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बिहार के स्कूलों में बंद हो गई खेल की घंटी

बच्चों को स्वस्थ व तंदुरुस्त बनाने के लिए स्कूलों में बजने वाली खेल की घंटी अब आवाज नहीं देती। खेल सामानों की कमी और शारीरिक शिक्षकों के नहीं रहने से खेलकूद का कार्यक्रम स्कूल में नहीं होता है। खेल की घंटी में शिक्षक या तो सामान्य विषय पढ़ाते हैं या गपशप में समय काट लेते हैं।
हालांकि डीईओ का कहना है कि वह खेल के विकास के लिए प्रयासरत हैं।
मध्य विद्यालयों से लेकर हाईस्कूल तक खेलकूद की घंटी नहीं होती है। मध्य विद्यालयों को खेल के सामान खरीदने के लिए दो साल पहले 50-50 हजार रुपए सरकार से मिले थे, लेकिन आरोप है कि स्कूलों ने खेल के सामान खरीद नहीं की। हाईस्कूल में 2010 के बाद राशि नहीं मिली है। कई हाईस्कूलों में खेल शिक्षक नहीं हैं जहां हैं वहां उनका कोई काम नहीं है।
मोक्षदा हाईस्कूल की प्राचार्य सुषमा गुप्ता ने बताया कि स्कूल में कोई शारीरिक शिक्षक नहीं हैं। स्कूल में सिर्फ बैडमिंटन और कैरमबोर्ड है। आठवीं घंटी खेल की होती है। जिन बच्चियों को बैडमिंटन या कैरम चाहिए होता है उन्हें मांगने पर दिया जाता है। प्रारंभिक शिक्षक संघ के नेता पूरण कुमार ने आरोप लगाया कि मध्य विद्यालयों में खेल के सामानों की खरीद नहीं हुई। इसकी कोई जांच भी नहीं होती है। मारवाड़ी पाठशाला के प्राचार्य राधेश्याम राय ने कहा कि स्कूल में फिजिकल शिक्षक हैं लेकिन उनकी घंटी नहीं होती है। राजकीय कन्या उच्च माध्यमिक स्कूल के प्राचार्य डॉ सुभाष झा ने बताया कि स्कूल में सामान हैं लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं  हो रहा। जब से मैंने प्रभार लिया है इसमें सुधार की कोशिश में हूं।

प्रतिभा निखारने के लिए बनी थी घंटी
स्कूलों में खेलकूद की घंटी छात्रों की खेल प्रतिभा निखारने के लिए तय की गई थी, लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण खेल गतिविधियां बंद हो गयी। जो खेल के सामान खरीदे गए वह टूट चुके हैं या स्टोर से गायब हो चुके हैं। डीईओ फूल बाबू चौधरी ने कहा कि खेलकूद की गतिविधियों में सुधार किया जा रहा है। इसके लिए विभाग को कई प्रस्ताव भेजे गये हैं। जल्द ही इसे स्कूलों में लागू किया जाएगा।
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