कुछ दिनों पहले बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का एक वीडियो वायरल हुआ था. इस वीडियो में तेजस्वी पटना के इको पार्क में भीड़ के बीच से डीएम को फोन लगाकर बात कर रहे थे, धरना देने को लोकतान्त्रिक अधिकार बता रहे थे. लेकिन ये धरना-प्रदर्शन किस बात को लेकर था? दरअसल बिहार में 94000 शिक्षकों की बहाली को लेकर अभ्यर्थी प्रदर्शन कर रहे थे. क्या है इतनी भारी संख्या में शिक्षक बहाली का मामला, और प्रदर्शनकारी अभ्यर्थियों की मांगें क्या हैं, सब विस्तार से जानेंगे.
बिहार में 94000 शिक्षकों की बहाली का पूरा मामला?
बिहार और बिहार की शिक्षा व्यवस्था पूरे विश्व में प्रसिद्ध रही है. तीन साल का बीए पांच साल में करने वाला फॉर्मूला छोड़ भी दें, तो भी कई ऐसे मुद्दे हैं जिसकी वजह से इस राज्य के एजुकेशन सिस्टम को शर्मसार होना पड़ा है. इन्हीं में से एक है सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी. आप कहेंगे ये तो पूरे देश का मसला है. सही बात है, लेकिन थोड़ा आंकड़ों पर नज़र डालें तो याद आता है कि पंजाब के एक आरटीआई एक्टिविस्ट जय गोपाल धीमन ने प्राथमिक शिक्षकों का डाटा निकलवाया था. इस डाटा के मुताबिक़, पूरे भारत में प्राथमिक शिक्षकों के 10 लाख से अधिक पद खाली हैं. इनमें से अकेले बिहार में 3 लाख पदों को शिक्षकों का इंतजार है.
ये तो हुई समस्या, अब समाधान पर आते हैं. सरकारी समाधान. बिहार में प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति आखिरी बार 2015 में की गई थी. इसके बाद पिछले पांच साल में कोई नया शिक्षक बहाल नहीं हुआ है. अब आप सोचिए कि इतने बड़े राज्य में, जहां सरकारी शिक्षा तंत्र की खस्ता हालत का सबको पता है, हर साल कितने शिक्षक रिटायर होते होंगे? मतलब लगातार शिक्षक काम होते गए और सरकारी कागज़-पत्तर के चक्कर में नई बहाली हुई नहीं.
कट टू 2017. बिहार शिक्षक पात्रता परीक्षा यानी BTET करवाने को लेकर छात्र प्रदर्शन करते हैं. 20 फरवरी से लेकर 28 फरवरी तक अनशन पर बैठते हैं. तब जाकर सरकार ने बिहार शिक्षक पात्रता परीक्षा करवाई. परीक्षा तो हुई मगर रिजल्ट नहीं आया. छात्रों को रिजल्ट के लिए दोबारा 2018 में आंदोलन करना पड़ा, तब जाकर रिजल्ट निकला. रिजल्ट निकला, स्टूडेंट्स पास हो गए. लेकिन अब बहाली का कोई अता-पता नहीं. 2019 में जून के महीने में फिर आंदोलन हुआ. तब जाकर जुलाई 2019 में बिहार सरकार ने 94000 शिक्षकों की बहाली का नोटिफिकेशन निकाला. मुमकिन है कि आपको ये सब जानकर हंसी आ रही होगी. आनी भी चाहिए. लेकिन हंसने से पहले ये ध्यान रहे कि ये एक राज्य के शिक्षा तंत्र या कहना उचित होगा कि सरकारी शिक्षा तंत्र की सच्चाई है. बिहार के अभ्यर्थी राजेंद्र के मुताबिक, ये 94000 शिक्षकों की बहाली कोई नई बहाली नहीं थी. 2011 से 2015 तक की बहाली में जो सीटें खाली रह गई थीं, ये उन्हीं को भरने का नोटिफिकेशन था.
एक-एक उम्मीदवार को आवेदन में चालीस हज़ार लग गए
शिक्षक बहाली का नोटिफिकेशन भी आ गया और स्टूडेंट्स पास भी हो गए. अब चुनौती थी जहां-जहां वैकेंसी थी, वहां आवेदन करना. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि इस आवेदन के चक्कर में कई छात्रों के चालीस से पचास हज़ार रुपये तक खर्च हो गए. आपको लग रहा होगा ये कैसे हो सकता है? ये ऐसे कि छात्र हर उस जगह का फॉर्म भरते हैं, जहां उन्हें नौकरी की संभावना दिखती हो. सबने किया भी वही.
कायदे से होना ये था कि इस डिजिटल इंडिया में सभी फॉर्म ऑनलाइन होते और किसी इंटरनेट कैफ़े में बैठकर छात्र सभी जगह अप्लाई कर देते. लेकिन नहीं, मामला ऑफलाइन का था. सभी छात्रों को अलग-अलग ज़िले, प्रखंड और पंचायत में जाकर फॉर्म भरने पड़े. कई छात्रों ने 100 से 150 जगह अप्लाई किया. आने-जाने का खर्च, फॉर्म का खर्च, और अन्य जोड़ दें तो जितना हमने पहले बताया, उससे भी ज़्यादा हो जाता है. आवेदन करने वाले एक समूह ने सरकार से गुज़ारिश भी की कि आवेदन ऑनलाइन लिया जाए. लेकिन सरकार का कहना था, पंचायती राज के नियम के साथ हम छेड़छाड़ नहीं कर सकते. तो जहां-जहां जिस पंचायत या प्रखंड में वैकेंसी है, आपको वहीं जाकर आवेदन करना होगा.
क्यों नहीं दिया जा रहा था छात्रों को नियुक्ति पत्र?
अब इस कहानी से तीन सिरे निकलते हैं. एक जाता है केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा यानी CTET पास अभ्यर्थियों की ओर, दूसरा जाता है डीएलएड (डिप्लोमा इन एलीमेंटरी एजुकेशन) किए छात्रों की ओर, और तीसरा सिरा जाता है नेत्रहीन छात्रों के कोटे की ओर. पहले बात करते है CTET पास अभ्यर्थियों की. जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि ऑनलाइन आवेदन करने की आखिरी तारीख़ थी सितम्बर, 2019 में. अब CTET 2019 का रिजल्ट आया दिसंबर 2019 में. लेकिन CTET के अभ्यर्थी ये मांग करने लगे कि उन्हें भी इस बहाली में शामिल किया जाए. इस मामले में CTET के अभ्यर्थियों ने पटना हाईकोर्ट में केस भी किया. लेकिन सरकार ने डेडलाइन का हवाला देते हुए कहा कि इसको अब बदला नहीं जा सकता. हाईकोर्ट ने भी CTET अभ्यर्थियों की मांग को ख़ारिज कर दिया.इन सबके बाद मेधा-सूची निकाली गई, जिसमें कई छात्रों का नाम आया. छात्रों ने नियुक्ति पत्र की मांग की. लेकिन इसमें भी काफी समय लगा. फिर बिहार सरकार के शिक्षा विभाग को अचानक एक दिन याद आया कि ऑफलाइन आवेदन में तो छात्र गड़बड़ी भी कर सकते हैं. इसलिए सभी आवेदन अब ऑनलाइन होंगे. जी हां, दोबारा. इसकी डेडलाइन रखी गई 23 सितम्बर, 2020. नौकरी के लिए छात्रों ने ये भी किया. लेकिन फिर भी छात्रों को नियुक्ति पत्र नहीं मिल सका है. जिसके लिए छात्र जनवरी की ठंड में पटना में आंदोलन कर रहे थे. लेकिन छात्रों को आख़िर नियुक्ति पत्र क्यों नहीं दिया जा रहा था?
इसके बाद बात करते हैं डीएलएड पास छात्रों की. इन छात्रों का कहना था कि चूंकि इन्होंने डीएलएड किया है तो प्राथमिक शिक्षकों की बहाली में इन्हें वरीयता मिलनी चाहिए. ये भी कोर्ट गए. कोर्ट ने जवाब दिया कि बीएड और डीएलएड छात्रों में कोई अंतर नहीं किया जा सकता, और इनकी मांग भी खारिज हो गई.
अब तीसरा और सबसे ज़रूरी सिरा. नेत्रहीन छात्रों ने ये मांग की कि 4 प्रतिशत कोटे के तहत उन्हें रोस्टर के आधार पर सीट मुहैया कराए जाएं. सरकार ने ये मांग मान ली. लेकिन इसके बाद नेशनल फेडरेशन ऑफ़ दी ब्लाइंड ने हाईकोर्ट में सीधे मुख्य न्यायाधीश से अपील की. कहा कि उन्हें पूरे 94000 छात्रों में से 4 प्रतिशत सीटें चाहिए, क्योंकि जिन लोगों ने आवेदन किया है उसके अलावा भी कई छात्र हैं जो आकर आवेदन नहीं पाए. सरकार 1996 से वैकेंसी में कोताही बरत रही है. ये मामला अभी तक फंसा हुआ है, जिसकी वजह से छात्रों को नियुक्ति पत्र नहीं दिया जा सका है.
हाल ही में बिहार के प्राथमिक शिक्षा विभाग के डायरेक्टर रंजीत कुमार सिन्हा ने आंदोलनकारी छात्रों को ये आश्वासन दिया कि जल्द ही सभी मामले निपटाकर उन्हें नियुक्ति पत्र प्रदान किया जाएगा. हालांकि इस सम्बन्ध में लल्लनटॉप ने रणजीत कुमार सिन्हा से बात करने के लिए उनके ऑफिस फ़ोन किया तो वो उपलब्ध नहीं थे.
ये है बिहार में शिक्षक बहाली का सारा खेल. भले ही छात्रों की नियुक्ति का रास्ता अब साफ़ दिख रहा है, लेकिन ये पूरा प्रकरण बिहार के सरकारी शिक्षा तंत्र पर सवाल खड़े करता है. क्यों छात्रों को परीक्षा से लेकर रिजल्ट तक के लिए आंदोलन करना पड़ता है? जब शिक्षकों के लाखों पद खाली हैं तो सरकारी स्कूलों में बच्चों को उनके मां-बाप क्यों भेजें? जिन छात्रों का इतना पैसा ऑफलाइन आवेदन में खर्च हुआ, उसका ज़िम्मेदार कौन है? ऐसे ही कई सवाल हैं जो बिहार की शिक्षा तंत्र को बदहाल बताने के लिए काफी हैं.