नई दिल्ली : बिहार के 3.7 लाख नियोजित शिक्षकों के मामले में राज्य सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट
में अब मंगलवार को अगली सुनवाई होगी. जस्टिस एएम सप्रे और जस्टिस यूयू
ललित की पीठ में गुरुवार को बिहार सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान
ने पक्ष रखा.
वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए, क्योंकि इस मामले में कुछ ऐसे संवैधानिक तथ्य हैं, जिनकी सुनवाई संविधान पीठ ही कर सकती है. इसपर कोर्ट ने कहा कि मामले को संविधान पीठ भेजने पर हम आगे विचार करेंगे, लेकिन आप फिलहाल मेरिट पर बहस करें.
राज्य सरकार ने कहा कि प्रदेश में शिक्षा का स्तर बढ़ने से व्यापक असर लड़कियों की शिक्षा पर पड़ा है और 12वीं पास लड़कियों को रोजगार के अवसर मिले हैं. इससे लड़कियों में शिक्षा के प्रति झुकाव के साथ-साथ समाज में लड़कियों के प्रति शिक्षा का दायरा बढ़ा है.
दरअसल, पिछली सुनवाई यानी बुधवार को राज्य सरकार ने कहा था कि शिक्षा के बेहतरी के लिए संविधान में संशोधन कर शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में लागू किया जोकि एक सतत पॉलिसी प्रकिया थी. साल 2002 के बाद से शिक्षा के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत हुई. राज्य सरकार का उद्देश्य था कि राज्य का हर एक बच्चा स्कूल पहुंचे और ऐसा हुआ भी, इससे पहले 23 लाख बच्चे स्कूल की पहुंच से बाहर थे लेकिन आज की तारीख में महज़ एक लाख से भी कम बच्चे स्कूल से दूर हैं, इसके पीछे राज्य सरकार की पहल ही थी जोकि नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति कर शिक्षा का दायर बढ़ाया. राज्य सरकार ने कहा था कि नियोजित शिक्षकों के समान वेतन से ज्यादा जरूरी हर बच्चे तक शिक्षा को पहुंचाना है.
'अबतक 15 गुना बढ़ाया शिक्षकों का वेतन'
राज्य सरकार ने बुधवार को ये भी कहा कि इन शिक्षकों की नियुक्ति 2006 से प्रारंभ करना शुरू किया गया था. करीब 3.5 लाख नए नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति की गई. इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति एक तय वेतन में शिक्षा के बेहतरी के लिए किया गया. ऐसे में जहां पहले एक लाख शिक्षकों की नियुक्ति हुआ करती थी वहां अपने बजट के हिसाब से सरकार ने 3.5 लाख शिक्षक की नियुक्ति की तो इसमें गलत क्या है?
राज्य सरकार ने कहा कि जहां तक इन नियोजित शिक्षकों के वेतन का सवाल है ऐसा नहीं है कि हमने इनका वेतना नहीं बढ़ाया है. इन शिक्षकों की नियुक्ति से लेकर अबतक 15 गुना वेतन में बढ़ोतरी की गई है. इन शिक्षकों की नियुक्ति 1500 रूपए में की गई थी 2006 से अबतक 25000 वेतन इन शिक्षकों का हो चुका है. वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि जहां तक भविष्य का सवाल है साल दर साल राज्य सरकार इनकी सैलरी में बढ़ोतरी करेगी.
'समान वेतन दिया तो स्कूलों को बंद करना पड़ जाएगा'
मंगलवार को बिहार सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने पक्ष रखना शुरू किया था.वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा था कि राज्य सरकार आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है कि इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन दे सके.अगर इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया तो स्कूलों को बंद करना पड़ जाएगा. लिहाजा राज्य सरकार इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन देने में सक्षम नहीं है.राज्य सरकार ने कहा था कि जिन लोगों की तुलना की जा रही है वो पुराने टाइम के कैडर शिक्षक है, इसलिए उनके साथ इनकी तुलना नहीं की जा सकती.
'राज्य सरकार आर्थिक तौर पर सक्षम नहीं'
बिहार सरकार के वकील दिनेश द्विवेदी ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि राज्य सरकार आर्थिक तौर सक्षम नहीं है कि इन शिक्षकों को समान वेतन दे.राज्य सरकार ने कहा था कि 1981 में जिन शिक्षकों की नियुक्ति शिक्षा विभाग की ओर से की गई थी उनकी तुलना 2006 के इन नियोजित शिक्षकों से नहीं की जा सकती. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा था कि इन स्कूलों को कौन चलाता है, स्कूलों को चलाने का जिम्मा राज्य सरकार के पास है? राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया था कि ये पंचायत स्कूल है, इन्हें पंचायत चलाती है.कोर्ट ने कहा था कि इस मतलब है कि राज्य सरकार ने इन स्कूलों को चलाने का जिम्मा लोकल बॉडी को दे रखा है.
'बिहार सरकार को केंद्र का मिला था समर्थन'
दरअसल, पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार का समर्थन करते हुए समान कार्य के लिए समान वेतन का विरोध किया था. कोर्ट में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार के स्टैंड का समर्थन किया था.केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर 36 पन्नों के हलफनामे में कहा गया था कि इन नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दियाजा सकता क्योंकि समान कार्य के लिए समान वेतन के कैटेगरी में ये नियोजित शिक्षक नहीं आते.ऐसे में इन नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों की तर्ज पर समान कार्य के लिए समान वेतन अगर दिया भी जाता है तो सरकार पर प्रति वर्ष करीब 36998 करोड़ का अतिरिक्त भार आएगा. केंद्र ने इसके पीछे यह तर्क दिया था कि बिहार के नियोजित शिक्षकों को इसलिए लाभ नहीं दिया जा सकता क्योंकि बिहार के बाद अन्य राज्यों की ओर से भी इसी तरह की मांग उठने लगेगी.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, बिहार में करीब 3.7 लाख नियोजित शिक्षक काम कर रहे हैं। शिक्षकों के वेतन का 70 फीसदी पैसा केंद्र सरकार और 30 फीसदी पैसा राज्य सरकार देती है.वर्तमान में नियोजित शिक्षकों (ट्रेंड) को 20-25 हजार रुपए वेतन मिलता है. अगर समान कार्य के बदले समान वेतन की मांग मानली जाती है तो शिक्षकों का वेतन 35-44 हजार रुपए हो जाएगा.
वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए, क्योंकि इस मामले में कुछ ऐसे संवैधानिक तथ्य हैं, जिनकी सुनवाई संविधान पीठ ही कर सकती है. इसपर कोर्ट ने कहा कि मामले को संविधान पीठ भेजने पर हम आगे विचार करेंगे, लेकिन आप फिलहाल मेरिट पर बहस करें.
राज्य सरकार ने कहा कि प्रदेश में शिक्षा का स्तर बढ़ने से व्यापक असर लड़कियों की शिक्षा पर पड़ा है और 12वीं पास लड़कियों को रोजगार के अवसर मिले हैं. इससे लड़कियों में शिक्षा के प्रति झुकाव के साथ-साथ समाज में लड़कियों के प्रति शिक्षा का दायरा बढ़ा है.
दरअसल, पिछली सुनवाई यानी बुधवार को राज्य सरकार ने कहा था कि शिक्षा के बेहतरी के लिए संविधान में संशोधन कर शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में लागू किया जोकि एक सतत पॉलिसी प्रकिया थी. साल 2002 के बाद से शिक्षा के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत हुई. राज्य सरकार का उद्देश्य था कि राज्य का हर एक बच्चा स्कूल पहुंचे और ऐसा हुआ भी, इससे पहले 23 लाख बच्चे स्कूल की पहुंच से बाहर थे लेकिन आज की तारीख में महज़ एक लाख से भी कम बच्चे स्कूल से दूर हैं, इसके पीछे राज्य सरकार की पहल ही थी जोकि नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति कर शिक्षा का दायर बढ़ाया. राज्य सरकार ने कहा था कि नियोजित शिक्षकों के समान वेतन से ज्यादा जरूरी हर बच्चे तक शिक्षा को पहुंचाना है.
'अबतक 15 गुना बढ़ाया शिक्षकों का वेतन'
राज्य सरकार ने बुधवार को ये भी कहा कि इन शिक्षकों की नियुक्ति 2006 से प्रारंभ करना शुरू किया गया था. करीब 3.5 लाख नए नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति की गई. इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति एक तय वेतन में शिक्षा के बेहतरी के लिए किया गया. ऐसे में जहां पहले एक लाख शिक्षकों की नियुक्ति हुआ करती थी वहां अपने बजट के हिसाब से सरकार ने 3.5 लाख शिक्षक की नियुक्ति की तो इसमें गलत क्या है?
राज्य सरकार ने कहा कि जहां तक इन नियोजित शिक्षकों के वेतन का सवाल है ऐसा नहीं है कि हमने इनका वेतना नहीं बढ़ाया है. इन शिक्षकों की नियुक्ति से लेकर अबतक 15 गुना वेतन में बढ़ोतरी की गई है. इन शिक्षकों की नियुक्ति 1500 रूपए में की गई थी 2006 से अबतक 25000 वेतन इन शिक्षकों का हो चुका है. वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि जहां तक भविष्य का सवाल है साल दर साल राज्य सरकार इनकी सैलरी में बढ़ोतरी करेगी.
'समान वेतन दिया तो स्कूलों को बंद करना पड़ जाएगा'
मंगलवार को बिहार सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने पक्ष रखना शुरू किया था.वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा था कि राज्य सरकार आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है कि इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन दे सके.अगर इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया तो स्कूलों को बंद करना पड़ जाएगा. लिहाजा राज्य सरकार इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन देने में सक्षम नहीं है.राज्य सरकार ने कहा था कि जिन लोगों की तुलना की जा रही है वो पुराने टाइम के कैडर शिक्षक है, इसलिए उनके साथ इनकी तुलना नहीं की जा सकती.
'राज्य सरकार आर्थिक तौर पर सक्षम नहीं'
बिहार सरकार के वकील दिनेश द्विवेदी ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि राज्य सरकार आर्थिक तौर सक्षम नहीं है कि इन शिक्षकों को समान वेतन दे.राज्य सरकार ने कहा था कि 1981 में जिन शिक्षकों की नियुक्ति शिक्षा विभाग की ओर से की गई थी उनकी तुलना 2006 के इन नियोजित शिक्षकों से नहीं की जा सकती. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा था कि इन स्कूलों को कौन चलाता है, स्कूलों को चलाने का जिम्मा राज्य सरकार के पास है? राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया था कि ये पंचायत स्कूल है, इन्हें पंचायत चलाती है.कोर्ट ने कहा था कि इस मतलब है कि राज्य सरकार ने इन स्कूलों को चलाने का जिम्मा लोकल बॉडी को दे रखा है.
'बिहार सरकार को केंद्र का मिला था समर्थन'
दरअसल, पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार का समर्थन करते हुए समान कार्य के लिए समान वेतन का विरोध किया था. कोर्ट में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार के स्टैंड का समर्थन किया था.केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर 36 पन्नों के हलफनामे में कहा गया था कि इन नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दियाजा सकता क्योंकि समान कार्य के लिए समान वेतन के कैटेगरी में ये नियोजित शिक्षक नहीं आते.ऐसे में इन नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों की तर्ज पर समान कार्य के लिए समान वेतन अगर दिया भी जाता है तो सरकार पर प्रति वर्ष करीब 36998 करोड़ का अतिरिक्त भार आएगा. केंद्र ने इसके पीछे यह तर्क दिया था कि बिहार के नियोजित शिक्षकों को इसलिए लाभ नहीं दिया जा सकता क्योंकि बिहार के बाद अन्य राज्यों की ओर से भी इसी तरह की मांग उठने लगेगी.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, बिहार में करीब 3.7 लाख नियोजित शिक्षक काम कर रहे हैं। शिक्षकों के वेतन का 70 फीसदी पैसा केंद्र सरकार और 30 फीसदी पैसा राज्य सरकार देती है.वर्तमान में नियोजित शिक्षकों (ट्रेंड) को 20-25 हजार रुपए वेतन मिलता है. अगर समान कार्य के बदले समान वेतन की मांग मानली जाती है तो शिक्षकों का वेतन 35-44 हजार रुपए हो जाएगा.