सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में पंचायत के जरिए चुने गए शिक्षकों को नियमित
अध्यपकों के बराबर वेतन देने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर
दिया है, कोर्ट ने एक समान वेतन देने के मामले में मुख्य सचिव की अध्यक्षता
कमेटी बनाने का आदेश दिया और कहा कि कमेटी देखे की इन शिक्षकों को
नियमितों के समान वेतन देने के लिए क्या कुछ और टेस्ट आदि लिए जा सकते हैं।
अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी।
जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की पीठ ने कहा वेतन आज नहीं तो कल बराबर
तो करना ही होगा। ये शिक्षक राज्य में कुल शिक्षकों का 60%है। कोर्ट ने कहा
ये असमानता उचित नहीं है। उन्हे बराबरी पर लाना ही होगा।
पंचायत के जरिए 2006 में और इससे पूर्व चुने गए 3.5 लाख शिक्षकों को एक
समान वेतन देने के लिए सरकार को 10,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने
होंगे। इन शिक्षकों को सरकार अभी 6000 रुपये प्रति माह देती है जबकि नियमित
शिक्षकों को 50,000 रुपये प्रति माह मिलते हैं।
पटना हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि जब स्कूल एक है, योग्यता एक है, बच्चे
एक है, काम भी एक है तो वेतन में असमानता क्यों। राज्य सरकार ने इस आदेश
को चुनौती दी है। कहा है कि इससे राज्य पर 28,000 करोड़ रुपये का भार
पड़ेगा।
इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को भी पार्टी बना दिया
है और एएसजी पीएस नरसिम्हा से कहा है कि वह सुनवाई के दौरान कोर्ट में
मौजूद रहें।
राज्य की और से अधिवकता गोपाल सिंह, गोपाल सुब्रह्मण्ययम ने मुकुल
रोहतगी बहस की। उन्होंने कहा कि पंचायत शिक्षकों का काम एक जैसा नहीं है वह
पंचायत क्षेत्र में ही रहते हैं जबकि नियमितों का राज्य भर में तबादला
होता है। वहीं उनका चयन भी उतना कठिन नहीं होता। उनके लिए एक पब्लिक नोटिस
निकाला जाता है और मेरिट पर चयन कर लिया जाता है।
पीठ ने कहा की यह अब सामान्य हो गया है पहले काम वेतन पर भर्ती कर लो और
फिर उन्हें निकालने की बात करो। यह नहीं होगा आप को इन्हें वेतन देना ही
होगा।
पटना हाईकोर्ट ने 31अक्टूबर 2017 को दिए आदेश में इन शिक्षकों को नियमितों के बराबर वेतन देने का आदेश दिया था।
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