भागलपुर। हाइकोर्ट के आदेश पर तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय प्रशासन
ने सबौर कॉलेज के आइआरपीएम विभाग के शिक्षक प्रियव्रत नारायण यादव की
प्रोन्नति को रद कर दिया है। यादव को 19 फरवरी 1993 की तिथि से मेधा
प्रोन्नति देकर रीडर बनाया गया था। इसी के आधार पर वे प्रोफेसर बनाए गए थे।
चूंकि प्रियव्रत प्रसाद यादव की रीडर में प्रोन्नति गलत हुई, इसलिए वे
पुन: व्याख्याता बन गए हैं। अब उनका वेतन एक लाख 80 हजार की जगह मात्र 80
हजार रुपये हो जाएगा।
तिलकामाझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पांच दर्जन शिक्षक प्रोफेसर से
रीडर बन जाएंगे। इन शिक्षकों के पद की गणना किए बगैर पूर्व कुलपति डॉ. रमा
शंकर दुबे के कार्यकाल में मेधा प्रोन्नति दे दी गई थी। पटना हाइकोर्ट ने
मेधा प्रोन्नति पर अंगुली उठाते हुए सुधार करने का आदेश तिलकामांझी भागलपुर
विश्वविद्यालय को दिया है। हाइकोर्ट ने कहा है कि जब रीडर में ही
प्रोन्नति गलत है तो प्रोफेसर में प्रोन्नति कैसे दी गई। आइआरपीएम, ग्रामीण
अर्थशास्त्र और इतिहास विषय के शिक्षकों के प्रोन्नति में सबसे अधिक
धांधली हुई है।
नियम कहता है कि तीन व्याख्याता पर एक रीडर और तीन रीडर पर एक प्रोफेसर
को प्रोन्नति मिलती है। यह प्रोन्नति पद के हिसाब से मिलती है। साथ ही
प्रोन्नति के पूर्व यह भी देखा जाता है कि शिक्षक के पीएचडी करने की तिथि
क्या है। लेकिन तिलकामाझी भागलपुर विश्वविद्यालय में पद की गणना किए बगैर
शिक्षकों को मेधा प्रोन्नति दी गई है। पीएचडी करने की तिथि को भी नहीं देखा
गया। विवि ने आइआरपीएम के शिक्षक प्रो. केएन यादव को 19 फरवरी 1993 की
तिथि से मेद्या प्रोन्नति दे दी। इस आधार पर उक्त शिक्षक विवि के सबसे वरीय
शिक्षक बन गए और हेड बन गए। जब उक्त शिक्षक के वेतन के सत्यापन के लिए
बिहार सरकार के वेतन सत्यापन कोषाग भेजा गया तो मामला उजागर हुआ। वेतन
सत्यापन कोषाग शिक्षा विभाग के प्रभारी पदाधिकारी अनिल कुमार ने 30 जनवरी
2017 को टीएमबीयू के कुलसचिव को पत्र भेजकर उक्त शिक्षक के संबंध में जबाव
तलब किया। प्रभारी पदाधिकारी ने पूछा है कि शिक्षक ने 26 अगस्त 1996 को
पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। विश्वविद्यालय ने किस आधार पर उक्त शिक्षक
को 19 फरवरी 1993 की तिथि से मेधा प्रोन्नति योजना अंतर्गत रीडर के पद पर
प्रोन्नति दी गई है। उक्त शिक्षक को प्रोन्नति देने का आधार क्या है,
साक्ष्य के साथ स्पष्ट किया जाए।
साथ ही सबौर कॉलेज के आइआरपीएम के वरीय शिक्षक प्रो. दमन चंद्र मिश्र
पीजी विभाग के हेड थे। प्रो. केएन यादव के वरीय होने के बाद उन्हें हेड बना
दिया गया। इसको प्रो. मिश्र हाइकोर्ट की शरण में चले गए। प्रो. मिश्र ने
प्रो. यादव की प्रोन्नति को गलत ठहराते हुए अपने को वरीय बताया था।
हाइकोर्ट ने प्रो. दमन चंद्र मिश्र के 10 जून 1993 की प्रोन्नति को सही
माना है। जबकि प्रो. केएन यादव के 19 फरवरी 1993 को गलत ठहराते हुए 26
अगस्त 1996 की तिथि से प्रोन्नति देने को कहा है। हाइकोर्ट के फैसले के बाद
प्रो. केएन यादव साढ़े तीन वर्ष प्रो. दमन चंद्र मिश्र से जूनियर हो गए
हैं। ऐसे और भी शिक्षक हैं, जिन्हें गलत तरीके से मेधा प्रोन्नति दी गई है।
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