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जिले के कुछ शिक्षकों से, पेश है शिक्षकों की बात, उनकी जुबानी

सीतामढ़ी। शिक्षक ही बच्चों को संस्कार से लेकर ज्ञान तक का पाठ पढ़ाते हैं। लेकिन इस दौर में कोई अपने बच्चे को स्कूल शिक्षक नहीं बनाना चाहता। कम वेतन और कम सुविधा की वजह से इस पेशे के प्रति रुचि घटी है। कुछ ही छात्र शिक्षक बनने के लिए योजना बनाते हैं।
हालांकि प्रोफेसर बनने की चाहत बरकार है। अभिभावक बच्चों को इंजीनियर, डॉक्टर, वकील व आइएएस बनने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन शिक्षक बनने के लिए नहीं। इसकी बड़ी वजह है कि शिक्षक बनकर छात्रों को वो ग्लैमर नहीं मिलता जो अन्य पेशे में है। आखिर क्या वजह है कि लोग शिक्षक बनना नहीं चाहते है? शिक्षकों के समक्ष मौजूद समस्या, क्या चाहते हैं शिक्षक? शिक्षकों के अनुसार बेहतर शिक्षा के लिए क्या करना चाहिए व शिक्षक अपने बच्चे को शिक्षक क्यों नहीं बनाना चाहते हैं?? इन तमाम सवालों के जवाब के लिए हमने बात क जिले के कुछ शिक्षकों से, पेश है शिक्षकों की बात, उनकी जुबानी :-
सुरेंद्र कुमार, माध्यमिक शिक्षक : शिक्षक को समाज व राष्ट्र का निर्माता माना जाता था। लेकिन अब इन्हें न तो समाज सम्मान दे रहा है और नहीं सरकार ही। आने वाली पीढ़ी शिक्षक नहीं बनना चाहती है। इसके लिए सरकार की नीति जिम्मेदार है। बेहतर शिक्षा के लिए स्कूली स्तर पर संसाधन पूरा होना चाहिए।
मो. नसीम अहमद, शिक्षक, बेला शांति कुटीर : कम वेतन व वेतन का ससमय भुगतान नहीं होना व एक शिक्षक के काफी बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का बोझ इस कदर शिक्षकों को बोझिल कर चूका है कि शिक्षक खुद अपने बच्चों को शिक्षक नहीं बनाना चाहता है। वर्तमान में शिक्षा व्यवस्था बदहाल है। स्कूलों में शिक्षक व संसाधनों का अभाव है।
शैलेंद्र झा, शिक्षक, सीतामढ़ी उच्चर माध्यमिक स्कूल, डुमरा : मौजूदा शिक्षा व्यवस्था बदहाल है। कुकुरमुत्ते की तरह को¨चग संस्थान खुल गए है। स्कूलों में विद्वान शिक्षक मौजूद है, लेकिन बच्चे नहीं आते है। बेहतर शिक्षा के लिए सरकार की नीति भी दोषपूर्ण है।
राम नारायण पासवान, शिक्षक कमला ग‌र्ल्स स्कूल : शिक्षकों की सबसे बड़ी परेशानी ससमय वेतन का भुगतान नहीं होना ह । जिससे शिक्षकों को पारवारिक संकट झेलना पड़ रहा है। वहीं शिक्षकों को शिक्षा के मूल कार्य से हटा कर अलग - अलग तरह के काम लिए जा रहे है। सरकार की नीति ही ठीक नहीं है।

राम कृपाल प्रसाद, शिक्षक, एमपी हाईस्कूल : वर्तमान शिक्षा व्यवस्था बदहाल है। इसके लिए सरकार की नीति जिम्मेदार है। शिक्षकों को न सरकार इज्जत दे रहीं है और नहीं समाज ही। वर्तमान में शिक्षक ठेके पर बहाल किए जा रहे है। शिक्षकों की बढ़ती परेशानी कम होते वेतन व सिमटती सुविधाओं के चलते अब न तो कोई शिक्षक बनना चाहता है और नहीं कोई अपने बच्चों को शिक्षक बनाना ही चाहता है।
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