झालावाड़. डग. राजकीय स्कूलों में कुक कम हेल्परों को मनरेगा से भी काम दाम में पोषाहार बनाना मजबूरी बना हुआ है। जिसके चलते उन्हें घर का खर्चा चलाने में भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
इतनी मिलती है पगार
पोषाहार बनाने वाले कर्मियों को जो पगार मिलती है वह ऊंट के मुहं में जीरे के समान है। इन्हें पगार के नाम पर १ हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाती है, जो मनरेगा में मिलने वाली मजदूरी से भी बहुत कम है। महिलाओं से इस संबंध में बात की तो उनका दर्द छलक आया। उन्होंने बताया कि सभी के वेतन में बढ़ोतरी हो रही है। लेकिन वह कई वर्षों से काम कर रही है। अभी तक उनका वेतन नहीं बढ़ा है। उन्हे मनरेगा के वेतन से भी बहुत कम वेतन दिया जा रहा है। बच्चों का खाना बनाने में ही दिनभर का समय निकल जाता है। सुबह से जब से जाने तक जाती है जब से आने तक छह-सात घंटे का समय निकल जाता है।
एक दिन के ३३ रुपए
जिलेभर में करीब ३ हजार कुक कम हेल्पर स्कूलों में काम रह रहे हैं। महिलाओं ने बताया कि एक दिन के साढ़े तैंतिस रुपए मिलते हैं। इससे दो समय की सब्जी भी नहीं आ पाती है। लम्बे समय से काम कर रही है। सरकारी काम है, कभी तो सरकार हमारे साथ अच्छा करेगी इसी आशा के साथ स्कूलों में काम कर रहे हैं।
इतने बच्चों का बनता है पोषाहार
जिले के १७७२ राजकीय विद्यालयों में अध्ययन करने वाले कक्षा १ से ८ वीं तक के १ लाख ५३ हजार ८९८ छात्रों को पोषाहार दिया जाता है। जो पोषाहार बनाने वाले लोगों द्वारा स्कूल परिसर में ही तैयार किया जा जाता है।
इतने छात्रों पर एक
५० छात्रों पर एक पोषाहार कर्मी लगाया जाता है। ५० से अधिक छात्र होने पर दो पोषाहार कर्मी लगाए जाने के आदेश है, लेकिन कई विद्यालयों में १०० छात्रों पर एक ही कुक कम हेल्पर रखा है। जिसके चलते सारा काम एक व्यक्ति को करना पड़ता हैं।
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का काम भी
स्कूलों में पोषाहर स्थल व परिसर की साफ-सफाई पोषाहार बनाने वाले कार्मिक से कराई जा रही है। जिसके चलते पूरा समय ही इनका ऐसे ही निकल जाता है। जिले मेें ज्यादातर महिलाएं इस काम को कर रही है।
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इतनी मिलती है पगार
पोषाहार बनाने वाले कर्मियों को जो पगार मिलती है वह ऊंट के मुहं में जीरे के समान है। इन्हें पगार के नाम पर १ हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाती है, जो मनरेगा में मिलने वाली मजदूरी से भी बहुत कम है। महिलाओं से इस संबंध में बात की तो उनका दर्द छलक आया। उन्होंने बताया कि सभी के वेतन में बढ़ोतरी हो रही है। लेकिन वह कई वर्षों से काम कर रही है। अभी तक उनका वेतन नहीं बढ़ा है। उन्हे मनरेगा के वेतन से भी बहुत कम वेतन दिया जा रहा है। बच्चों का खाना बनाने में ही दिनभर का समय निकल जाता है। सुबह से जब से जाने तक जाती है जब से आने तक छह-सात घंटे का समय निकल जाता है।
एक दिन के ३३ रुपए
जिलेभर में करीब ३ हजार कुक कम हेल्पर स्कूलों में काम रह रहे हैं। महिलाओं ने बताया कि एक दिन के साढ़े तैंतिस रुपए मिलते हैं। इससे दो समय की सब्जी भी नहीं आ पाती है। लम्बे समय से काम कर रही है। सरकारी काम है, कभी तो सरकार हमारे साथ अच्छा करेगी इसी आशा के साथ स्कूलों में काम कर रहे हैं।
इतने बच्चों का बनता है पोषाहार
जिले के १७७२ राजकीय विद्यालयों में अध्ययन करने वाले कक्षा १ से ८ वीं तक के १ लाख ५३ हजार ८९८ छात्रों को पोषाहार दिया जाता है। जो पोषाहार बनाने वाले लोगों द्वारा स्कूल परिसर में ही तैयार किया जा जाता है।
इतने छात्रों पर एक
५० छात्रों पर एक पोषाहार कर्मी लगाया जाता है। ५० से अधिक छात्र होने पर दो पोषाहार कर्मी लगाए जाने के आदेश है, लेकिन कई विद्यालयों में १०० छात्रों पर एक ही कुक कम हेल्पर रखा है। जिसके चलते सारा काम एक व्यक्ति को करना पड़ता हैं।
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का काम भी
स्कूलों में पोषाहर स्थल व परिसर की साफ-सफाई पोषाहार बनाने वाले कार्मिक से कराई जा रही है। जिसके चलते पूरा समय ही इनका ऐसे ही निकल जाता है। जिले मेें ज्यादातर महिलाएं इस काम को कर रही है।
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