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संस्कृत स्कूलों के शिक्षकों को सुप्रीमकोर्ट से नहीं मिली राहत

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सरकारी नौकरी और वेतनमान की बाट जोह रहे बिहार के संस्कृत स्कूलों के शिक्षकों को सोमवार को सुप्रीमकोर्ट से बड़ी निराशा हाथ लगी है। सुप्रीमकोर्ट ने भी उन्हे सरकारी दर्जा देने से मना करते हुए याचिकाएं खारिज कर दीं।
सुप्रीमकोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के उस फैसले पर मुहर लगा दी है जिसमें कहा गया था कि अध्यादेश खत्म होने के बाद स्कूलों का सरकारी दर्जा भी खत्म हो गया। अध्यादेश के बाद स्कूलों और शिक्षकों को सरकारी दर्जा नहीं मिल सकता। हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने याचिकाकर्ता शिक्षकों को इतनी राहत जरूर दी है कि अगर उन लोगों को भुगतान हो चुका है तो उनसे वसूली नहीं की जाएगी।
ये फैसला सोमवार को मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली संविधानपीठ ने बहुमत से सुनाया है। इस मामले में शिक्षकों के अलावा बिहार सरकार भी सुप्रीमकोर्ट आयी थी। कोर्ट राज्य सरकार की याचिका भी खारिज कर दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जबतक संस्कृत स्कूलों को सरकारी दर्जा देने वाला अध्यादेश प्रभाव में था तभी तक उन्हें सरकारी माना जाएगा। अध्यादेश खत्म होने के बाद स्कूलों का सरकारी दर्जा भी खत्म हो जाएगा। कोर्ट ने कहा कि बार बार अध्यादेश से कोई अधिकार सृजित नहीं होता क्योंकि अध्यादेश विधानसभा से पारित होकर कानून की शक्ल नहीं ले पाया।
सुप्रीमकोर्ट में संस्कृत स्कूलों के शिक्षकों और बिहार सरकार की ये याचिकाएं 22 सालों से लंबित थीं। मुद्दा अध्यादेश के समाप्त होने के बाद उस दौरान हुए काम की कानूनी वैद्यता की व्याख्या का था। हालांकि सुप्रीमकोर्ट का विस्तृत आदेश आज प्राप्त नहीं हुआ। बिहार में संस्कृत स्कूलों को अध्यादेश के जरिए सरकारी दर्जा दिया गया था लेकिन बिहार सरकार ने अध्यादेश खत्म होने के बाद इन स्कूलों को सरकारी मानने और इनके शिक्षकों को सरकारी वेतनमान देने से मना कर दिया था। मामला हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीमकोर्ट आया था।
मामले की शुरूआत 1989 में हुई जब बिहार सरकार ने चुनाव से पहले अध्यादेश जारी कर राज्य के 429 संस्कृत स्कूलों को टेक ओवर कर लिया यानी उन्हें सरकारी बना दिया। हालांकि एक शर्त भी थी कि हर स्कूल के सिर्फ सात शिक्षकों को ही सरकारी वेतनमान दिया जाएगा। अध्यादेश खत्म होने पर 1991 और 1992 में इसे पुन: लागू किया गया। 1992 में एक नई शर्त जुड़ी कि संस्कृत स्कूलों की जांच होगी और जो स्कूल ढांचागत संसाधन व अन्य मानकों पर खरे होंगे उन्हें ही सरकारी बनाया जाएगा साथ ही शिक्षकों की जांच होगी। यह अध्यादेश मार्च 1992 में खत्म हो गया। सरकार ने न तो इसे दोबारा जारी किया और न ही यह इस बीच विधानसभा से पास हो कानून की शक्ल ले पाया।
अध्यादेश खत्म होने के बाद जब सरकार ने संस्कृत स्कूलों और उसके शिक्षकों को सरकारी मानने से इन्कार कर दिया तो शिक्षकों ने पटना हाईकोर्ट मे रिट दाखिल की। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि अध्यादेश खत्म होने के बाद उससे किया गया स्कूलों का टेक ओवर भी खतम हो गया और स्कूलों की पूर्व स्थिति बहाल हो जाएगी। चूंकि कोई कानून नहीं रहा इसलिए अब उनकी स्थिति सरकारी नहीं रही। हालांकि हाईकोर्ट ने कहा कि 1989 से लेकर 1992 तक अध्यादेश लागू रहा तब तक ये स्कूल सरकारी थे इसलिए इनके सात सात शिक्षकों को उस दौरान का सरकारी वेतनमान दिया जाये। इसके बाद ये वापस सहायता प्राप्त निजी स्कूल हो गये हैं इसलिए इसके बाद इनके शिक्षकों को पुराना वेतनमान मिलेगा।

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