मैं पिछले तीन दिनों से नियोजित शिक्षकों के लिए तैयार सेवा शर्त(लीक) की रिपोर्ट पढ़ रहा हूँ। विभिन्न कानूनी पहलुओं पर चिंतन-मनन कर रहा हूँ। अब जाकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि ये लीक किया गया सेवा शर्त असंवैधानिक है। कानूनी रूप से इसे लागू ही नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट में ये सेवाशर्त खारिज़ हो जाएगा।
सनद रहे कि
1) मैंने सवैतनिक अवकाश को लेकर भी कहा था कि सरकार इससे वंचित नहीं कर सकती। कई लोग केस करने के मुद्दे पर सहमत नहीं थे शुरू में। बाद में जाकर आनन-फानन आनंद कौशल जी ने केस किया और फिर अन्य सभी ने भी केस किया और हमारी जीत हुई।
2) सुप्रीम कोर्ट के समान काम समान वेतन को लेकर भी मैंने कहा था कि उस जजमेंट के para no.- 42 में वर्णित तथ्यों के अनुसार हमारी जीत होगी। हमलोग पी के शाही के पास मिलने गए थे तो उनके सहयोगी ने भी उसी अंश का ज़िक्र करते हुए कहा कि हमारी जीत संभव है। अब हम कोर्ट में हैं और यकीन मानिए कि हमारी जीत सुनिश्चित है।
3) सातवें वेतन को लेकर भी मैंने कहा था कि ये सब अफ़वाह है। लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी। आखिरकार मुख्यमंत्री ने अपने वक्तव्य में कहा कि ये अफ़वाह थी। खैर, आंदोलन होना भी उचित था। उसी से मुख्यमंत्री मजबूर हुए मंच से घोषणा करने को।
अब मैं अपने उसी विकेक एवं सूत्रों के आधार पर कहता हूँ कि जो सेवा-शर्त(लीक) तैयार हुआ है वो कानूनी रूप से अवैध है। उसे लागू नहीं किया जा सकता। अगर सरकार इसे लागू करती है तो हाईकोर्ट में ये धाराशायी हो जाएगा। पूरा का पूरा सेवाशर्त कानून सम्मत नहीं है। Encroachment of Powers स्पष्ट दिखता है।
आखिरी बात ध्यान में रखिएगा, एक विभाग दूसरे विभाग के कर्मचारियों के लिए सेवाशर्त नहीं तैयार कर सकता। तो फिर शिक्षा विभाग पंचायती राज व्यवस्था के कर्मचारियों के लिए सेवा शर्त कैसे तैयार कर सकता है। सरकार के पास एक ही रास्ता है कि वो अभी नियोजन इकाईयों को भंग करते हुए नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी घोषित करे। तभी सेवा-शर्त लागू होना संभव है। अब ये कैसे होगा ये सरकार और हम पर निर्भर है। या तो सड़क पर लड़कर या हाईकोर्ट जब इस सेवा शर्त को खारिज़ कर देगी तब।
उपरोक्त बातों पर आप सभी मंथन करें।
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सनद रहे कि
1) मैंने सवैतनिक अवकाश को लेकर भी कहा था कि सरकार इससे वंचित नहीं कर सकती। कई लोग केस करने के मुद्दे पर सहमत नहीं थे शुरू में। बाद में जाकर आनन-फानन आनंद कौशल जी ने केस किया और फिर अन्य सभी ने भी केस किया और हमारी जीत हुई।
2) सुप्रीम कोर्ट के समान काम समान वेतन को लेकर भी मैंने कहा था कि उस जजमेंट के para no.- 42 में वर्णित तथ्यों के अनुसार हमारी जीत होगी। हमलोग पी के शाही के पास मिलने गए थे तो उनके सहयोगी ने भी उसी अंश का ज़िक्र करते हुए कहा कि हमारी जीत संभव है। अब हम कोर्ट में हैं और यकीन मानिए कि हमारी जीत सुनिश्चित है।
3) सातवें वेतन को लेकर भी मैंने कहा था कि ये सब अफ़वाह है। लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी। आखिरकार मुख्यमंत्री ने अपने वक्तव्य में कहा कि ये अफ़वाह थी। खैर, आंदोलन होना भी उचित था। उसी से मुख्यमंत्री मजबूर हुए मंच से घोषणा करने को।
अब मैं अपने उसी विकेक एवं सूत्रों के आधार पर कहता हूँ कि जो सेवा-शर्त(लीक) तैयार हुआ है वो कानूनी रूप से अवैध है। उसे लागू नहीं किया जा सकता। अगर सरकार इसे लागू करती है तो हाईकोर्ट में ये धाराशायी हो जाएगा। पूरा का पूरा सेवाशर्त कानून सम्मत नहीं है। Encroachment of Powers स्पष्ट दिखता है।
आखिरी बात ध्यान में रखिएगा, एक विभाग दूसरे विभाग के कर्मचारियों के लिए सेवाशर्त नहीं तैयार कर सकता। तो फिर शिक्षा विभाग पंचायती राज व्यवस्था के कर्मचारियों के लिए सेवा शर्त कैसे तैयार कर सकता है। सरकार के पास एक ही रास्ता है कि वो अभी नियोजन इकाईयों को भंग करते हुए नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी घोषित करे। तभी सेवा-शर्त लागू होना संभव है। अब ये कैसे होगा ये सरकार और हम पर निर्भर है। या तो सड़क पर लड़कर या हाईकोर्ट जब इस सेवा शर्त को खारिज़ कर देगी तब।
उपरोक्त बातों पर आप सभी मंथन करें।
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