से शुरू हो सुधार!
वैसे तो उम्मीद है कि बेहतर शिक्षा-परीक्षा के लिए कार्ययोजना तैयार
करने वाले ज्ञानवान लोग पूरे राज्य के लिए एक अच्छी योजना तैयार करेंगे ही.
पर मेरा ध्यान पुराने जिला स्कूलों पर सबसे पहले जाता है.
राज्य में पहले सत्रह जिले थे. कम से कम वहां के जिला स्कूलों के पास
काफी जमीन है. बड़े -बड़े भवन हैं. संभव है कि उनमें ढांचागत सुधार की
जरूरत हो, पर थोड़े ही खर्च से उन्हें एक बार फिर आदर्श शिक्षा केंद्र के
रूप में परिणत किया जा सकता है. नये जिलों में भी अधिक जमीन वाले कोई न कोई
सरकारी स्कूल मिल जायेंगे.
राज्य के उपलब्ध योग्य शिक्षकों की एक बार फिर दक्षता परीक्षा लेकर
उन्हें जिला स्कूलों में तैनात किया जा सकता है. बाहर के राज्यों से भी
शिक्षक मंगाये जा सकते हैं.
कोई भी दक्षता या जांच परीक्षा पूरी कड़ाई और ईमानदारी से ली जाये.
इस ताजा खबर को ध्यान में रखने की जरूरत है कि 2735 शिक्षकों की दक्षता
परीक्षा में सिर्फ 12 सौ ही पास कर पाये हैं.
हालांकि पता नहीं यह दक्षता परीक्षा कितनी कड़ाई से हुई थी ! इस तरह
कुछ अन्य उपायों से जिला स्कूलों को शिक्षा का उत्तम केंद्र बना दिये जाएं
तो वहां से अन्य स्कूलों के लिए अच्छे शिक्षक उपलब्ध होने शुरू हो जायेंगे.
याद रहे कि जब बड़ी संख्या में शिक्षक ही योग्य नहीं मिलेंगे तो
शिक्षा-परीक्षा में सुधार कैसे होगा. अपवादों को छोड़ दें तो अभी ऐसे
शिक्षक बहाल हो रहे हैं जो न तो ठीक से पढ़ा सकते हैं और न ही प्रश्न पत्र
तैयार कर सकते हैं. की-एन्सर तैयार करने वाले शिक्षकों की भी कमी है.
काॅपियों की सही जांच के लिए भी योग्य शिक्षकों की जरूरत है. यही स्थिति
जारी रही, तो कुछ दिनों में चोरी कराने वाले लोगों की भी भारी कमी हो
जायेगी. लगे हाथ इस राज्य के एक वीसी की हाल की उक्ति को दुहरा देने में
कोई हर्ज नहीं है.
उन्होंने कहा था कि पटना के सबसे प्रतिष्ठित काॅलेजों में से एक में
हाल में बहाल होकर एक ऐसे शिक्षक आये हैं जिन्हें प्रिंसिपल शब्द की भी
स्पेलिंग लिखने नहीं आता. ऐसे में लोअर प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों का
क्या हाल होगा ! अनुमान लगाना कठिन नहीं है.
(लेखक जाने-माने पत्रकार हैं. वे जनसरोकार से जुड़े मुद्दों को उठाते रहे हैं व बेबाकी से लिखते रहे हैं)