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पटना: सरकारी स्कूलों का बदलें माहौल, बहाल हों नए शिक्षक

शिक्षाविद् राजमणि प्रसाद सिंह ने तीस वर्षों तक पटना साइंस कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवा दी है। इसके बाद राज्य के दो विश्वविद्यालयों के कुलपति रहे हैं। उन्होंने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के चेयरमैन के रूप में तीन वर्षों तक कार्य किया और छात्रहित में कई कदम उठाए जिसे आज भी याद किया जाता है।


वे श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र के चार वर्षों तक अध्यक्ष रहें। श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र को राजधानी के स्कूल-कॉलेजों से जोड़ने का श्रेय उनको ही जाता है। पहले यहां पर विज्ञान के केवल प्रदर्शनी लगती थी, लेकिन राजमणि प्रसाद सिंह की पहल पर केंद्र को बच्चों की प्रयोगशाला के रूप में विकसित किया गया।

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बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने इंटर पास करने वाले छात्रों को विज्ञान की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया। इनकी पहल पर राज्य के हजारों छात्र-छात्राओं को स्नातक में विज्ञान की पढ़ाई करने पर छात्रवृत्ति प्रदान की गई।

शैक्षणिक माहौल बनाने की जरूरत

राजमणि प्रसाद कहते हैं, किसी भी समाज का विकास तभी संभव है, जब उसके अनुकूल माहौल हो। सूबे में शिक्षा का माहौल बनाना समय की मांग है। माहौल के अभाव में शिक्षा का विकास संभव नहीं है। माहौल बनाना हर व्यक्ति का दायित्व है। यह काम एक दिन में संभव नहीं है। यह एक निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है। इसके लिए सरकार एवं समाज दोनों का आगे आने की जरूरत है।

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किसी भी समाज के विकास के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण है। शिक्षा को बढ़ावा देना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार को सबसे पहले राज्य के स्कूल-कॉलेजों में शिक्षक बहाल करने की जरूरत है। बिना शिक्षक के स्कूल-कॉलेजों में ठीक से पढ़ाई नहीं हो सकती है। बिना पढ़ाई के सभ्य समाज की रचना नहीं की जा सकती है।

वर्तमान में राज्य के अधिकांश स्कूल-कॉलेजों में शिक्षकों का घोर अभाव है। इसका खामियाजा गरीब बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। संपन्न तबका तो निजी विद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ा लेता है लेकिन गरीब तबका आज भी सरकारी स्कूलों पर निर्भर है।

आधारभूत संरचना विकसित करने की जरूरत

विद्यालय सरस्वती के मंदिर होते हैं। इन मंदिरों को बेहतर बनाना समय की मांग है। सरकार अपने विद्यालयों को इस कदर विकसित करे कि निजी विद्यालय अनुकरण करें, लेकिन वर्तमान में निजी विद्यालयों के समक्ष सरकारी विद्यालय कहीं, नहीं ठहर रहे हैं। सरकारी विद्यालय भगवान भरोसे चल रहे हैं। इसमें काफी सुधार करने की
जरूरत है।

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