मधेपुरा। जिला के 273 प्रारंभिक शिक्षकों
की प्रोन्नति का मामला फिर अधर में लटक गया है। इस मामले में शिक्षा विभाग
जहां जिलाधिकारी द्वारा नामित पदाधिकारी पर दोष दे रहे हैं। वहीं प्रोन्नत
पाने वाले शेष शिक्षक अब न्यायालय पाने का मन बनाया है।
मालूम हो कि बिहार प्रारंभिक शिक्षक प्रोन्नति नियमावली 2011 के तहत जिला के स्नातक वेतनमान कार्यरत शिक्षकों को प्रधानाध्यापक पद पर प्रोन्नति करना था। लेकिन यह मामले कई कारणों से आज तक निबटने के बजाए उलझता जा रहा है। जबकि प्रोन्नत मामले में मुख्य भूमिका निभा रहे डीईओ इस माह के अंत में सेवानिवृत हो रहे हैं। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिला में प्रधानाध्यापक के कुल 687 पद खाली हैं। इसमें एवज में पूरे जिला से मात्र 273 आवेदन जिला को प्राप्त हुआ है।
प्रोन्नत के मामले में कांटे ही कांटे :
शिक्षक प्रोन्नत के मामले में कभी विभाग द्वारा तो कभी संघ द्वारा आपसी परस्पर तालमेल नहीं होने के कारण तीन माह से अधिक समय से यह मामला अधर में लटका है। जिला प्राथमिक शिक्षक संघ जहां प्रोन्नति तथा पदस्थापना जैसे मामले में संघ को दरकिनार करने का आरोप लगाते रहे हैं। वहीं प्रोन्नति तथा पदस्थापना में जिलाधिकारी द्वारा लॉटरी के माध्यम से पदस्थापना के निर्णय ने मामले को उलझा दिया। पहले तो संघ ने लॉटरी का जमकर विरोध किया। लेकिन जिलाधिकारी के निर्देश के बाद प्रोन्नत समिति अपने स्तर से मामले का निष्पादन किया। इस तरह 273 में 173 शिक्षकों का प्रोन्नति समिति द्वारा अनुशंसित किया गया। तथा शेष 86 शिक्षकों के प्रोन्नति का मामला कागजात की जांच के कारण लटक गया जो आज तक लटका है। स्थिति यह है कि 86 शिक्षकों के प्रोन्नति को लेकर विभाग द्वारा नौ सितम्बर को बैठक बुलाई गई है। लेकिन जिलाधिकारी द्वारा नामित पदाधिकारी के नहीं आने पर मामला फिर पेंच में फंस गया है। मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि 173 शिक्षकों के प्रोन्नति का मामला साफ होने के बाद मधेपुरा जिला प्रारंभिक प्रोन्नति संघर्ष समिति ने भी अपना कड़ा रूख बरकरार रखने के बजाए शांत कर लिया है। इस पर शेष 86 शिक्षकों का आरोप है कि अपना मामला निकलते ही संघर्ष समिति आन्दोलन के बजाए चुप्पी साध कर आन्दोलन का ही सत्यानाश कर दिया। अधर शिक्षक जयकृष्ण कुमार, मनोज कुमार, राजेश आदि का कहना है कि अगर समिति इसी तरह मामले को लटकाया तो बाध्य होकर हमलोगों को न्यायालय के शरण में जाना होगा।
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मालूम हो कि बिहार प्रारंभिक शिक्षक प्रोन्नति नियमावली 2011 के तहत जिला के स्नातक वेतनमान कार्यरत शिक्षकों को प्रधानाध्यापक पद पर प्रोन्नति करना था। लेकिन यह मामले कई कारणों से आज तक निबटने के बजाए उलझता जा रहा है। जबकि प्रोन्नत मामले में मुख्य भूमिका निभा रहे डीईओ इस माह के अंत में सेवानिवृत हो रहे हैं। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिला में प्रधानाध्यापक के कुल 687 पद खाली हैं। इसमें एवज में पूरे जिला से मात्र 273 आवेदन जिला को प्राप्त हुआ है।
प्रोन्नत के मामले में कांटे ही कांटे :
शिक्षक प्रोन्नत के मामले में कभी विभाग द्वारा तो कभी संघ द्वारा आपसी परस्पर तालमेल नहीं होने के कारण तीन माह से अधिक समय से यह मामला अधर में लटका है। जिला प्राथमिक शिक्षक संघ जहां प्रोन्नति तथा पदस्थापना जैसे मामले में संघ को दरकिनार करने का आरोप लगाते रहे हैं। वहीं प्रोन्नति तथा पदस्थापना में जिलाधिकारी द्वारा लॉटरी के माध्यम से पदस्थापना के निर्णय ने मामले को उलझा दिया। पहले तो संघ ने लॉटरी का जमकर विरोध किया। लेकिन जिलाधिकारी के निर्देश के बाद प्रोन्नत समिति अपने स्तर से मामले का निष्पादन किया। इस तरह 273 में 173 शिक्षकों का प्रोन्नति समिति द्वारा अनुशंसित किया गया। तथा शेष 86 शिक्षकों के प्रोन्नति का मामला कागजात की जांच के कारण लटक गया जो आज तक लटका है। स्थिति यह है कि 86 शिक्षकों के प्रोन्नति को लेकर विभाग द्वारा नौ सितम्बर को बैठक बुलाई गई है। लेकिन जिलाधिकारी द्वारा नामित पदाधिकारी के नहीं आने पर मामला फिर पेंच में फंस गया है। मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि 173 शिक्षकों के प्रोन्नति का मामला साफ होने के बाद मधेपुरा जिला प्रारंभिक प्रोन्नति संघर्ष समिति ने भी अपना कड़ा रूख बरकरार रखने के बजाए शांत कर लिया है। इस पर शेष 86 शिक्षकों का आरोप है कि अपना मामला निकलते ही संघर्ष समिति आन्दोलन के बजाए चुप्पी साध कर आन्दोलन का ही सत्यानाश कर दिया। अधर शिक्षक जयकृष्ण कुमार, मनोज कुमार, राजेश आदि का कहना है कि अगर समिति इसी तरह मामले को लटकाया तो बाध्य होकर हमलोगों को न्यायालय के शरण में जाना होगा।