डिजिटल डेस्क, औरंगाबाद।
बिहार का शिक्षा विभाग एक अत्यंत संवेदनशील विभाग माना जाता है, जहां से जारी होने वाले आदेश सीधे शिक्षकों, विद्यालय प्रशासन और शैक्षणिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। ऐसे में यदि विभागीय पत्रों में भारी वर्तनी और भाषा संबंधी अशुद्धियां पाई जाएं, तो यह न केवल अधिकारियों की लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि विभाग की गंभीरता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
औरंगाबाद जिले के एक प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO) की ओर से जारी एक पत्र इन दिनों सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें दर्जनों वर्तनी और मात्रा की गलतियां पाई गई हैं।
पत्र में पाई गईं गंभीर भाषाई त्रुटियां
वायरल हो रहे पत्र में—
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समय को समस
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निरीक्षण को निरीक्षन
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अंकुश को अंकुस
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सूचना को सुचना
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विपरीत को विपरित
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व्यवस्था को व्यवस्थ
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गुणवत्ता को गुनवता
जैसे शब्द लिखे गए हैं।
बताया जा रहा है कि मात्र 10 प्वाइंट के इस पत्र में 12 से अधिक भाषाई गलतियां हैं। सोशल मीडिया पर लोग तंज कसते हुए कह रहे हैं कि इतनी गलतियां तो तीसरी कक्षा का छात्र भी नहीं करता।
12 दिसंबर 2025 को जारी हुआ था पत्र
जानकारी के अनुसार यह पत्र 12 दिसंबर 2025 को औरंगाबाद जिले के प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी द्वारा जारी किया गया था, जिसमें जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO) की ओर से आयोजित समीक्षा बैठक से संबंधित निर्देश दिए गए थे।
पत्र की भाषा और वर्तनी ने यह साफ कर दिया कि आदेश जारी करने से पहले न तो इसकी जांच की गई और न ही किसी प्रकार की भाषा-संशोधन प्रक्रिया अपनाई गई।
शिक्षकों ने लगाए गंभीर आरोप
नाम न छापने की शर्त पर कई शिक्षकों ने बताया कि—
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प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी का मुख्य कार्य शिक्षकों को परेशान करना बन गया है
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छोटी-छोटी बातों पर वेतन रोक दिया जाता है
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महिला शिक्षकों की मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) और बकाया वेतन पास कराने के नाम पर अवैध मांग की जाती है
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मांग पूरी न होने पर शिक्षकों को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है
एक शिक्षक ने बताया कि यदि BEO और DEO कार्यालयों की निष्पक्ष जांच हो जाए, तो कई अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का खुलासा हो सकता है।
सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया
पत्र वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। लोग शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे हैं और इसे विभागीय लापरवाही का प्रतीक बता रहे हैं।
लोगों का कहना है कि जब आदेश जारी करने में इतनी लापरवाही बरती जा रही है, तो यह साफ है कि शिक्षा व्यवस्था को लेकर अधिकारी कितने गंभीर हैं।
पत्र महज एक बानगी?
शिक्षकों का कहना है कि यह पत्र केवल एक उदाहरण है।
आरोप है कि—
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प्रमोशन
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स्कूल मद में आए धन के उपयोग
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कार्यालयी कार्यों
सब कुछ तय हिस्सेदारी और चिन्हित वेंडरों के माध्यम से कराया जाता है। अधिकारियों द्वारा दबाव बनाया जाता है कि काम उन्हीं से कराया जाए।
निष्कर्ष
एक ओर सरकार शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और व्यवस्था को बेहतर बनाने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की इस तरह की लापरवाही विभाग की छवि को नुकसान पहुंचा रही है। वायरल पत्र ने न केवल प्रशासनिक उदासीनता को उजागर किया है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त अव्यवस्थाओं की ओर भी इशारा किया है।