नमस्कार मित्रों,
कृप्या धैर्यपूर्वक पूरा मैसेज पढ़े। आज सुबह सुबह दैनिक जागरण पढ़ते हुए अचानक एक हेडलाइन पर नजर ठहर गई। हेडलाइन था "शिक्षक ने sp का मतलब बताया केंद्राधीक्षक"। इसके बाद पूरा खबर का सार कुछ यूँ था कि मीडिया टीम प्राथमिक विद्यालय दुधपुरा समस्तीपुर
अब सवाल ये है कि जैसे ही शिक्षक आंदोलन की रुपरेखा उसके न्यायोचित मांगों को लेकर होती है तभी कुछेक चिन्हित विद्यालय में जाकर पत्रकार इसप्रकार के उलूल जुलूल प्रश्न शिक्षक से पूछते है। और इसके बाद बड़े अक्षर में खबर छपती है कि नियोजित शिक्षक को चाहिए पूर्ण वेतनमान और जरा देखिए उनका अल्पज्ञान। ताकि लोग पढ़े कि सरकार कितना बढ़िया शिक्षक का नियुक्ति किया है जिनके हाथ में उनके बच्चे का भविष्य है। मैं कुछेक प्रश्न पूछना चाहता हूँ पत्रकार से, इस समाज से, इस सरकार से और साथ ही अपने शिक्षक बंधू से-----
1 पत्रकार को शिक्षक का साक्षत्कार लेने का हक़ किसने दिया? क्या वे किसी और विभाग के कर्मी का भी इसप्रकार साक्षात्कार लेती है?
2 यदि मानक के अनुरूप शिक्षक की गुणवत्ता नही है तो यह विफलता किसकी है? यदि सरकार की तो क्यों न मीडिया इसे सरकार के विफलता के रूप में दिखाती है बजाय शिक्षक के।
3 मीडिया कइएक विद्यालय का भ्रमण करती है पर सिर्फ नकारात्मक खबर ही क्यों? क्या मीडिया का समाज के प्रति कोई दायित्व नही जो सिर्फ खबर के लिए पूरे शिक्षक समाज का अपमान करवाती है जबकि उसके रिपोर्ट पर कुछ नही होता।
4 शिक्षक को शर्मसार करवाने के बजाय सरकार खुद शर्मिंदा हो और इसे अपनी विफलता माने।
5 क्या सरकार 1500के मानदेय पर bpsc अभ्यर्थी का परिकल्पना किये थे?
6 कहीं शिक्षको को बदनाम करने का ये सरकार का कोई षडयंत्र तो नही।
हम पुरे शिक्षक समाज की तरफ से उस समाज के तरफ से जिन्होंने उन्हे
कृप्या धैर्यपूर्वक पूरा मैसेज पढ़े। आज सुबह सुबह दैनिक जागरण पढ़ते हुए अचानक एक हेडलाइन पर नजर ठहर गई। हेडलाइन था "शिक्षक ने sp का मतलब बताया केंद्राधीक्षक"। इसके बाद पूरा खबर का सार कुछ यूँ था कि मीडिया टीम प्राथमिक विद्यालय दुधपुरा समस्तीपुर
- 7वां वेतन आयोग : अलाउंस समिति ने एचआरए (HRA) पर दी अपनी रिपोर्ट, मिलेगी खुशी और गम भी
- समान काम-समान वेतन" केस में परिवर्तनकारी शिक्षक संघ के वकील हाईकोर्ट में उपस्थित ही नहीं हुए तो PPSS की ओर से कोर्ट में केस किसने लड़ा???
- माँग सेवा शर्त नही बल्कि समान काम समान वेतन था तो उसका क्या हुआ ?कितने में सौदा किया ?
- बिहार के शिक्षकों के लिए जारी हुआ फरमान, कर ले यह काम नहीं तो रुक जायेगा वेतन
- अशोक चौधरी शिक्षा मंत्री और Jyotish संवाद : थोड़ा लंबा है लेकिन पढ़िए जरूर और अपने विचार व्यक्त करें|
अब सवाल ये है कि जैसे ही शिक्षक आंदोलन की रुपरेखा उसके न्यायोचित मांगों को लेकर होती है तभी कुछेक चिन्हित विद्यालय में जाकर पत्रकार इसप्रकार के उलूल जुलूल प्रश्न शिक्षक से पूछते है। और इसके बाद बड़े अक्षर में खबर छपती है कि नियोजित शिक्षक को चाहिए पूर्ण वेतनमान और जरा देखिए उनका अल्पज्ञान। ताकि लोग पढ़े कि सरकार कितना बढ़िया शिक्षक का नियुक्ति किया है जिनके हाथ में उनके बच्चे का भविष्य है। मैं कुछेक प्रश्न पूछना चाहता हूँ पत्रकार से, इस समाज से, इस सरकार से और साथ ही अपने शिक्षक बंधू से-----
1 पत्रकार को शिक्षक का साक्षत्कार लेने का हक़ किसने दिया? क्या वे किसी और विभाग के कर्मी का भी इसप्रकार साक्षात्कार लेती है?
2 यदि मानक के अनुरूप शिक्षक की गुणवत्ता नही है तो यह विफलता किसकी है? यदि सरकार की तो क्यों न मीडिया इसे सरकार के विफलता के रूप में दिखाती है बजाय शिक्षक के।
3 मीडिया कइएक विद्यालय का भ्रमण करती है पर सिर्फ नकारात्मक खबर ही क्यों? क्या मीडिया का समाज के प्रति कोई दायित्व नही जो सिर्फ खबर के लिए पूरे शिक्षक समाज का अपमान करवाती है जबकि उसके रिपोर्ट पर कुछ नही होता।
4 शिक्षक को शर्मसार करवाने के बजाय सरकार खुद शर्मिंदा हो और इसे अपनी विफलता माने।
5 क्या सरकार 1500के मानदेय पर bpsc अभ्यर्थी का परिकल्पना किये थे?
6 कहीं शिक्षको को बदनाम करने का ये सरकार का कोई षडयंत्र तो नही।
हम पुरे शिक्षक समाज की तरफ से उस समाज के तरफ से जिन्होंने उन्हे