माननीय उच्च न्यायालय, बिहार ने सरकार को शिक्षकों की हड़ताल को तोड़ने के
लिए पूरे 15 दिनों का समय दिया। बिहार सरकार ने न्यायालय द्वारा दी गई
"सहूलियत" का बेहतरीन उपयोग करते हुए हमारे तथाकथित "महासंग्राम" की मिट्टी
पलीत कर दी।
ध्यान दीजिएगा- न्यायालय ने सरकार से ये नहीं कहा कि वह नियोजित शिक्षकों की समस्याओं को समझते हुए उसके निवारण का कोई प्रयास करे। "हड़ताल खत्म करे सरकार" कहकर फौरी तौर पर न्यायालय ने राज्य की विधि-व्यवस्था में अपनी भूमिका निभाने का स्वांग भी निभा लिया, अपनी किरकिरी होने से भी बच गया और अप्रत्यक्ष रूप से नियोजित शिक्षकों की माँग का विरोध भी कर दिया (क्या हम ये कह सकते हैं कि न्यायालय सरकार के पक्ष में खड़ी दिखी?)।
सरकार इस बात से बखूबी वाक़िफ़ थी कि शिक्षकों को न्यायालय का रास्ता मालूम नहीं है, या फिर वह जानती थी कि वह आसानी से न्यायालय को अपने पक्ष में खड़ा कर सकती है।
नतीजा सबके सामने है.....
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