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शिक्षकों के दर्द को सुनने वाला कोई नहीं

मुजफ्फरपुर। वेतनमान व नियोजित शिक्षकों के बीच वेतन विसंगति ने आर्थिक एवं सामाजिक रूप से बहुत बड़ी खाई पैदा कर दी है। नियोजित शिक्षकों की इस पीड़ा को दूर करने वाला कोई नहीं है। सरकार व समाज का नजरिया भी नियोजित शिक्षकों के प्रति अच्छा नहीं है।

उम्मीदों पर फिरा पानी
मध्य विद्यालय चकिया कुढ़नी के धर्मेश प्रसाद गुप्ता का कहना है कि बड़ी उम्मीद से इस पेशे में आया। लेकिन शिक्षकों की इतनी दुर्दशा का अंदाजा नहीं था। आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है। शिक्षक छह महीने से वेतन का इंतजार कर रहे हैं।
शिक्षकों का शोषण
मध्य विद्यालय रोहुआ के महेंद्र प्रसाद सिंह का कहना है शिक्षक राष्ट्र निर्माता होते हैं। लेकिन आर्थिक युग में शिक्षकों का शोषण किया जा रहा है। सम्मानजक वेतन भी नहीं मिलता है। ऐसे में जीवन यापन में भी परेशानी हो रही है।
समय पर वेतन मयस्सर नहीं
मध्य विद्यालय सकरी के डॉ. संजय कुमार का कहना है कि स्कूल में दो तरह के शिक्षक हैं। एक अधिक वेतन पाने वाले तो दूसरा अल्प वेतन वाले। अल्प वेतन वाले शिक्षक को समय पर वेतन नहीं मिलता है। इसकी चिंता सरकार व शिक्षा विभाग को नहीं है।
शिक्षक को नहीं मिल रहा सम्मान
मध्य विद्यालय तैलिया के डॉ. सुबोध कुमार का कहना है कि अपने बच्चे को शिक्षक बनाने की प्रेरणा नहीं देंगे। क्योंकि शिक्षक को सामाजिक प्रतिष्ठा भी नहीं मिल रही है। उन्हें हेय दृष्टि से देखा जा रहा है।
शिक्षण के प्रति रुझान बढ़ाने की जरूरत
मध्य विद्यालय आदर्श सरैया के वीर प्रसाद ठाकुर का कहना है कि शिक्षा पेशा के प्रति रुझान बढ़ाने की जरूरत है। आज के युवा शिक्षक नहीं बनना चाहते। ऐसे में हम बेहतर राष्ट्र निर्माण की कल्पना कैसे कर सकते हैं।
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी योजनाएं

मध्य विद्यालय करमचंद्र रामपुर बलड़ा के राकेश कुमार कहते हैं कि शिक्षा के स्तर में गिरावट के लिए सिस्टम पूरी तरह जिम्मेदार है। सुधार के नाम पर जो योजनाएं बनती हैं वो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। स्कूल में शिक्षक नहीं, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात की जा रही है।
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