कड़ाई. प्रतिनियोजन पर विभाग हुआ सख्त, डीएम को जारी किया फरमान
सैंकड़ों शिक्षकों ने नियम के विरुद्ध विभागीय मिलीभगत कर मनमाने तरीके से अपनी सुविधा अनुकूल अपना प्रतिनियोजन करवा लिया है.
सुपौल : जिले भर की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति बदतर बनी हुई है.
शिक्षा व्यवस्था को सुधारने वाले तंत्रों पर शिक्षाविद व अभिभावकों द्वारा
सवाल भी उठाये जा रहे हैं. बावजूद इसके व्यवस्था को सुधारने की दिशा में
सरकारी मुलाजिमों द्वारा समुचित तरीके से कार्य नहीं किया जा रहा है.
फिलवक्त स्थानीय शिक्षा विभाग के ढुलमुल नीति के कारण जहां कई विद्यालयों
को भवन व वर्ग कक्ष का अभाव देखी जा रही है. साथ ही कई विद्यालय भूमि के
अभाव की समस्या से जूझ रहा है.
लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि सरकार द्वारा बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण
शिक्षा प्रदान कराये जाने को लेकर शिक्षकों को विद्यालय में पदस्थापन कराया
गया. वहीं सैंकड़ों ऐसे शिक्षक भी है, जिन्होंने नियम के विरुद्ध विभागीय
मिली भगत कर मनमाने तरीके से अपनी सुविधा अनुकूल अपना प्रतिनियोजन करवा
लिया है. उक्त मसले सरकार के संज्ञान में जाने बाद विभाग द्वारा ऐसे
शिक्षकों को अपने मूल विद्यालय में जाने का फरमान क्षेत्रीय कार्यालय को
भेजा
गया है.
दर्जनों शिक्षक वर्षों से एक ही जगह हैं तैनात : मालूम हो कि जिला
शिक्षा कार्यालय व प्रखंड शिक्षा कार्यालय के पदाधिकारी से सांठ गांठ कर
दर्जनों शिक्षक अपने मूल विद्यालय को छोड़ बीआरसी, प्रखंड मुख्यालय सहित
अन्य सरकारी संस्थानों में अपना प्रतिनियोजन करवा कर वर्षों से जमे हुए है.
प्रतिनियोजन के मामले में विभागीय पदाधिकारी की मनमानी व सांठगांठ के कारण
प्रखंड व पंचायत शिक्षकों को दूसरे प्रखंड में भी प्रतिनियुक्त कर दिया
गया है.
ऐसे शिक्षकों का मासिक अनुपस्थिति भेजने का अतिरिक्त कार्य संबंधित
विद्यालय के प्रबंधन को देखना पड़ रहा है. ताकि उनके वेतन भुगतान में किसी
प्रकार की कठिनाई ना हो सके. जबकि कई वर्ष पूर्व ही विभाग द्वारा
प्रतिनियोजन व्यवस्था को खत्म कर दिया गया. विभागीय फरमान जारी होने के बाद
अब देखना दिलचस्प होगा कि क्षेत्रीय पदाधिकारी सभी प्रतिनियोजित शिक्षकों
को उनके मूल विद्यालय में वापस लाने में कितना समय व्यतीत करेंगे.
पदाधिकारियों के आदेश से नहीं हुई प्रतिनियुक्ति
सरकार के शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव आर के महाजन ने जिला पदाधिकारी
को भेजे पत्र में निदेशित किया है कि बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा
का अधिकार अधिनियम 2009 अप्रैल 2010 से प्रभावी है. अधिनियम की धारा 27 के
तहत यह प्रावधान है कि कोई भी शिक्षक दस वर्षीय जनगणना, आपदा सहाय्य, विधान
मंडल, संसद व स्थानीय निकाय के चुनाव कार्य को छोड़ किसी भी गैर शैक्षणिक
कार्यों के लिए प्रतिनियुक्त नहीं किये जायेंगे. साथ ही पत्र में उल्लिखित
है कि शिक्षा विभाग के विभिन्न शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति किया गया है
या नहीं. इसकी मासिक समीक्षा करने का दायित्व जिला शिक्षा पदाधिकारी व
प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी की होगी. साथ ही मासिक प्रतिवेदन से जिला
पदाधिकारी को अवगत करवायेंगे कि उनके क्षेत्र अंतर्गत किसी भी पदाधिकारी के
आदेश से शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति नहीं की गयी है. विभाग के भेजे पत्र
से प्रतिनियुक्त पर जमे शिक्षकों में हड़कंप का माहौल बना हुआ है.
जुगाड़ तकनीक के सहारे हो रहा था प्रतिनियोजन : जानकारों की माने तो
विभाग द्वारा शिक्षकों के प्रतिनियोजन सेवा समाप्ति के उपरांत एक ऐसी
समस्या उत्पन्न हुई. ऐसे हालात को व्यवस्थित कराये जाने को लेकर कुछ समय के
लिए प्रतिनियोजित प्रक्रिया को अपनाया गया. लेकिन विभाग पर अपनी पहुंच
रखने वाले रसूखदार शिक्षकों ने मनमरजी तरीके से पदाधिकारियों संपर्क साध कर
जुगाड़ तकनीक पर अपना प्रतिनियोजन करवाते रहे
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