--> <!--Can't find substitution for tag [post.title]--> | The Bihar Teacher Times - बिहार शिक्षक नियोजन

LIVE : UPTET Result 2021

Breaking Posts

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर सियासत की कालिख

बगहा । बच्चों को शिक्षित बनाएं, देश को आगे बढ़ाएं जैसे कई नारों के जरिए जागरुकता फैलाई जा रही है। ताकि, बच्चे स्कूल जाएं। इसका असर भी है। लोग बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं। पर, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए सरकार की ओर से स्कूलों में की गई व्यवस्था इतनी लचर हैं कि सुनहरे भविष्य गढ़ने स्कूल जाने वाले बच्चों के सपने चकनाचूर हो रहे हैं। अधिकारियों से लेकर सियासत के लोगों तक की नजर स्कूलों में संचालित होने वाली योजनाओं पर है। बच्चों को गुणवत्ता शिक्षा कैसे मिले?
इसकी चिता किसी को नहीं है। पड़ताल करती रिपोर्ट। कदम-कदम पर बदइंतजामी के ब्रेकर वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र में बगहा अनुमंडल के सात प्रखंडों की प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा की हालत यह है कि कहीं स्कूल हैं तो शिक्षक नहीं। जहां शिक्षक हैं वहां स्कूल नहीं। बदइंतजामी के ब्रेकर कदम-कदम पर हैं। इसलिए निजी स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या घटती ही जा रही है। यहां अधिकांश प्राइमरी स्कूलों में अभी भी बच्चे फर्श पर बैठते हैं। शिक्षक समय पर विद्यालय नहीं आते। सियासत के नुमाइंदों की चुप्पी के कारण बच्चों के भविष्य पर कालिख लग रही है। सर्व शिक्षा अभियान की ओर से अब भवन निर्माण की राशि नहीं दी जाती। दो दशक पूर्व बने स्कूल भवन मरम्मत नहीं होने के कारण जर्जर हो गये हैं। इन भवनों की मरम्मत के लिए सरकार के पास पैसे नही है। भवन हीन विद्यालयों के बच्चे धूप और बारिश में कैसे पढ़ेंगे इसकी चिता भी किसी को नहीं है। जनप्रतिनिधि इस अहम सवाल को संसद एवं विधानसभा के पटल तक नहीं पहुंचा पाए हैं। चंदे के धंधे ने नेताजी को किया मजबूर सरकारी स्कूलों की अव्यवस्था का लाभ प्राइवेट स्कूलों को मिल रहा है। यहां शहर से लेकर गांव तक 544 प्राइवेट स्कूल संचालित है। इन स्कूलों में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात की जाए तो इनके हालात भी सरकारी स्कूलों से अच्छे नही है। फिर भी अभिभावक मजबूर हैं। राइट टू एजूकेशन के तहत 125 फीसद गरीब बच्चों के प्रवेश का निर्देश है। पर , किसी प्राइवेट स्कूल में इसका पालन नहीं होता। कोई गरीब अभिभावक इसकी शिकायत अगर अधिकारियों से करता हैं तो वे मौन साध जाते। अगर शिकायत नेताओं तक पहुंची तो वे चंदे के धंधे से मजबूर है। क्योंकि नेताजी की रैली, सभा आदि के खर्चे में प्राइवेट स्कूल संचालकों की हिस्सेदारी जो रहती है। यहीं कारण है कि प्राइवेट स्कूल के संचालक अभिभावकों का शोषण कर रहे हैं। कभी फीस के नाम तो कभी किताब और ड्रेस के लिए। अभिभावकों के पास कोई विकल्प नहीं है, इस लिए वे शोषित हो रहे हैं। बरसात में 43 स्कूलों में नहीं होती पढ़ाई

यह बगहा अनुमंडल के दियारा में अवस्थित प्राइमरी स्कूलों का हाल है। बरसात के तीन महीने पूरी तरह से यहां के स्कूलों में पढ़ाई बंद रहती है और बच्चे गंडक नदी में मछली मारते हैं। चूंकि इन स्कूलों तक जाने के लिए कोई रास्ता ही नहीं है। जनप्रतिनिधियों ने कभी यह सोचा भी नहीं कि विकास के ढांचे को मजबूत करने वाली शिक्षा को बुनियादी तौर पर मजबूत किया जाए। यही वजह है कि दियारा स्कूलों तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। ऐसी बात भी नहीं है कि इन प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की पदस्थापन नहीं हुई है। बरसात के दिनों में शिक्षक अपने घर रहते हैं। प्रधान शिक्षक छात्र उपस्थिति पंजी में फर्जी हाजिरी बनाते हैं। नियमित रूप से एमडीएम की रिपोर्ट जारी होती है। बच्चे भले मिड डे मील नहीं खाते। लेकिन प्रधान शिक्षक एमडीएम की राशि और दाल -सब्जी के लिए मिलने वाले पैसे हजम जरूर कर जाते हैं।
-----------------------------------------------
बगैर पढ़े मैट्रिक पास कर जाते छात्र
आइए एक नजर यहां के हाई स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर डालते हैं। अनुमंडल के सात प्रखंड में 34 उत्क्रमित हाई स्कूल है। ये सभी पहले मिडिल स्कूल थे। अभी इन्हें प्रोन्नत कर हाई स्कूल बना दिया गया है। यहां बच्चों का नामांकन भी 9 वीं 10 वीं कक्षा में होती है। लेकिन छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं हैं। मिडिल स्कूल में पदस्थापित शिक्षक ही हाई स्कूल के छात्रों को पढ़ाते हैं। स्थिति यह है कि कई जगह उर्दू के शिक्षक को संस्कृत का कक्षा लेने के लिए जाना पड़ता है। सबसे खराब स्थिति तो तब होती है जब हिदी के शिक्षक को गणित पढ़ाने के लिए वर्ग कक्ष में भेज दिया जाता है। पिपरासी ,ठकराहा और भितहा प्रखंड की स्थिति यह है कि यहां के बच्चे बिहार के स्कूलों में नामांकन जरूर कराते हैं, लेकिन पढ़ने के लिए उत्तर प्रदेश जाते हैं। पिछले वर्ष पिपरासी प्रखंड के दो हाई स्कूल के 27 बच्चे मैट्रिक शामिल हुए थे जब रिजल्ट आया तो पता चला कि एक भी बच्चे उत्तीर्ण नहीं हुए। क्योंकि इन दोनों स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं। सर्व शिक्षा अभियान के पास पैसे नहीं
एक समय था जब प्रत्येक गांव में प्राइमरी स्कूल खुले थे। बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए हर गांव में स्कूल की व्यवस्था हुई थी। अभी जब सर्व शिक्षा अभियान ने विद्यालय भवन निर्माण के लिए राशि देने से इंकार किया है तो सरकार की तुगलकी फरमान सभी भवनहीन स्कूलों को बंद करने की आई। जो भी भवनहीन स्कूल हैं, उन्हें समीप के भवन वाले स्कूलों में मर्ज किया जा रहा है। जब शून्य किमी पर अवस्थित स्कूल में बच्चे पढ़ने के लिए नहीं जाते थे तो क्या दो - तीन किमी दूर अवस्थित स्कूलों में ये बच्चे पढ़ने के लिए जाएंगे? यह एक अहम सवाल है। इस सवाल का जवाब किसी भी जनप्रतिनिधि के पास नहीं है। एक्सपर्ट की राय राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त शिक्षक सदाकांत शुक्ल का कहना है कि सबसे पहली बात है शिक्षकों की भर्ती। कहीं स्टाफ कम हैं और कहीं स्टाफ हैं तो बच्चे कम हैं। भर्ती होने वाले शिक्षकों की योग्यता क्या है? इस पर ध्यान देने की जरूरत है। शिक्षकों का पढ़ाई पर समय व ध्यान देना भी जरूरी है। योग्य शिक्षक हो तो उन्हें कार्यालय में लगा दिया जाता हैं। योजनाओं से लाभ मिल सकता है लेकिन, ज्ञान का स्तर योग्य शिक्षक ही सुधार सकता है। योग्य शिक्षकों की भर्ती ही इस समस्या का हल है। अनुमंडल के सात प्रखंड की प्राइमरी शिक्षा
प्रखंड बच्चे भवनहीन स्कूल
पिपरासी 4213 03
भितहा 7672. 01
ठकराहा 5308. 11
रामनगर 14954. 20
बगहा दो 44567. 17
बगहा एक. 34695. 11
मधुबनी 9445. 02
---------------------------------
आउट ऑफ स्कूल बच्चों की संख्या बगहा एक 163
मधुबनी 40
रामनगर 407
ठकराहां 113
पिपरासी 20
भितहा 00
बगहा - दो 00
---------------
त्क्रमित हाई स्कूलों की संख्या
पिपरासी - 02
भितहा - 04
ठकराहा- 0 4
रामनगर -03
बगहा दो- 16
मधुबनी - 08

बगहा एक - 11

Popular Posts

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();