सिटी पोस्ट लाइव,( एडवोकेट चितरंजन प्रसाद) :
बिहार के 3.57 लाख नियोजित शिक्षकों का इंतज़ार ख़त्म होने का नाम नहीं ले
रहा. समान काम के बदले समान वेतन मामले पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई
जारी है.
मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट में 13वें दिन सुनवाई हुई. सुप्रीम
कोर्ट में मंगलवार को दोपहर तक ही सुनवाई हुई. अगली सुनवाई 23 अगस्त को
होगी और उम्मीद है कि पूरे दिन सुनवाई चलेगी. माननीय न्यायधीशों ने भी
शिक्षक संगठनों के सभी अधिवक्ताओं से कहा कि हम सुनवाई जल्द से जल्द पूरा
करना चाहते हैं और आप सभी तय करें कि यह सुनवाई 23 अगस्त (गुरुवार) तक पूरी
हो जाए.
शिक्षकों की ओर से वरिष्ठ
अधिवक्ता सीए सुंदरम ने बहस किया. उन्होंने कहा कि प्राथमिक शिक्षकों की
प्रोन्नति नियमावली तथा माध्यमिक शिक्षकों की प्रोन्नति नियमावली 1983 से
स्पष्ट है कि शिक्षकों का पद डाईंग (मृत) कैडर नहीं है. यदि डाइंग कैडर
होता तो माध्यमिक शिक्षकों में से 50 प्रति प्रधानाध्यापक के पद प्रोन्नति
से कैसे भरे जा रहे हैं? प्रखंड, पंचायत, जिला परिषद, नगर परिषद स्नातक
प्रशिक्षित शिक्षकों को प्रोन्नति कैसे दी जा रही है ? यह प्रोन्नति का
कानून भारत सरकार और राज्य सरकार दोनोन ने बनाया है, इसीलिए सरकार का तर्क
निराधार, अप्रमाणिक और गैरकानूनी है.उन्होंने कोर्ट से कहा कि यह कहना
शिक्षकों का पद डाइंग है, इसीलिए उन्हें समान वेतन नहीं दे सकते सर्वथा
अनुचित है.
उन्होंने शिक्षकों का पक्ष
में कोर्ट में रखते हुए कहा कि सरकार ने जो कानून बनाया संसद ने उसे
अधिनियमित कर दिया. उस कानून में यह बाध्यकारी प्रावधान है कि भारत सरकार
और राज्य सरकार को इसे लागू ही करना है. चाहे वह अनुच्छेद 21, 21 (क),
शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 7,8,9 हो. उन्होंने कहा कि शिक्षा
अधिकारी अधिनियम में कहा गया है कि इसमें सक्षम प्राधिकरण भारत सरकार,
राज्य सरकार और स्थानीय निकाय प्राधिकार भी है, लेकिन योग्यता और कार्य
दोनों जब समान है तो वेतनमान की समानता प्रमाणित है. उन्होंने कहा कि
25.8.2010 के पूर्व नियोजित किसी भी शिक्षकों को टीईटी परीक्षा उत्तीर्ण
होने की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने इसके समर्थन में पटना हाईकोर्ट का
जजमेंट जिसमें एनसीटीई द्वारा उपलब्ध कराये गए पत्र दिनांक 26.10.15 को
हलफनामे के रूप में समर्पित किया.