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Teacher transfer policy: ये विकल्प तो है ही नहीं'...BPSC टीचर ट्रांसफर पॉलिसी बना जी का जंजाल, शिक्षकों का छलका दर्द

 जमुई:- बिहार में सक्षमता पास शिक्षकों के लिए नई ट्रांसफर पॉलिसी परेशानी का सबब बन गई है. ट्रांसफर के लिए इच्छुक शिक्षकों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. महिला शिक्षकों को अपने मायके, ससुराल या गृह जिले के आसपास पोस्टिंग का विकल्प नहीं मिल रहा है.

शिक्षक रंजीत सिंह ने बताया कि पहले इन शिक्षकों को आश्वासन दिया गया था कि उन्हें अपने घर के नजदीक ट्रांसफर के लिए आवेदन का मौका मिलेगा. लेकिन अब जब ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया शुरू हुई, तो शिक्षकों ने पाया कि उन्हें इस विकल्प से वंचित कर दिया गया है. शिक्षकों का कहना है कि यह ट्रांसफर पॉलिसी एक तरह से मजाक बनकर रह गई है, क्योंकि इसमें उनकी असली जरूरतों को नजरअंदाज कर दिया गया है.

पत्नी के जिले में पति की नहीं हो पाएगी पोस्टिंग
रंजीत सिंह ने Local 18 को बताया कि नई नीति के अनुसार, महिला और पुरुष दोनों शिक्षकों के लिए उनके पति या पत्नी के गृह जिले वाले पंचायत या अनुमंडल में पोस्टिंग का कोई विकल्प नहीं है. महिला शिक्षकों को केवल 10 पंचायतों का विकल्प दिया गया है, लेकिन इसमें उनके अपने मायके और ससुराल के आसपास के क्षेत्र शामिल नहीं किए गए हैं. पुरुष शिक्षकों को भी अपने गृह अनुमंडल या पत्नी के गृह अनुमंडल में पोस्टिंग का विकल्प नहीं मिल रहा है. यही नहीं, वर्तमान में जहां शिक्षक तैनात हैं, उस पंचायत या नगर निकाय का विकल्प भी उनके लिए ट्रांसफर में उपलब्ध नहीं है. शिक्षकों का कहना है कि यह पॉलिसी उनके साथ एक तरह से अन्याय है, क्योंकि अब उन्हें अपने परिवार से दूर स्थानांतरित होकर काम करना पड़ेगा.

महिला शिक्षकों के लिए हो रही है अधिक परेशानी
शिक्षक रंजीत सिंह लोकल 18 को बताते हैं कि कई महिला शिक्षिकाएं अपने मायके में रहकर नौकरी कर रही थीं और उम्मीद थी कि ट्रांसफर के बाद उन्हें ससुराल के नजदीक पोस्टिंग मिलेगी. लेकिन नई नीति ने उनकी इस उम्मीद को तोड़ दिया है. महिला शिक्षकों का कहना है कि घरवालों के साथ रहने से उनका मानसिक और भावनात्मक सहारा मिलता था, जो अब दूर हो जाएगा. इसके अलावा, नई नीति में यह भी प्रावधान है कि अगर दिए गए 10 पंचायतों में रिक्तियां नहीं हैं, तो विभाग अपने हिसाब से स्थानांतरण करेगा. शिक्षकों का मानना है कि यह ट्रांसफर पॉलिसी उनके लिए सिरदर्द बन गई है और इसमें पारदर्शिता की कमी स्पष्ट रूप से नजर आ रही है.

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