बगहा (पचं), जासं। जीवन के भागदौड़ में खुद का चैन सुकून कहीं गुम सा हो गया है, लेकिन इस बगिया में पहुंचते ही ऐसा लगता मानो किसी ऐसी दुनिया में पहुंच गये हों जहां जुबां नहीं, भावनाओं की भाषा बोली और समझी जाती है। इस बगिया में आशियाना बनाकर रहने वाले तोता, मैना, बुलबुल समेत अन्य सभी पक्षी उस शिक्षक के परिवार के सदस्य हैं जिन्होंने शिक्षादान को ही जीवनध्येय बना लिया।
बात हो रही राजकीय पुरस्कार के लिए चयनित सहकारी प्रोजेक्ट बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पठखौली की विज्ञान शिक्षक डा रहमत यास्मीन की। मूल रूप से बेतिया की रहने वाली डा यास्मीन के पिता डा रहमतुल्लाह बतौर चिकित्सक जीवन भर समाज की सेवा करते रहे। दो भाइयों की लाडली बहन डा यास्मीन का जन्म वर्ष 1971 में हुआ।
बच्चियों ने दिखाई विज्ञान में रुचि
यास्मीन की शुरू से ही विज्ञान के प्रति रुचि रही। स्वजन ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और माहौल भी मिला। विज्ञान विषय से प्रतिष्ठा की डिग्री हासिल करने के बाद वर्ष 2009 में उन्होंने बतौर शिक्षक योगदान किया। नौकरी में आने के बाद उन्होंने बच्चियों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू किया। सुखद परिणाम सामने आए, कई बच्चियों ने विज्ञान में रुचि दिखानी शुरू की। वर्ष 2015-16 से लेकर लगातार अगले कुछ वर्षो तक छात्राओं ने राष्ट्रीय स्तर पर विज्ञान प्रदर्शनी में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
शिक्षा के मर्म को समझा
विद्यालय की पूर्व प्रधान शिक्षक प्रतिमा सिंह बताती हैं कि डा यास्मीन ने शिक्षा के मर्म को समझा। उन्होंने हमेशा खुद को समाज के लिए जिया। ये बगहा के लिए गौरव का क्षण है, वो इस सम्मान की हकदार हैं। डा यास्मीन ने खुद को दाम्पत्य जीवन से अलग रखा। ताकि परिवारिक बेड़ियां उन्हें कर्तव्य पथ से विमुख न कर सके।
बावजूद इसके, डा यास्मीन की घर की छत पर एक बेहद मनमोहक बगिया आबाद है। करीब दो दर्जन पक्षियों ने यहां खुद का आशियाना बना रखा है। एक 20 साल पुराना बरगद का पेड़ आज भी गमले में ही शान से खड़ा है, मानो कसम खा रखी हो कि जीवन में कभी बूढ़ा नहीं होना है, डा यास्मीन के संकल्प, विश्वास और समरस समाज के सपने की तरह...।