Advertisement

न प्राचार्य, न शिक्षक, कैसे मिली लॉ कॉलेज को मान्यता

बार काउंसिल आॅफ इंडिया से जांच को कहेगा कोर्ट
पटना : हाइकोर्ट ने बिहार इंस्टीट्यूट आॅफ लाॅ पर कड़ी टिप्पणी की है. न्यायाधीश अजय कुमार त्रिपाठी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि यहां न तो प्राचार्य हैं और न ही शिक्षक, इसके बावजूद बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने किस प्रकार मान्यता दे रखी है, यह जांच का विषय है. कोर्ट ने कहा कि इस बारे में बीसीआइ के चेयरमैन को बुला कर इसकी जांच के लिए कहा जायेगा, ताकि इस डिग्री बांटने की दुकान को बंद कराया जा सके. कोर्ट ने यह तल्ख टिप्पणी सोमवार को  मगध विवि के कुलपति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान  की. 
 
गौरतलब है कि उक्त मामला मगध विवि से संबद्धता प्राप्त बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ का है. उक्त लाॅ कालेज में विधि तृतीय वर्ष में अध्ययनरत परीक्षार्थी आर्या अंचित को सिर्फ इस आधार पर परीक्षा देने से वंचित किया जा रहा था कि उसने अपना माइग्रेशन प्रमाण पत्र निर्धारित अवधि में जमा नहीं किया है, जबकि उक्त छात्र ने विधि प्रथम एवं द्वितीय वर्ष की परीक्षा सफलतापूर्वक पूरी की है. छात्र को इस वर्ष  विवि द्वारा माइग्रेशन सर्टिफिकेट जमा नहीं किये जाने के कारण परीक्षा फार्म भरने से वंचित कर दिया गया. 
 
इस मामले को लेकर छात्र ने पटना हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और न्याय की गुहार लगायी. याचिका  की सुनवाई करते हुए पटना उच्च न्यायालय ने परीक्षार्थी को परीक्षा में बैठाने का निर्देश मगध विश्वविद्यालय को दिया. 
 
इसे चुनौती देते हुए मगध विवि ने याचिका दायर की थी, जिस पर आज सुनवाई करते हुए न्यायाधीश अजय कुमार त्रिपाठी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मगध विवि की कार्यप्रणाली और शिक्षा व्यवस्था पर कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि विवि प्रशासन की आंख दो वर्ष तक नहीं खुली और अब जाकर जब परीक्षा ली जा रही है, तो उसकी आंखें खुली हैं कि छात्र ने अपना माइग्रेशन सर्टिफिकेट ही नहीं जमा किया है.  बगैर माइग्रेशन के ही उसका नामांकन  कर लिया गया और दो सत्रों की परीक्षा भी ले ली गयी और वह भी बगैर निबंधन के. 
 
अदालत ने साफ तौर पर कहा कि शिक्षा में बिहार में जितने भी भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए हैं, उनमें सबसे ज्यादा मगध विवि में हुए हैं.  इसलिए मगध विवि में जो गंदगी है उसे साफ करने की जरूरत है. 
 
अदालत ने सभी पक्षों को सुनने और विभिन्न पहलुओं पर गौर फरमाने के बाद विवि  को निर्देश दिया कि छात्र के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उसे परीक्षा फाॅर्म भरवा कर मंगलवार से शुरू हो रही तृतीय वर्ष की विधि की परीक्षा में सम्मिलित होने की व्यवस्था करायी जाये. छात्र का परीक्षा परिणाम अदालत के फैसला आने के बाद ही प्रकाशित किया जायेगा.
 
पटना : हाइकोर्ट ने राज्य बार काउंसिल में  तीन वर्षों से चुनाव नहीं होने पर कड़ी फटकार लगायी है. कोर्ट ने कहा कि बार काउंसिल को निष्क्रिय रखने की इजाजत किसी को भी नहीं दी जा सकती है. मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन व न्यायाधीश डॉ अनिल कुमार उपाध्याय की खंडपीठ ने अधिवक्ता श्रीप्रकाश श्रीवास्तव की ओर से दायर लोकहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई करते हुए कहा कि यह बार काउंसिल का कर्तव्य है कि वह स्टेट बार काउंसिल के चुनाव को सही तरीके से जांच कर  मतदाता सूची तैयार करे और चुनाव कराएं. 
 
खंडपीठ ने इसके लिये तीन सप्ताह के भीतर अदालत को यह बताने को कहा कि वह चुनाव कब करायेगी. याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि बिहार राज्य बार काउंसिल का चुनाव वर्ष 2014 में ही कराया जाना था, जो अब तक नहीं कराया गया है. चुनाव नहीं कराया जाना नियमों के विरुद्ध है. वहीं, बार काउंसिल के अधिवक्ता द्वारा अदालत में पुन: दलील दी गयी की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि इसी संबंध में एक मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है. 
 
अदालत ने उक्त दलील को खारिज करते हुए बार काउंसिल को अगली सुनवाई में यह बताने का निर्देश दिया की वह बिहार स्टेट बार काउंसिल का चुनाव कब करायेगी.  अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि बार काउंसिल आॅफ इंडिया कोई समय नहीं बताती है, तो अदालत स्वयं इसके लिए ठोस कदम उठाते हुए बिहार स्टेट बार काउंसिल का चुनाव कराने को चेयरमैन अथवा किसी और को मतदाता सूची तैयार कर चुनाव कराने का निर्देश दे देगी. 
 
पटना : पटना हाइकोर्ट ने राज्य सरकार से चार सप्ताह में बताने को कहा है कि एनएमसीएच समेत प्रदेश के विभिन्न मेडिकल काॅलेज अस्पतालों में  सिटी स्कैन और एमआरआइ  मशीन कब तक लग जायेगी. 
 
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और जस्टिस डाॅ अनिल कुमार उपाध्याय की खंडपीठ ने यह भी बताने को कहा कि यह मशीनें अस्पतालों में कब तक लगा दी जायेगी और जहां लग गयी है, वहां कब तक कार्य करने लगेगी. याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि एनएमसीएच  में सिटी स्कैन व एमआरआइ  मशीन को एक जुलाई से ही कार्य करना शुरू कर देना चाहिये था. परंतु, अभी तक नहीं हो पाया है. वहीं, दूसरे चिकित्सा महाविद्यालयों में तो दोनों मशीनें लगी भी नहीं हैं. 
 
पटना : हाइकोर्ट ने पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह की विधान परिषद की सदस्यता बहाल करने संबंधी याचिक को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने उन्हें इस संबंध में कोई राहत नहीं दी है.  मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और जस्टिस डाॅ अनिल कुमार उपाध्याय की खंडपीठ ने  पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने और एनडीए के पक्ष में प्रचार करने के आरोपों के तहत नरेंद्र सिंह की बिप की सदस्यता को समाप्त किये जाने के सभापति के निर्णय  को सही ठहराने वाले एकलपीठ के आदेश को सही करार दिया है. 
 
कोर्ट ने विधान परिषद के सभापति के आदेश को जिसमें श्री सिंह की सदस्यता समाप्त की गयी थी, सही माना था. गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम  मांझी के करीबी और आधिकारिक रूप से जदयू के बागी विधान पार्षद नरेंद्र सिंह की सदस्यता  विधान परिषद के तत्कालीन सभापति अवधेश नारायण सिंह की कोर्ट ने समाप्त कर दी थी.  
 
नरेंद्र सिंह के खिलाफ जदयू के सदस्य होते हुए 2015 में संपन्न बिहार  विधानसभा चुनाव में हिंदुस्तान अवाम मोरचा-सेक्यूलर (हम-एस) के लिए काम करने का आरोप था. नरेंद्र सिंह का कार्यकाल 2018  तक था.  नरेंद्र सिंह 2014 में जीतन राम मांझी की सरकार में भी मंत्री बने. इसके बाद उनकी गिनती मांझी खेमे के प्रमुख नेताओं में होने लगी.  
 

विधानसभा के चुनाव में उनके एक बेटे अजय प्रताप सिंह जमुई से भाजपा के टिकट  पर, जबकि दूसरे बेटे सुमित सिंह चकाई से निर्दलीय लड़े. खुद नरेंद्र सिंह हम के प्रचारक रहे.

UPTET news