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सवैतनिक अवकाश की अनुमति दे कर मुकर गई सरकार

जमुई। बिहार की शैक्षणिक व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने शर्तों सहित अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए सवैतनिक अवकाश की स्वीकृति दी थी परंतु अपने ही निर्णय से सरकार पलट गई है जिस कारण सूबे के हजारों शिक्षकों के प्रशिक्षण का मामला खटाई में पड़ गया है।
इन हजारों शिक्षकों में सैकड़ों शिक्षक जमुई के शामिल हैं। जिन्होंने सरकारी आदेश के बाद विद्यालय से सवैतनिक अवकाश लेकर प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी प्रशिक्षण संस्थानों में अपना नामाकन अपनी खर्च पर कराया था। परंतु जिला शिक्षा पदाधिकारी जमुई द्वारा दिए गए ज्ञापाक 1365 दिनाक 22 जुलाई 2016 के आलोक में यह निर्देश दिया गया है कि बिहार राच्य के अंतर्गत संचालित राजकीय शिक्षा प्रशिक्षण महाविद्यालय, डायट एवं राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय को छोड़कर राच्य के अंदर निजी मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण संस्थानों एवं राच्य के बाहर सरकारी एवं निजी प्रशिक्षण ससंस्थानों में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले नियोजित शिक्षकों को सवैतनिक या अवैतनिक किसी भी प्रकार का अवकाश नहीं दिया जाएगा। यानी पूर्व में जो भी सवैतनिक अवकाश ले कर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे उन्हें मूल विद्यालय लौटने का आदेश जारी कर दिया गया है। यह आदेश शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव के निर्देश के आलोक में दिया गया है। सरकार के इस आदेश के पहले ही सवैतनिक अवकाश के संबंध में संशय और असमंजस की स्थिति बनी हुई थी क्योंकि सवैतनिक अवकाश के बारे में सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया था कि सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं संस्थानों में प्रशिक्षण के लिए नियोजित शिक्षकों को सवैतनिक अवकाश दिया जाएगा या नहीं। इसी दौरान जिला कार्यालय द्वारा जमुई के सैकड़ों शिक्षकों को सशर्त सवैतनिक अवकाश की स्वीकृति दे दी गई। इसमें वैसे शिक्षक भी शामिल हैं जिन्हें ने अपने खर्च पर निजी प्रशिक्षण संस्थानों में नामांकन ले रखा है। अब लाखों रुपये की भारीभरकम फीस जमा करने के बाद सरकार का यह आदेश आया है जिस कारण प्रशिक्षण को बीच में छोड़ विद्यालय लौटना संभव नहीं दिख रहा है। प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे शिक्षक आर्यन कुमार, मुकेश माझी, कुंदन मंडल, शाबीर अंसारी, मुरारी कुमार, प्रीति आभा, प्रीति वर्णवाल, अविनाश रावत सहित अन्य शिक्षकों ने कहा कि सरकार हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। हमें सवैतनिक आदेश देकर मुकर गई है। सरकार के इस निर्णय के खिलाफ हम सब एक साथ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे। फिलहाल सरकार के इस निर्णय के बाद शिक्षकों और सरकार के बीच तनाव बढ़ता नजर आ रहा है जिसका सीधा असर शैक्षणिक व्यवस्था पर पड़ने वाला है।
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