आईआईटी,आईआईएम, बीआईटी जैसे संस्थान से पढ़ने और बड़े पैकेज वाली नौकरियां
छोड़कर कुछ युवा अपने बिहार के बच्चों के लिए गांवों में घूम रहे हैं। पटना
के कौशिक सराफ और हाजीपुर के प्रमोद कुमार इन्हीं में से एक हैं। इन्होंने
सरकारी स्कूल के बच्चों को पढ़ाने के मकसद के साथ मई 2016 में प्रकाश एकेडमी
की स्थापना की और चल पड़े हैं ग्रामीण बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन देने।
इसकी शुरुआत उन्होंने गोपालगंज जिले से की है। वर्ष 2015 में कई जिलों का मैट्रिक का रिजल्ट खराब रहा था, जिनमें गोपालगंज भी था। इसी कारण कौशिक और प्रमोद ने वहां से अपनी मुहिम शुरू की है। कौशिक ने बीआईटी मेसरा से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन बीई किया और प्रमोद ने आईआईटी बीएचयू से बीटेक और आईआईएम कोझिकोड से मैनेजमेंट कोर्स करने के बाद बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है। बिहार के गांवों के बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए कौशिक ने 2015 में 7.5 लाख के पैकेज की डाटा साइंटिस्ट की नौकरी छोड़ी तो प्रमोद ने तंजानिया में 40 लाख के पैकेज वाली नौकरी।
केंद्र में बच्चों को पढ़ाते प्रमोद कुमार।
एजुकेशन सिस्टम को
मजबूती देने की योजना
कौशिकबताते हैं कि विदेशी कंपनी उबर के लिए काम करने के बाद वो बिहार में कुछ करना चाहते थे। बाद में इंडियन पॉलिटिकल अवेयरनेस कमेटी से जुड़े और बिहार के बारे में जानने को बहुत कुछ मिला। पढ़ाई के लिए अधिकतर वक्त रांची में गुजरा लेकिन बिहार का मोह नहीं गया। यहां के स्कूलों में प्रैक्टिकल और थ्योरी की खराब स्थिति कचोटती रही। तब ईआईएम कोझिकोड से पासआउट प्रमोद कुमार के साथ एक ऐसी एकेडमी शुरू करने का विचार आया जो सुदूर गांवों में भी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराए। इसमें हमने बोर्ड के विद्यार्थियों को टारगेट में रखा।
एकेडमी से पांच महीनों में जुड़े 450 विद्यार्थी
प्रकाशएकेडमी के तहत बीते पांच महीनों में लगभग 450 विद्यार्थी जुड़े हैं। ये सभी विद्यार्थी गोपालगंज जिले के दो केंद्रों से जुड़े हैं। पहला केंद्र गोपालगंज के भोरे प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय, उषा और दूसरा हुसेपुर के शंकर उच्च विद्यालय में खुला। दोनों केंद्रों पर सुबह स्कूल शुरू होने से दो घंटे पहले और शाम को स्कूल के बाद दो घंटे पढ़ाई होती है। हर बच्चे से मासिक 100 रुपए फीस ली जाती है। वहां के शिक्षकों ने भी सपोर्ट किया है। कौशिक ने बताया कि उन्हें हम डिजिटल मोड की ट्रेनिंग दे रहे हैं और प्रोजेक्टर पर वीडियो देखकर बच्चे वो सीख रहे हैं, जो शायद मौजूदा सिस्टम में वो 12वीं के बाद ही देख पाते। अब तक खुले दो केंद्रों का रिस्पांस सकारात्मक रहा है। हमने भविष्य में उन जिलों के बच्चों के बीच केंद्र खोलने की योजना बनाई है, जहां का रिजल्ट अन्य के मुकाबले कमजोर है। धीरे धीरे ऐसे केंद्र पूरे राज्य में खोले जाएंगे, जो बहुत कम सुविधाओं के साथ भी बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन मुहैया करा सकेंगे।
ई-जेड कर रहा इन्क्यूबेट
प्रकाशएकेडमी के स्टार्ट अप आइडिया को बिहार एंटरप्रेन्योर्स एसोसिएशन के इन्क्यूबेशन सेंटर ई-जेड में इन्क्यूबेट किया जा रहा है। बीईए के महासचिव अभिषेक सिंह ने बताया कि यह ऐसा आइडिया है जो सोशल डेवलपमेंट में मदद करेगा। स्टेट गवर्नमेंट ने जो सुविधाएं स्टार्ट अप्स को देने का निर्णय लिया है, इसे भी वे सुविधाएं दिलाने का प्रयास है।
प्रमोद ने बताया कि हमारी एकेडमी को हकीकत में उतारने में राजस्थान के एक सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज के शिक्षक रहे अमन कुमार सिंह का सपोर्ट मिला। उन्होंने करिकुलम डिजाइनिंग में मदद की और 7वीं से लेकर 10वीं तक के पूरे सिलेबस का वीडियो तैयार किया। इसमें थ्योरी के साथ प्रैक्टिकल को भी जोड़ा। इससे हर स्कूल में तुरंत लैब स्थापित करने का खर्च कम हुआ, शिक्षकों की कमी भी दूर हुई। इन वीडियोज को जब यू-ट्यूब पर अपलोड किया गया तो अच्छा रिस्पांस मिला और आगे बढ़ने की हिम्मत भी मिली।
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इसकी शुरुआत उन्होंने गोपालगंज जिले से की है। वर्ष 2015 में कई जिलों का मैट्रिक का रिजल्ट खराब रहा था, जिनमें गोपालगंज भी था। इसी कारण कौशिक और प्रमोद ने वहां से अपनी मुहिम शुरू की है। कौशिक ने बीआईटी मेसरा से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन बीई किया और प्रमोद ने आईआईटी बीएचयू से बीटेक और आईआईएम कोझिकोड से मैनेजमेंट कोर्स करने के बाद बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है। बिहार के गांवों के बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए कौशिक ने 2015 में 7.5 लाख के पैकेज की डाटा साइंटिस्ट की नौकरी छोड़ी तो प्रमोद ने तंजानिया में 40 लाख के पैकेज वाली नौकरी।
केंद्र में बच्चों को पढ़ाते प्रमोद कुमार।
एजुकेशन सिस्टम को
मजबूती देने की योजना
कौशिकबताते हैं कि विदेशी कंपनी उबर के लिए काम करने के बाद वो बिहार में कुछ करना चाहते थे। बाद में इंडियन पॉलिटिकल अवेयरनेस कमेटी से जुड़े और बिहार के बारे में जानने को बहुत कुछ मिला। पढ़ाई के लिए अधिकतर वक्त रांची में गुजरा लेकिन बिहार का मोह नहीं गया। यहां के स्कूलों में प्रैक्टिकल और थ्योरी की खराब स्थिति कचोटती रही। तब ईआईएम कोझिकोड से पासआउट प्रमोद कुमार के साथ एक ऐसी एकेडमी शुरू करने का विचार आया जो सुदूर गांवों में भी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराए। इसमें हमने बोर्ड के विद्यार्थियों को टारगेट में रखा।
एकेडमी से पांच महीनों में जुड़े 450 विद्यार्थी
प्रकाशएकेडमी के तहत बीते पांच महीनों में लगभग 450 विद्यार्थी जुड़े हैं। ये सभी विद्यार्थी गोपालगंज जिले के दो केंद्रों से जुड़े हैं। पहला केंद्र गोपालगंज के भोरे प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय, उषा और दूसरा हुसेपुर के शंकर उच्च विद्यालय में खुला। दोनों केंद्रों पर सुबह स्कूल शुरू होने से दो घंटे पहले और शाम को स्कूल के बाद दो घंटे पढ़ाई होती है। हर बच्चे से मासिक 100 रुपए फीस ली जाती है। वहां के शिक्षकों ने भी सपोर्ट किया है। कौशिक ने बताया कि उन्हें हम डिजिटल मोड की ट्रेनिंग दे रहे हैं और प्रोजेक्टर पर वीडियो देखकर बच्चे वो सीख रहे हैं, जो शायद मौजूदा सिस्टम में वो 12वीं के बाद ही देख पाते। अब तक खुले दो केंद्रों का रिस्पांस सकारात्मक रहा है। हमने भविष्य में उन जिलों के बच्चों के बीच केंद्र खोलने की योजना बनाई है, जहां का रिजल्ट अन्य के मुकाबले कमजोर है। धीरे धीरे ऐसे केंद्र पूरे राज्य में खोले जाएंगे, जो बहुत कम सुविधाओं के साथ भी बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन मुहैया करा सकेंगे।
ई-जेड कर रहा इन्क्यूबेट
प्रकाशएकेडमी के स्टार्ट अप आइडिया को बिहार एंटरप्रेन्योर्स एसोसिएशन के इन्क्यूबेशन सेंटर ई-जेड में इन्क्यूबेट किया जा रहा है। बीईए के महासचिव अभिषेक सिंह ने बताया कि यह ऐसा आइडिया है जो सोशल डेवलपमेंट में मदद करेगा। स्टेट गवर्नमेंट ने जो सुविधाएं स्टार्ट अप्स को देने का निर्णय लिया है, इसे भी वे सुविधाएं दिलाने का प्रयास है।
प्रमोद ने बताया कि हमारी एकेडमी को हकीकत में उतारने में राजस्थान के एक सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज के शिक्षक रहे अमन कुमार सिंह का सपोर्ट मिला। उन्होंने करिकुलम डिजाइनिंग में मदद की और 7वीं से लेकर 10वीं तक के पूरे सिलेबस का वीडियो तैयार किया। इसमें थ्योरी के साथ प्रैक्टिकल को भी जोड़ा। इससे हर स्कूल में तुरंत लैब स्थापित करने का खर्च कम हुआ, शिक्षकों की कमी भी दूर हुई। इन वीडियोज को जब यू-ट्यूब पर अपलोड किया गया तो अच्छा रिस्पांस मिला और आगे बढ़ने की हिम्मत भी मिली।
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