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जमीन तो मिली, नहीं हो रही साहबों की मेहरवानी

सुपौल। एक तरफ जहा केंद्र से लेकर सूबे की सरकार तक प्राथमिक व मध्य विद्यालयों को सुविधा संपन्न बनाने की गरज से करोड़ों रूपये व्यय कर रही है। वहीं पाच साल पूर्व से संचालित प्रावि मुस्लिम मुसहरी टोला चुन्नी के छात्रों को एक अदद छत तक उपलब्ध नहीं हो पाया है।
बेहतर छात्रोपस्थिति के लिए पहचान रखने वाले इस विद्यालय की विडंबना है कि पहले तो भूमि के लिए आसमान की ओर टकटकी लगाए रहना पड़ा और अब दो गरीबों की झोली से जब तीन कट्ठा दो धूर जमीन उपलब्ध भी हुआ है तो विभाग मेहरबान नहीं हो रहा। आखिर कार गरीब ही बच्चों के लिए मेहरबान हुए। वर्षो तक दान स्वरूप भूमि के लिए प्रतीक्षारत रहने के बाद भी फलाफल नहीं निकलता देख समीप के महादलित कृपानंद एवं सदानंद सरदार ने अपनी पसीने की कमाई से अर्जित भूमि बच्चों के लिए दान कर दी है। बावजूद इसके रेवड़ी की तरह भवन
आवंटित करने वाला शिक्षा विभाग इस विद्यालय के बच्चों के दर्द में शामिल नहीं हो पाया है। हालात पर गौर करें तो प्रखंड में ऐसे दर्जनों विद्यालय हैं जहा पर्याप्त वर्ग कक्ष की उपलब्धता हासिल थी। इतना ही नहीं कई ऐसे विद्यालय भी हैं जहा पूर्व की आवंटित राशि से भवन का निर्माण अधर में लटका है। बावजूद इसके ऐसे विद्यालयों को अतिरिक्त वर्ग कक्ष के निर्माण हेतु राशि आवंटित कर दी गयी। लेकिन चंद विद्यालय जिसके बच्चे पेड़ अथवा खुले आसमान के नीचे वर्षो से पठन पाठन को विवश हो रहे हैं को एक अदद छत मयस्सर कराने हेतु विभाग गंभीर नहीं हो पा रहा है। विद्यालय की बात करें तो इस विद्यालय में कुल 275 बच्चे नामाकित हैं जिसमें 200 से 225 छात्रोपस्थिति दैनिकी होती है। भवन के अभाव में सालों तक पेड़ के नीचे संचालित इस विद्यालय को तीन माह पूर्व

निबंधित भूमि पर ले जाया गया है जहा सहयोग राशि से छत्ती चढ़ाकर पठन पाठन को सुचारू रखा गया है। वह भी तब हुआ जब विद्यालय के लिए आवंटित शौचालय निर्माण की राशि लौट जाने को हुई। अब विद्यालय तो संचालित हो गया लेकिन भवन के अभाव में एमडीएम से वंचित यहा के बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन योजना अभी भी दिवा स्वप्न साबित हो रहा है। सरकार का बच्चों को पौष्टिक व गुणवत्तापूर्ण मध्यान्ह भोजन खिलाने के पीछे बेहतर उपस्थिति का राज भी है। लेकिन यहा तो बिना एमडीएम व भवन के ही बेहतर उपस्थिति दर्ज हो रही है। सो विभाग भी मौन साधे हुए है। विद्यालय के प्रधान मो. तमीजउद्दीन बताते हैं कि बारंबर अनुरोध के बावजूद वर्ग कक्ष भवन हेतु ध्यान नहीं दिया जा रहा। जबकि अभिभावक इसके लिए उन्हें ही दोषी ठहराते हैं। बताया कि पठन पाठन के लिए विद्यालय में चार शिक्षकों का पदस्थापन है जिन्हें बैठने के लिए कुर्सी तक उपलब्ध नहीं है। सो शिक्षक झोला लेकर आते हैं और कुर्सी अभिभावकों को जिम्मा लगा चले जाते हैं। यही दैनिकी विद्यालय संचालन का रूटीन बन गया है।

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