ऑडियो के आधार पर ब्रजवासी के खिलाफ कुछ भी बोलने या आरोप लगाने वाले शिक्षक जरा इसे भी पढ़ लें -
इसमें कोई दो राय नहीं। परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर ब्रजवासी ने ही नियोजित शिक्षकों को वेतनमान दिलवाया।
इसके लिए उन्होंने RTI से उड़ीसा, मध्यप्रदेश, यूपी, छतिसागढ़ आदि राज्यों में शिक्षकों को मिलने वाली सुविधाओं की सूची मंगाई। तमाम सरकारी अवरोधों के बावजूद इन्होंने ही कहा कि सरकार नहीं ज्यादा तो 5200-20200 वाला ही वेतन दे। मुझे याद है कि वर्ष 14 के दिसम्बर में हाड़कंपाती ठंडी रात में कैसे उन्होंने पत्नी के साथ कई दिनों तक आमरण अनशन किया था। बाद में हड़ताल और मांगें पूरी भी हुई।
हां, यह बात गौरतलब है कि इस चाइनीज वेतन में टेट व अप्रशिक्षित शिक्षकों के साथ नाइंसाफी की गई। लेकिन अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने समान काम के लिए समान वेतनमान का फैसला सुना ही दिया है। ब्रजवासी ने वर्ष 2013 में इस मुद्दे पर हाई कोर्ट, पटना में केस किया था। लेकिन नियमों का हवाला देकर कोर्ट ने केस ख़ारिज कर दिया था। तो ब्रजवासी जी ने डबल बेंच में अपील किया। संयोग से डबल बेंच में केस की पहली सुनवाई से पहले ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला मजबूत आधार बना केस जीतने के लिए। लेकिन वर्ष 16 के नवम्बर से वर्ष 17 के मार्च तक। सरकारी तिकड़म के कारण तीन बार सुनवाई हो गई है इस मुद्दे पर। पर मामला अधर में लटका है। सवाल यह भी उठता है कि बिल्ली की अम्मा कब तक खैर मनाएगी।
इसी वर्ष मार्च के पहले सप्ताह में हुई तीसरी सुनवाई में जज नए आए थे। कल ब्रजवासी ने फोन पर बताया कि संभवतः अप्रैल के पहले सप्ताह में चौथी और अंतिम सुनवाई है। क्योंकि सरकार द्वारा शपथपत्र के रूप में हलफनामा देने के कारण अब मामला लम्बा नहीं खिंच सकता। हाई कोर्ट को निर्णय सुनाना ही होगा। यदि कोर्ट केस को ख़ारिज कर देता है तो सुप्रीम कोर्ट में छह महीने में इस पर सुनवाई हो जाएगी। लेकिन देखना यह भी है कि समान काम के लिए समान वेतनमान वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट, पटना कैसे ख़ारिज करता है।
ऐसे में हड़ताल-हड़ताल का खेल नहीं भी चले तो कोई फर्क पड़ेगा क्या? पटना में 31 मार्च को आयोजित सभी संघों की बैठक में प्रदीप कुमार पप्पू नहीं पहुंचे। इसलिए हड़ताल को लेकर कोई सहमति नहीं बन सकी। एक शिक्षक ने फोन पर ब्रजवासी से कुछ ऐसे सवाल किए कि नाराजगी में उन्होंने खरी-खोटी सुना दी, असंसदीय भाषा का प्रयोग कर। जो कि उनके जैसे सम्मानित शिक्षक नेता के स्वभाव के विपरीत है। लेकिन गुस्से भरी बिहारीपन शैली में सब कुछ जायज है। और हम नियोजित शिक्षकों के मसीहा ब्रजवासी से निवेदन करेंगे कि आपको शिक्षक गंभीरता से लेते हैं। आइंदा इस पर ध्यान रखेंगे किसी से बतियाते हुए कि कोई आहत न हो आपकी जुबान से। वरना आपको बदनाम करने के लिए सैकड़ों रंगे बिलार तो पीछे पड़े ही रहते हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं। परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर ब्रजवासी ने ही नियोजित शिक्षकों को वेतनमान दिलवाया।
इसके लिए उन्होंने RTI से उड़ीसा, मध्यप्रदेश, यूपी, छतिसागढ़ आदि राज्यों में शिक्षकों को मिलने वाली सुविधाओं की सूची मंगाई। तमाम सरकारी अवरोधों के बावजूद इन्होंने ही कहा कि सरकार नहीं ज्यादा तो 5200-20200 वाला ही वेतन दे। मुझे याद है कि वर्ष 14 के दिसम्बर में हाड़कंपाती ठंडी रात में कैसे उन्होंने पत्नी के साथ कई दिनों तक आमरण अनशन किया था। बाद में हड़ताल और मांगें पूरी भी हुई।
हां, यह बात गौरतलब है कि इस चाइनीज वेतन में टेट व अप्रशिक्षित शिक्षकों के साथ नाइंसाफी की गई। लेकिन अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने समान काम के लिए समान वेतनमान का फैसला सुना ही दिया है। ब्रजवासी ने वर्ष 2013 में इस मुद्दे पर हाई कोर्ट, पटना में केस किया था। लेकिन नियमों का हवाला देकर कोर्ट ने केस ख़ारिज कर दिया था। तो ब्रजवासी जी ने डबल बेंच में अपील किया। संयोग से डबल बेंच में केस की पहली सुनवाई से पहले ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला मजबूत आधार बना केस जीतने के लिए। लेकिन वर्ष 16 के नवम्बर से वर्ष 17 के मार्च तक। सरकारी तिकड़म के कारण तीन बार सुनवाई हो गई है इस मुद्दे पर। पर मामला अधर में लटका है। सवाल यह भी उठता है कि बिल्ली की अम्मा कब तक खैर मनाएगी।
इसी वर्ष मार्च के पहले सप्ताह में हुई तीसरी सुनवाई में जज नए आए थे। कल ब्रजवासी ने फोन पर बताया कि संभवतः अप्रैल के पहले सप्ताह में चौथी और अंतिम सुनवाई है। क्योंकि सरकार द्वारा शपथपत्र के रूप में हलफनामा देने के कारण अब मामला लम्बा नहीं खिंच सकता। हाई कोर्ट को निर्णय सुनाना ही होगा। यदि कोर्ट केस को ख़ारिज कर देता है तो सुप्रीम कोर्ट में छह महीने में इस पर सुनवाई हो जाएगी। लेकिन देखना यह भी है कि समान काम के लिए समान वेतनमान वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट, पटना कैसे ख़ारिज करता है।
ऐसे में हड़ताल-हड़ताल का खेल नहीं भी चले तो कोई फर्क पड़ेगा क्या? पटना में 31 मार्च को आयोजित सभी संघों की बैठक में प्रदीप कुमार पप्पू नहीं पहुंचे। इसलिए हड़ताल को लेकर कोई सहमति नहीं बन सकी। एक शिक्षक ने फोन पर ब्रजवासी से कुछ ऐसे सवाल किए कि नाराजगी में उन्होंने खरी-खोटी सुना दी, असंसदीय भाषा का प्रयोग कर। जो कि उनके जैसे सम्मानित शिक्षक नेता के स्वभाव के विपरीत है। लेकिन गुस्से भरी बिहारीपन शैली में सब कुछ जायज है। और हम नियोजित शिक्षकों के मसीहा ब्रजवासी से निवेदन करेंगे कि आपको शिक्षक गंभीरता से लेते हैं। आइंदा इस पर ध्यान रखेंगे किसी से बतियाते हुए कि कोई आहत न हो आपकी जुबान से। वरना आपको बदनाम करने के लिए सैकड़ों रंगे बिलार तो पीछे पड़े ही रहते हैं।