पटनाः बिहार के नियोजित शिक्षकों को अब जल्द ही सुप्रीम कोर्ट
के फैसले का इंतजार नहीं करना होगा. नियोजित शिक्षकों के समान काम समान
वेतन के मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई हुई. सुनवाई के
बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है. अब सुप्रीम कोर्ट के
फैसले से जल्द ही साफ हो जाएगा कि नियोजित शिक्षकों को समान काम के आधार पर
समान वेतन मिलेगा या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बिहार के साढ़े तीन लाख से अधिक नियोजित
शिक्षकों को इंतजार है. हालांकि नियोजित शिक्षकों को ऐसा लगा था कि बुधवार
को ही कोर्ट का फैसला आ जाएगा. सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई 3 अक्टूबर को होने
की बात थी. इसलिए शिक्षकों को लगा था कि 3 अक्टूबर को ही फैसला आ जाएगा.
नियोजित शिक्षकों के समान काम समान वेतन मामले में सुप्रीम कोर्ट में
जस्टिस एएम सप्रे और जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की
सुनवाई कर रही है. बुधवार को भी इस मामले में पीठ ने सुनावाई की, लेकिन
कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
आपको बता दें कि अब तक सरकार की तरफ से दलील दी गई है कि बिहार सरकार
आर्थिक रूप से शिक्षकों को वेतन देने में सक्षम नहीं है. सरकार शिक्षकों के
वेतन में केवल 20 फीसदी तक वृद्धि कर सकती है.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से सवाल किया था कि एक ही स्कूल
पढ़ाने वाले शिक्षकों के वेतनों में इतना अंतर क्यों है. एक शिक्षक को 70
हजार रुपये जबकि एक को 26 हजार रुपये ही वेतन क्यों दिया जा रहा है.
गौरतलब है कि नियोजित शिक्षकों के समान काम समान वेतन के मामले पर पटना
हाईकोर्ट ने 31 अक्टूबर 2017 को नियोजित शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया
था. बाद में राज्य सरकार ने 15 दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट
के फैसले को चुनौती दी थी.
कोर्ट में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार के स्टैंड का समर्थन किया
था.केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर 36 पन्नों के हलफनामे में
कहा गया था कि इन नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं
दियाजा सकता क्योंकि समान कार्य के लिए समान वेतन के कैटेगरी में ये
नियोजित शिक्षक नहीं आते. ऐसे में इन नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों
की तर्ज पर समान कार्य के लिए समान वेतन अगर दिया भी जाता है तो सरकार पर
प्रति वर्ष करीब 36998 करोड़ का अतिरिक्त भार आएगा.
केंद्र ने इसके पीछे यह तर्क दिया था कि बिहार के नियोजित शिक्षकों को
इसलिए लाभ नहीं दिया जा सकता क्योंकि बिहार के बाद अन्य राज्यों की ओर से
भी इसी तरह की मांग उठने लगेगी.
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