स्कूलों में शिक्षक नहीं कोचिंग ही है सहारा चर्चा. मैट्रिक रिजल्ट से निराश हैं छात्र

इस बार कटिहार जिले में आधे से अधिक छात्र-छात्राएं मैट्रिक परीक्षा में फेल हो गये हैं. फेल होने वालों में लड़कियों की तादाद अधिक है. इस परिणाम को लेकर बौद्धिक वर्ग शिक्षा विभाग पर भी सवाल खड़ा कर रहा है.


कटिहार : बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की ओर से जारी मैट्रिक की परीक्षा के परिणाम को लेकर यहां के शिक्षा जगत में तरह-तरह की चर्चा शुरू हो गयी है. बुद्धिजीवियों के अनुसार, जिले के अधिकांश विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के बीच इस तरह का परिणाम देकर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है. यह अलग बात है कि कुछ मेधावी छात्रों ने शिक्षकों की कमी के बावजूद कोचिंग एवं अन्य माध्यमों से पढ़ाई करके कामयाबी हासिल की है. दूसरी तरफ इस परिणाम को लेकर सिर्फ छात्र-छात्राओं को दोष देना गलत होगा. आर्थिक रुप से संपन्न एवं सक्षम  बच्चे को कोचिंग एवं अन्य संस्थानों में पढ़ कर कामयाबी हासिल कर लेते हैं.
 
पर, अधिकांश गरीब एवं मजदूर वर्ग के बच्चों को सरकारी विद्यालय के शिक्षकों के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है. अब जिस विद्यालय में शिक्षक की नहीं है तो वहां के बच्चे ट्यूशन एवं कोचिंग नहीं कर पाते हैं. जिसकी वजह से उन्हें परीक्षा में असफलता ही हाथ लगती है. इसलिये सरकार को भी अपनी व्यवस्था में सुधार लाना पड़ेगा. सिर्फ कदाचार रोकने एवं नये तरीके से उत्तर पुस्तिका की जांच कराने से शिक्षा में गुणात्मक सुधार नहीं होगा. इसके लिये जरूरी है कि प्रत्येक विद्यालय में छात्रों के अनुरूप योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध हों.
पहली बार बार कोडिंग की हुई व्यवस्था :
 
पहली बार उत्तर पुस्तिकाओं में बारकोडिंग की व्यवस्था कर उसकी जांच करायी गयी. साथ ही कदाचार रोकने एवं निष्पक्ष तरीके से उत्तर पुस्तिका की जांच कराने को लेकर बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने कई तरह की व्यवस्था की थी. इससे शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक सुधार के रूप में देखा जा रहा है. बोर्ड ने कई तरह के नये प्रयोग कर इस बार मैट्रिक व इंटर की परीक्षा लिया था. उल्लेखनीय है कि बारकोडिंग की वजह से परीक्षार्थी एवं उनके अभिभावकों को इस बार पैरवी के बल पर अंक बनाने में सफलता नहीं मिली. इससे भी कुछ रिजल्ट प्रभावित हुआ है, लेकिन आधारभूत संरचना की कमी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इस तरह की चर्चाएं स्थानीय शिक्षा जगत में हो रही है.
 
गरीब छात्र नहीं कर पाते कोचिंग : विद्यालयों में शिक्षकों की कमी की वजह से छात्र-छात्राओं का भविष्य कोचिंग संस्थानों पर निर्भर हो गया है. आर्थिक रूप से संपन्न छात्र-छात्राएं विद्यालय में नामांकन कराने के बाद कोचिंग संस्थान से जुड़ जाते हैं, जबकि गरीब एवं मजदूर वर्ग के छात्र-छात्राएं अपने घर पर ही किसी तरह पढ़ाई करते हैं. सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी होने की वजह से ही आज कोचिंग का बाजार फल फूल रहा है. 
 
85 उत्क्रमित उवि में मात्र 91 शिक्षक
माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी के बीच 50 प्रतिशत से अधिक बच्चों का अनुत्तीर्ण हो जाना शिक्षा व्यवस्था के लिए भी एक बड़ा सवाल है. कटिहार जिले में करीब 143 माध्यमिक विद्यालय हैं. अधिकांश विद्यालयों में विषय पर शिक्षक की भारी कमी है. इससे अधिक विडंबना क्या होगी कि जिले में 85 उत्क्रमित उच्च विद्यालय हैं, जिनमें में मात्र 91 शिक्षक पदस्थापित हैं.  इन विद्यालयों के अधिकांश छात्र-छात्राएं नामांकन कराने के बाद कोचिंग का सहारा लेते हैं. शिक्षकों की भारी कमी होने का असर गरीब एवं मध्यम वर्ग के बच्चों पर पड़ रहा है. फलस्वरूप उन्हें वार्षिक परीक्षा में असफलता ही हाथ लगती है. राज्य सरकार की नियोजन नीति की वजह से शिक्षकों की भारी कमी है. कई बार नियोजन प्रक्रिया शुरु की गयी. पर, खोजने से भी गणित एवं विज्ञान के शिक्षक नहीं मिल रहे हैं. शिक्षकों की कमी की वजह से ही कोचिंग का बाजार फल फूल रहा है.
कहते हैं शिक्षाविद
केबी झा कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ आरएन मंडल ने कहा कि सरकार कदाचार रोकने एवं शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने को लेकर जो पहल की है, वह ठीक है. पर, विद्यालयों में  शिक्षकों की कमी के बीच इस तरह का परिणाम सरकार के लिए भी चुनौती है. खासकर जिले के अधिकांश विद्यालयों में विषयवार शिक्षक नहीं हैं. विज्ञान एवं गणित के शिक्षक की भारी कमी है. इससे गरीब एवं मजदूर वर्ग के बच्चे अधिक प्रभावित होते हैं. परीक्षा परिणाम में ऐसे वर्ग के बच्चाें को ही असफलता मिली है.
कहते हैं डीइओ

जिला शिक्षा पदाधिकारी श्रीराम सिंह ने मैट्रिक परीक्षा परिणाम की समीक्षा कर रहे हैं. जहां कमी नजर आयेगी, उसे ठीक किया जायेगा. विद्यालय प्रधानों को भी आवश्यक दिशा निर्देश दिया जायेगा. आने वाले समय में परीक्षा परिणाम इससे बेहतर हो, उस दिशा में पहल की जायेगी.

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