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'समान काम-समान वेतन'पर न हो राजनीति : बिहार प्रारंभिक नगर, पंचायत शिक्षक संघ

मधुबनी । उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले ने नियोजित शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन मामले में नई ऊर्जा दी है। बावजूद इसके राज्य सरकार नियोजित शिक्षकों संग सौतेला व्यवहार कर रही है। हालांकि सरकार के इस रवैये को नियोजित शिक्षक कतई बर्दाश्त नहीं करेगी।
उच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में समान काम के बदले समान वेतन नियोजित शिक्षक लेकर ही रहेगी। उक्त बातें बिहार प्रारंभिक नगर, पंचायत शिक्षक संघ के प्रदेश सचिव धर्मेन्द्र कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस तरह के केस में पहले ही कर्मचारियों के हित में फैसला सुना चुकी है। लिहाजा इस मामले को लेकर सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट जाना महज औपचारिकता भर ही है। यह बात सरकार भी भली भांति समझ रही है, सिर्फ समय टालने का यह मकसद है। लेकिन अधिक दिनों तक यह मामला नहीं टलेगा क्योंकि संघ के लोग भी सुप्रीम कोर्ट में लगे हुए हैं।

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के दिन जहां याचिकाकर्ता संघों के द्वारा खुशियां मनाई जा रही थी, वहीं एक संघ मुंह लटकाये फिर रहा था। कारण उनको अपनी दुकानदारी बंद होने का अंदेशा था। क्योंकि वह संघ नहीं चाहती थी कि नियोजित शिक्षकों को पूर्ण वेतनमान मिले। वह संघ 2015 के ऐतिहासिक हड़ताल से भी अलग था और न्यायालय जाना कभी उचित समझा ही नहीं। वैसा संघ अब खुद को स्थापित करने के लिए शिक्षकों को विस्थापित करना चाहती है। प्रदेश सचिव धर्मेन्द्र कुमार ने कहा कि 12 नवम्बर को जब सभी संघों ने एक प्लेटफार्म पर आकर निर्णय लिया कि सरकार हाई कोर्ट के आदेश को लागू नहीं करती है तो 01 फरवरी से सभी संघ एक साथ हड़ताल पर चले जायेंगे। पुन: क्या परिस्थिति बनी की 29 नवम्बर का अचानक विधानसभा का घेराव कार्यक्रम रख दिया गया। न्यायालय के आदेश को शक्ति प्रदर्शन से लागू करवाना कहां तक न्यायोचित है। ऐसे संगठनकर्ता से अनुरोध है कि इस पर साकारात्मक ²ष्टिकोण से सोचेंगे तथा समान काम के समान वेतन पर दोहरी राजनीति करना बंद करेंगे।

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