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पढ़ाई का स्तर तो सुधरे : बिहार शिक्षक नियोजन Latest Updates

चुनावी साल में तकरीबन चार लाख नियोजित शिक्षकों की बहुप्रतीक्षित वेतनमान संबंधी मांग तो राज्य सरकार ने पूरी कर दी है, परंतु न तो शिक्षा विभाग ने इन्हें पढ़ाई की गुणवत्ता में सुधार करने का संकल्प दिलाया और न ही इस बाबत गुरुजी ने कोई स्वत:स्फूर्त निर्णय लिया। प्राथमिक और जूनियर विद्यालयों में मास्टर साहब पढ़ाई के प्रति कितने संजीदा रहते हैं, यह हर कोई अच्छी तरह जानता है।
अभी तक स्थिति यह थी कि शिक्षा विभाग के अफसर भी इनसे पढ़ाई संबंधी सवाल पर गंभीरता से पेश नहीं आते थे, क्योंकि वेतन की जगह इन्हें मानदेय दिया जाता था। इस तरह बहुत कम पैसा पाने वाले इन शिक्षकों पर पढ़ाई की गुणवत्ता को लेकर अफसरों की ओर से कड़ाई की कोई कायदे की व्यवस्था नहीं थी, लेकिन इन्हें जब राज्य कर्मचारी का दर्जा दे दिया गया है तो शिक्षा की गुणवत्ता पर भी नए सिरे से मंथन कर इनकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए। नियोजित के नाम पर शिक्षकों की नियुक्ति के पीछे सरकार की मंशा ग्रामीण स्तर पर पढ़े-लिखे लोगों को उनके घर के पास ही रोजगार उपलब्ध कराने की थी, इसीलिए मुखिया तक को नियोजन इकाई में शामिल रखा गया था। नियोजित शिक्षकों की जब भी नियुक्तियां हुईं, सरकार को कोई न कोई फजीहत झेलनी पड़ी। शिक्षा विभाग तो खुद यह मानता है कि चार लाख नियोजित शिक्षकों में पचास-साठ हजार ऐसे हैं जिन्होंने फर्जी शैक्षिक प्रमाण पत्र लगाएं हैं। हाल ही में हाईकोर्ट ने इस संबंध में जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कड़ाई की थी और फर्जी शिक्षकों को खुद इस्तीफा देने पर माफी देने का मौका दिया था, परिणामस्वरूप छह हजार से ज्यादा शिक्षकों ने त्यागपत्र भी दिए। बावजूद बड़ी संख्या में मौजूद फर्जी शिक्षकों के कानों में जूं नहीं रेंग रही। सरकार की ओर से निगरानी को इनकी पहचान करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
प्राथमिक और जूनियर विद्यालयों में पढ़ाई के स्तर को देखें तो सिर्फ शिक्षकों को दोष देना ही सही नहीं होगा। संसाधन के लिहाज से दोष सरकार का भी है, गांव-गिरांव बड़ी संख्या में विद्यालय भवनविहीन हैं, खुले आसमान के नीचे कक्षाएं लगती हैं। केंद्र सरकार की योजना के तहत बच्चों को मिड डे मील देने की व्यवस्था है, परंतु अधिकांश विद्यालयों में भोजन बनाने को किचन ही नहीं हैं। ऐसे में अक्सर भोजन में गड़बड़ी की शिकायतें प्रकाश में आती हैं। आंकड़ों में सूबे में अप्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या सत्तर हजार के आसपास है। नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) ने सरकारी विद्यालयों के इन हजारों अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण देने के लिए शिक्षा विभाग को अल्टीमेटम दिया है। एनसीटीई के पत्र में यह जिक्र है कि राज्य में 62031 प्रारंभिक शिक्षक अप्रशिक्षित हैं। इनमें स्नातक ग्रेड के 14 हजार अप्रशिक्षित शिक्षक शामिल हैं। इसी तरह अप्रशिक्षित माध्यमिक शिक्षकों की संख्या 4462 और 3058 अप्रशिक्षित उच्च माध्यमिक शिक्षक हैं। आंकड़ों से साफ है कि इतनी बड़ी संख्या में अप्रशिक्षित शिक्षकों के बूते पढ़ाई का स्तर क्या होगा? एनसीटीइ ने भी इसपर आपत्ति जतायी है, कहा गया है कि अगले सत्र से केवल ट्रेंड शिक्षक पढ़ाएंगे। यह सच है कि नियोजित शिक्षकों ने मानदेय व्यवस्था से निजात के लिए सालों संघर्ष किया, कई बार प्रदर्शन के दौरान पुलिस की लाठियां भी खाईं और हड़ताल कर सरकार को वेतनमान देने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन अब उन्हें पढ़ाई में सुधार पर भी ध्यान देना चाहिए, ताकि बिहारी मेधा चमकती रहे।
[स्थानीय संपादकीय: बिहार]

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