मंगलवार (सात मार्च) को बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के पूर्व कुलपति डा. मेवालाल चौधरी की अग्रिम जमानत अर्जी अतिरिक्त जिला जज षष्टम राकेश कुमार मालवीय ने खारिज कर दी। उनके खिलाफ 161 कनीय शिक्षक और जूनियर वैज्ञानिक गलत तरीके से बहाल करने का आरोप है।
मेवालाल चौधरी की अग्रिम जमानत की अर्जी जिला जज के इजलास में दायर की गई थी। जिसकी सुनवाई के लिए एडीजे राकेश कुमार मालवीय के इजलास में भेज दिया। शनिवार को थाने से केस डायरी बहस खत्म होने के बाद अदालत लाई गई। जिसपर सुनवाई के लिए मंगलवार तय किया था। मेवालाल चौधरी की तरफ से पटना उच्च न्यायालय के वरीय वकील अभय कुमार सिंह, बैधनाथ ठाकुर और जवाहर प्रसाद ने बहस की और मामला राजनीति से प्रेरित बताया। दलील में कहा कि भाजपा नेता सुशील मोदी और हम पार्टी के नेता जीतनराम मांझी की शिकायत पर ऐसा हुआ है।
बचाव पक्ष ने जमानत के वास्ते और भी दलीलें दी। जिसके विरोध में लोक अभियोजक सत्यनारायण प्रसाद साह ने अपनी बात रखी। उन्होंने जस्टिस महफूज आलम की जांच रिपोर्ट हवाला दिया। जिसमें मेवालाल चौधरी को बहाली में गड़बड़ी करने की बात लिखी है। लोक अभियोजक ने साफ़ शब्दों में कहा कि जिस तरह भगवान को नहीं देखा जा सकता । उसी तरह घूस के लेनदेन को भी नहीं देखा जा सकता। तकरीबन एक घंटे तक चली बहस के बाद अदालत ने उनकी अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी। ऐसा लोक अभियोजक सत्यनारायण प्रसाद साह ने बताया। इधर मेवालाल चौधरी के वरीय वकील जवाहर प्रसाद ने बताया कि जमानत के लिए पटना हाई कोर्ट जायँगे।
एसएसपी मनोज कुमार बताते है कि पूर्व कुलपति के खिलाफ विभिन्न गैरजमानती दफा के तहत प्राथमिकी संख्या 35/17 लिखी है। जाँच के दौरान जरुरत और अपराध के मुताबिक दफाएं बदली भी जा सकती है। इसमें शरीक विश्वविद्यालय के अधिकारी और जिन्हें फायदा मिला वे भी घेरे में आ सकते है। इसके लिए डीएसपी के नेतृत्व में विशेष जांच टीम का गठन किया है।
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गौरतलब है कि डा. मेवालाल चौधरी फ़िलहाल मुंगेर के तारापुर विधानसभा सीट से जद(एकी) के विधायक है। जब भागलपुर कृषि कालेज को नीतीश कुमार की सरकार ने विश्वविद्यालय का दर्जा दिया तो मेवालाल चौधरी को पहला कुलपति बनाया। ये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भरोसे के और नजदीकी माने जाते है। ये रिटायर हुए तो इनको जद ( एकी) का टिकट दे विधयक बना दिया। इससे पहले ये जब कुलपति थे तो इनकी पत्नी नीता चौधरी जद ( एकी) की टिकट पर तारापुर की विधायक चुनी गई थी। नीतीश कुमार से रिश्ते का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। लेकिन बहाली में गड़बड़ी की बात सामने आने और राजभवन से प्राथमिकी दर्ज होने के बाद विपक्षी तेवर इनके खिलाफ कड़े होने की वजह से मेवालाल चौधरी को जद (एकी) से बाहर का रास्ता दिखाने को नीतीश कुमार को मजबूर होना पड़ा। दिलचस्प बात है कि विधायक बनने के पूर्व इन दोनों पत्नी पति की राजनैतिक पृष्टभूमि नहीं रही है। बीते सोमवार और मंगलवार को विधान परिषद में भी विपक्ष ने डा. मेवालाल चौधरी की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर हंगामा किया।
जानकार बताते है कि इनके कुलपति कार्यकाल में बड़ा खेल हुआ है। बहरहाल तो मामला 161 सहायक शिक्षक और जूनियर वैज्ञानिक बहाली में धांधली का है। इन बहालियों में डा. मेवालाल चौधरी ही बतौर कुलपति ही चयन बोर्ड के अध्यक्ष थे। ये बहाली जुलाई 2011 में प्रकाशित इश्तहार के माध्यम से बाकायदा इंटरव्यू प्रक्रिया के तहत की गई थी। जिसमें 80 अंक अकादमी योग्यता , 10 अंक इंटरव्यू और 10 अंक पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन के मिलकर 100 अंक तय किए थे। मगर बहाल किसी का भी आकदमी अंक 80 नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर के आधे से भी कम है। मगर इन्हें इंटरवयू और प्वाइंट प्रजेंटेशन में पूरे 10-10 अंक देकर काबिल करार बता बहाल कर लिया।
बार बार इस बात को बताना जरूरी है कि बहाली में गड़बड़ी और शोरशराबा इनके अवकाश ग्रहण करते ही होने लगा था। जो मामला राजभवन पटना तक पहुंचा। मामला संगीन जान राज्यपाल सह कुलाधिपति ने गहन जांच का जिम्मा सेवानिवृत जज महफूज आलम को सौपा। इन्होंने अपनी 63 जांच रपट हाल फिलहाल राजभवन को दी। इसी 16 फरवरी को कुलाधिपति के प्रधान सचिव ने मेवालाल चौधरी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश वर्तमान कुलपति प्रो. अजय कुमार को दिया। और कुलसचिव ने एफआईआर दर्ज कराई।
जानकार बताते है कि माननीय न्यायमूर्ति महफूज आलम ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि उत्तराखंड के पंतनगर के वाशिंदों का फर्जी आवासीय प्रमाणपत्र बनाया गया। कम योग्यता वालों को साक्षात्कार और पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन में पूरे अंक दिए और उनके वारे में अनुकूल टिप्पणी भी खुद ही लिखी। और तो और काबिल और योग्य उम्मीदवारों को शून्य या एक दो नम्बर देकर अयोग्य करार दे दिया। ऐसे 133 काबिल लोग बताए है। इतना ही नहीं जिनको आकदमी योग्यता के 80 में 40 अंक आए उन्हें भी बहाल कर लिया गया। 23 ऐसे उम्मीदवारों का रिपोर्ट में जिक्र है जो नेट इम्तहान ही पास नहीं है।
एसएसपी मनोज कुमार बताते है कि जस्टिस की जाँच रपट को ही आधार मानकर पुलिस भी अपनी तहकीकात कर रही है। मंगलवार को लोक अभियोजक ने भी अग्रिम जमानत का विरोध जस्टिस की जांच रिपोर्ट ही अदालत में पेश कर किया। जिस पर जमानत की अर्जी खारिज का आदेश सुनाया।
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मेवालाल चौधरी की अग्रिम जमानत की अर्जी जिला जज के इजलास में दायर की गई थी। जिसकी सुनवाई के लिए एडीजे राकेश कुमार मालवीय के इजलास में भेज दिया। शनिवार को थाने से केस डायरी बहस खत्म होने के बाद अदालत लाई गई। जिसपर सुनवाई के लिए मंगलवार तय किया था। मेवालाल चौधरी की तरफ से पटना उच्च न्यायालय के वरीय वकील अभय कुमार सिंह, बैधनाथ ठाकुर और जवाहर प्रसाद ने बहस की और मामला राजनीति से प्रेरित बताया। दलील में कहा कि भाजपा नेता सुशील मोदी और हम पार्टी के नेता जीतनराम मांझी की शिकायत पर ऐसा हुआ है।
बचाव पक्ष ने जमानत के वास्ते और भी दलीलें दी। जिसके विरोध में लोक अभियोजक सत्यनारायण प्रसाद साह ने अपनी बात रखी। उन्होंने जस्टिस महफूज आलम की जांच रिपोर्ट हवाला दिया। जिसमें मेवालाल चौधरी को बहाली में गड़बड़ी करने की बात लिखी है। लोक अभियोजक ने साफ़ शब्दों में कहा कि जिस तरह भगवान को नहीं देखा जा सकता । उसी तरह घूस के लेनदेन को भी नहीं देखा जा सकता। तकरीबन एक घंटे तक चली बहस के बाद अदालत ने उनकी अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी। ऐसा लोक अभियोजक सत्यनारायण प्रसाद साह ने बताया। इधर मेवालाल चौधरी के वरीय वकील जवाहर प्रसाद ने बताया कि जमानत के लिए पटना हाई कोर्ट जायँगे।
एसएसपी मनोज कुमार बताते है कि पूर्व कुलपति के खिलाफ विभिन्न गैरजमानती दफा के तहत प्राथमिकी संख्या 35/17 लिखी है। जाँच के दौरान जरुरत और अपराध के मुताबिक दफाएं बदली भी जा सकती है। इसमें शरीक विश्वविद्यालय के अधिकारी और जिन्हें फायदा मिला वे भी घेरे में आ सकते है। इसके लिए डीएसपी के नेतृत्व में विशेष जांच टीम का गठन किया है।
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गौरतलब है कि डा. मेवालाल चौधरी फ़िलहाल मुंगेर के तारापुर विधानसभा सीट से जद(एकी) के विधायक है। जब भागलपुर कृषि कालेज को नीतीश कुमार की सरकार ने विश्वविद्यालय का दर्जा दिया तो मेवालाल चौधरी को पहला कुलपति बनाया। ये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भरोसे के और नजदीकी माने जाते है। ये रिटायर हुए तो इनको जद ( एकी) का टिकट दे विधयक बना दिया। इससे पहले ये जब कुलपति थे तो इनकी पत्नी नीता चौधरी जद ( एकी) की टिकट पर तारापुर की विधायक चुनी गई थी। नीतीश कुमार से रिश्ते का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। लेकिन बहाली में गड़बड़ी की बात सामने आने और राजभवन से प्राथमिकी दर्ज होने के बाद विपक्षी तेवर इनके खिलाफ कड़े होने की वजह से मेवालाल चौधरी को जद (एकी) से बाहर का रास्ता दिखाने को नीतीश कुमार को मजबूर होना पड़ा। दिलचस्प बात है कि विधायक बनने के पूर्व इन दोनों पत्नी पति की राजनैतिक पृष्टभूमि नहीं रही है। बीते सोमवार और मंगलवार को विधान परिषद में भी विपक्ष ने डा. मेवालाल चौधरी की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर हंगामा किया।
जानकार बताते है कि इनके कुलपति कार्यकाल में बड़ा खेल हुआ है। बहरहाल तो मामला 161 सहायक शिक्षक और जूनियर वैज्ञानिक बहाली में धांधली का है। इन बहालियों में डा. मेवालाल चौधरी ही बतौर कुलपति ही चयन बोर्ड के अध्यक्ष थे। ये बहाली जुलाई 2011 में प्रकाशित इश्तहार के माध्यम से बाकायदा इंटरव्यू प्रक्रिया के तहत की गई थी। जिसमें 80 अंक अकादमी योग्यता , 10 अंक इंटरव्यू और 10 अंक पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन के मिलकर 100 अंक तय किए थे। मगर बहाल किसी का भी आकदमी अंक 80 नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर के आधे से भी कम है। मगर इन्हें इंटरवयू और प्वाइंट प्रजेंटेशन में पूरे 10-10 अंक देकर काबिल करार बता बहाल कर लिया।
बार बार इस बात को बताना जरूरी है कि बहाली में गड़बड़ी और शोरशराबा इनके अवकाश ग्रहण करते ही होने लगा था। जो मामला राजभवन पटना तक पहुंचा। मामला संगीन जान राज्यपाल सह कुलाधिपति ने गहन जांच का जिम्मा सेवानिवृत जज महफूज आलम को सौपा। इन्होंने अपनी 63 जांच रपट हाल फिलहाल राजभवन को दी। इसी 16 फरवरी को कुलाधिपति के प्रधान सचिव ने मेवालाल चौधरी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश वर्तमान कुलपति प्रो. अजय कुमार को दिया। और कुलसचिव ने एफआईआर दर्ज कराई।
जानकार बताते है कि माननीय न्यायमूर्ति महफूज आलम ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि उत्तराखंड के पंतनगर के वाशिंदों का फर्जी आवासीय प्रमाणपत्र बनाया गया। कम योग्यता वालों को साक्षात्कार और पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन में पूरे अंक दिए और उनके वारे में अनुकूल टिप्पणी भी खुद ही लिखी। और तो और काबिल और योग्य उम्मीदवारों को शून्य या एक दो नम्बर देकर अयोग्य करार दे दिया। ऐसे 133 काबिल लोग बताए है। इतना ही नहीं जिनको आकदमी योग्यता के 80 में 40 अंक आए उन्हें भी बहाल कर लिया गया। 23 ऐसे उम्मीदवारों का रिपोर्ट में जिक्र है जो नेट इम्तहान ही पास नहीं है।
एसएसपी मनोज कुमार बताते है कि जस्टिस की जाँच रपट को ही आधार मानकर पुलिस भी अपनी तहकीकात कर रही है। मंगलवार को लोक अभियोजक ने भी अग्रिम जमानत का विरोध जस्टिस की जांच रिपोर्ट ही अदालत में पेश कर किया। जिस पर जमानत की अर्जी खारिज का आदेश सुनाया।
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