सूबे में नियोजित शिक्षकों की बहाली में हुए भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने
के लिए अधिकारी नई तरकीब निकालने में जुटे हैं. फर्जी प्रमाण-पत्र और गलत
तरीके से बहाल किए गए शिक्षकों को जांच में दोषी पाए जाने के आठ साल बाद भी
अधिकारी कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.
बार-बार प्राथमिकी दर्ज करने संबंधी आदेश के बाद भी अधिकारी कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर रहे हैं, लेकिन आज तक न तो प्राथमिकी दर्ज हुई न ही करोड़ों रुपए के सरकारी राजस्व की वसूली की जा सकी.
मुजफ्फरपुर के सरैय्या प्रखंड में साल 2007 में ही प्रशासनिक जांच में 20 पंचायतों में तैनात किए गए 20 नियोजित शिक्षकों को फर्जी बताया गया था. सरैय्या के तत्कालीन बीडीओ ने 17 अप्रैल 2007 को ही जांच में फर्जी पाए गए 20 शिक्षकों के वेतन बंद करते हुए नियोजन रद्द करने की अनुशंसा की थी.
साथ ही बीडीओ ने सभी पंचायत सचिव को सभी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को भी कदम उठाने के लिए लिखा था, लेकिन जांच में फर्जी पाए गए सभी शिक्षक आज भी शिक्षा विभाग में नौकरी कर रहे हैं.
शिक्षा विभाग में 2003 से 2005 तक में पंचायत और प्रखंड शिक्षक के रूप में नियोजित हुए इन सभी 20 शिक्षकों द्वारा अबतक 2.5 करोड़ की राशि का उठाव किया जा चुका है. वहीं, शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा कार्रवाई के नाम पर बीडीओ की जांच रिपोर्ट को एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में खानापूर्ति के लिए दौड़ाया जाता रहा है.
जिन 20 शिक्षकों को बीडीओ ने जांच में दोषी पाया था, उसे डीएम के निर्देश पर की गई शिक्षा विभाग की जांच में भी सही पाया गया है. शिक्षा विभाग के डीपीओ स्थापना द्वारा सरैय्या के बीईओ को बार-बार सभी फर्जी शिक्षकों को हटाने का आदेश भी दिया गया, लेकिन अंतिम चेतावनी के बाद भी प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई, जबकि जांच में साफतौर पर पाया गया है कि 20 में से सात शिक्षकों ने फर्जी प्रमाण-पत्र पर नौकरी पाई.
चार शिक्षकों ने नौकरी में आने के बाद इण्टर पास किया. जबकि इण्टर पास अभ्यर्थी ही शिक्षक की पात्रता नियोजन के समय रखते थे. एक शिक्षक तो आज भी इण्टर पास तक नहीं है. इतना ही नहीं इण्टर में 45 फीसदी अंक नहीं लाने वाले अभ्यर्थियों को भी नौकरी मिली, जबकि आरक्षण के रोस्टर का भी धड़ल्ले से नियोजन में उल्लंघन किया गया.
शिकायतकर्ता ने जिले से लेकर प्रदेश तक के शिक्षा विभाग के अधिकारियों को इस संबंध में बार-बार कार्रवाई के लिए लिखा. इसके बाद जाकर मुजफ्फरपुर के नए डीईओ ने 16 मई को प्राथमिकी दर्ज करने का कड़ा पत्र बीडीओ सरैय्या को 16 मई को लिखा.
हालांकि, एक पखवारा बीत जाने के बाद एक बार फिर यह आदेश कागजों और फाइल में सिमटकर रह गया है. डीईओ को भी अपने आदेश से अधिक इंतजार इस बात का है कि शिक्षक नियोजन में हुई गड़बड़ी की जांच निगरानी द्वारा कराए जाने के फैसले से फर्जी शिक्षकों पर कार्रवाई हो सकेगी.
जाहिर है फर्जी शिक्षकों को बचाने के खेल में नीचे से ऊपर तक के अधिकारी शामिल हैं. आठ साल की लंबी कवायद के बाद भी दोषियों पर प्राथमिकी तक दर्ज नहीं होना इसका उदाहरण है. साफ है फर्जी तरीके से बहाल हुए शिक्षक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को पढ़ाई के नाम पर सिर्फ धोखा कर रहे होंगे, जिसकी सारी जबाबदेही अंततः सरकार को उठानी पड़ेगी.
सरकारी नौकरी - Government Jobs - Current Opening All Exams Preparations , Strategy , Books , Witten test , Interview , How to Prepare & other details
बार-बार प्राथमिकी दर्ज करने संबंधी आदेश के बाद भी अधिकारी कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर रहे हैं, लेकिन आज तक न तो प्राथमिकी दर्ज हुई न ही करोड़ों रुपए के सरकारी राजस्व की वसूली की जा सकी.
मुजफ्फरपुर के सरैय्या प्रखंड में साल 2007 में ही प्रशासनिक जांच में 20 पंचायतों में तैनात किए गए 20 नियोजित शिक्षकों को फर्जी बताया गया था. सरैय्या के तत्कालीन बीडीओ ने 17 अप्रैल 2007 को ही जांच में फर्जी पाए गए 20 शिक्षकों के वेतन बंद करते हुए नियोजन रद्द करने की अनुशंसा की थी.
साथ ही बीडीओ ने सभी पंचायत सचिव को सभी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को भी कदम उठाने के लिए लिखा था, लेकिन जांच में फर्जी पाए गए सभी शिक्षक आज भी शिक्षा विभाग में नौकरी कर रहे हैं.
शिक्षा विभाग में 2003 से 2005 तक में पंचायत और प्रखंड शिक्षक के रूप में नियोजित हुए इन सभी 20 शिक्षकों द्वारा अबतक 2.5 करोड़ की राशि का उठाव किया जा चुका है. वहीं, शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा कार्रवाई के नाम पर बीडीओ की जांच रिपोर्ट को एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में खानापूर्ति के लिए दौड़ाया जाता रहा है.
जिन 20 शिक्षकों को बीडीओ ने जांच में दोषी पाया था, उसे डीएम के निर्देश पर की गई शिक्षा विभाग की जांच में भी सही पाया गया है. शिक्षा विभाग के डीपीओ स्थापना द्वारा सरैय्या के बीईओ को बार-बार सभी फर्जी शिक्षकों को हटाने का आदेश भी दिया गया, लेकिन अंतिम चेतावनी के बाद भी प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई, जबकि जांच में साफतौर पर पाया गया है कि 20 में से सात शिक्षकों ने फर्जी प्रमाण-पत्र पर नौकरी पाई.
चार शिक्षकों ने नौकरी में आने के बाद इण्टर पास किया. जबकि इण्टर पास अभ्यर्थी ही शिक्षक की पात्रता नियोजन के समय रखते थे. एक शिक्षक तो आज भी इण्टर पास तक नहीं है. इतना ही नहीं इण्टर में 45 फीसदी अंक नहीं लाने वाले अभ्यर्थियों को भी नौकरी मिली, जबकि आरक्षण के रोस्टर का भी धड़ल्ले से नियोजन में उल्लंघन किया गया.
शिकायतकर्ता ने जिले से लेकर प्रदेश तक के शिक्षा विभाग के अधिकारियों को इस संबंध में बार-बार कार्रवाई के लिए लिखा. इसके बाद जाकर मुजफ्फरपुर के नए डीईओ ने 16 मई को प्राथमिकी दर्ज करने का कड़ा पत्र बीडीओ सरैय्या को 16 मई को लिखा.
हालांकि, एक पखवारा बीत जाने के बाद एक बार फिर यह आदेश कागजों और फाइल में सिमटकर रह गया है. डीईओ को भी अपने आदेश से अधिक इंतजार इस बात का है कि शिक्षक नियोजन में हुई गड़बड़ी की जांच निगरानी द्वारा कराए जाने के फैसले से फर्जी शिक्षकों पर कार्रवाई हो सकेगी.
जाहिर है फर्जी शिक्षकों को बचाने के खेल में नीचे से ऊपर तक के अधिकारी शामिल हैं. आठ साल की लंबी कवायद के बाद भी दोषियों पर प्राथमिकी तक दर्ज नहीं होना इसका उदाहरण है. साफ है फर्जी तरीके से बहाल हुए शिक्षक सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को पढ़ाई के नाम पर सिर्फ धोखा कर रहे होंगे, जिसकी सारी जबाबदेही अंततः सरकार को उठानी पड़ेगी.
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