स्कूलों में परीक्षाएं ख़त्म हो गई हैं और रिजल्ट्स के आने का सिलसिला जारी है. देश भर से अलग-अलग बोर्ड के रिजल्ट्स आ रहे हैं. पर पिछले साल की तरह ही इस साल भी सबसे ज्यादा न्यूज में बिहार के रिजल्ट्स ही रहे. एक बार फिर बिहार के टॉपर ने देश-भर में सुर्खियां बटोरीं. हालांकि अन्य टॉपरों से इतर उनके कारनामों ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था की पुरानी छवि फिर से उजागर कर दी.
बिहार में शिक्षा की क्या हालत है यह जगजाहिर है. अगर आपके पास 'क्षमता' है तो आप परीक्षा पास ही नहीं टॉप भी कर सकते हैं- बिना पढ़े और किसी भी उम्र में. यूं ही नहीं यहां समर्थ पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने के लिए आतुर रहते हैं.Reuters
अचानक इतने छात्र कैसे हो गए फेल?
राज्य में इस साल पास करने वालों की संख्या में भी भारी कमी आई. बिहार बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में पिछले साल के 62 प्रतिशत के मुकाबले इस साल मात्र 35 प्रतिशत छात्र ही पास हो पाए. तो ऐसा क्या हो गया कि अचानक इतने सारे छात्र अयोग्य हो गए? शिक्षा मंत्री ने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बार परीक्षा में कदाचार यानी नकल नहीं होने दी गई. ध्यान रहे कि पिछले साल राज्य में परीक्षाओं के दौरान बड़े पैमाने पर हो रही नकल की तस्वीरों ने बिहार की भारी किरकिरी की थी. पास करने के लिए छात्रों द्वारा पढने की बजाय जान की बाजी लगा देना देश ही नहीं विदेशों में भी लोगों को चौंका गया.
तो क्या यह मान लिया जाए कि बिहार में अब कदाचार मुक्त परीक्षाएं होंगी? बहुत अच्छी बात है. तो क्या हर साल मात्र एक-तिहाई छात्र ही पास होते रहेंगे? बाकी छात्रों का क्या? वो कहां जाएंगे? वो कब पास होंगे? वो तब-तक पास नहीं होंगे जब तक शिक्षा व्यवस्था उन्हें पास होने नहीं देगी.Reuters
ज्यादातर शिक्षा मानकों पर स्थिति दयनीय
अगर केवल योग्य छात्रों को ही पास करना शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है तो उन्हें पास करने लायक बनाना भी. पर ऐसा होगा कैसे? ना राज्य के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षक हैं ना बिजली. शिक्षक और बिजली जहां चाहिए, स्कूल बिल्डिंग में, उसके लिए भी कई छात्र तरस रहे हैं.
हालत ऐसी है कि कमियां गिनने वालों की कमी पड़ जाए. मिंट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, प्रति 13 प्राथमिक स्कूल, बिहार में मात्र एक माध्यमिक स्कूल हैं. बिजली जैसी बुनियादी सुविधा मात्र 10 फीसदी स्कूलों में उपलब्ध है. राज्य के हर क्लासरूम में 78-78 छात्र पढ़ते हैं और एक शिक्षक के जिम्मे हैं 43 छात्र. कायदे से 30 होने चाहिए.
अब ऐसी हालत में छात्रों से पास होने की उम्मीद भी की जाए तो कैसे? मात्र नकल कर के. पर वो तो आपने रोक दी. कहा जाता है कि कमी सुधारने से पहले जरूरी होता है कमी को जानना. बिहार में शिक्षा की हालत क्या है वह अब उजागर हो चुकी है. यह 35 प्रतिशत पास परसेंट ही हमारी हकीकत है. अब समय है इसे सुधारने का.file image (twitter)
शिक्षा में सुधार की तत्काल जरूरत
बिहार में कदाचार मुक्त परीक्षा इस बात का उदहारण है कि अगर सरकारी तंत्र में इच्छाशक्ति हो तो क्या कुछ हासिल किया जा सकता है. कई सरकारी योजनाओं के चलते राज्य में शिक्षा व्यवस्था में सुधार भी सबके सामने है. लड़कियों को साइकिल, यूनिफार्म, शौचालय और सेनेटरी पैड्स आदि योजनाओं के आने से स्कूलों में लड़कियों की मौजूदगी बढ़ी है. राज्य की साक्षरता दर भी तेजी से बढ़ रही है, खासतौर से महिलाओं की.
ऐसे में जहां एक ओर इतने छात्रों का फेल करना परेशान करता है, वहीं दूसरी ओर उम्मीद की किरण भी जगाता है कि सुधार के प्रयास शुरू हो गए हैं. व्यवस्था में बड़े स्तर पर सुधार में समय भी लगेगा और धन भी. कोशिशें जारी रहीं तो आने वाले वक्त में शिक्षा के मामले में बिहार में बहार लाने की उम्मीद तो की ही जा सकती है.
बिहार में शिक्षा की क्या हालत है यह जगजाहिर है. अगर आपके पास 'क्षमता' है तो आप परीक्षा पास ही नहीं टॉप भी कर सकते हैं- बिना पढ़े और किसी भी उम्र में. यूं ही नहीं यहां समर्थ पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने के लिए आतुर रहते हैं.Reuters
अचानक इतने छात्र कैसे हो गए फेल?
राज्य में इस साल पास करने वालों की संख्या में भी भारी कमी आई. बिहार बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में पिछले साल के 62 प्रतिशत के मुकाबले इस साल मात्र 35 प्रतिशत छात्र ही पास हो पाए. तो ऐसा क्या हो गया कि अचानक इतने सारे छात्र अयोग्य हो गए? शिक्षा मंत्री ने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बार परीक्षा में कदाचार यानी नकल नहीं होने दी गई. ध्यान रहे कि पिछले साल राज्य में परीक्षाओं के दौरान बड़े पैमाने पर हो रही नकल की तस्वीरों ने बिहार की भारी किरकिरी की थी. पास करने के लिए छात्रों द्वारा पढने की बजाय जान की बाजी लगा देना देश ही नहीं विदेशों में भी लोगों को चौंका गया.
तो क्या यह मान लिया जाए कि बिहार में अब कदाचार मुक्त परीक्षाएं होंगी? बहुत अच्छी बात है. तो क्या हर साल मात्र एक-तिहाई छात्र ही पास होते रहेंगे? बाकी छात्रों का क्या? वो कहां जाएंगे? वो कब पास होंगे? वो तब-तक पास नहीं होंगे जब तक शिक्षा व्यवस्था उन्हें पास होने नहीं देगी.Reuters
ज्यादातर शिक्षा मानकों पर स्थिति दयनीय
अगर केवल योग्य छात्रों को ही पास करना शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है तो उन्हें पास करने लायक बनाना भी. पर ऐसा होगा कैसे? ना राज्य के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षक हैं ना बिजली. शिक्षक और बिजली जहां चाहिए, स्कूल बिल्डिंग में, उसके लिए भी कई छात्र तरस रहे हैं.
हालत ऐसी है कि कमियां गिनने वालों की कमी पड़ जाए. मिंट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, प्रति 13 प्राथमिक स्कूल, बिहार में मात्र एक माध्यमिक स्कूल हैं. बिजली जैसी बुनियादी सुविधा मात्र 10 फीसदी स्कूलों में उपलब्ध है. राज्य के हर क्लासरूम में 78-78 छात्र पढ़ते हैं और एक शिक्षक के जिम्मे हैं 43 छात्र. कायदे से 30 होने चाहिए.
अब ऐसी हालत में छात्रों से पास होने की उम्मीद भी की जाए तो कैसे? मात्र नकल कर के. पर वो तो आपने रोक दी. कहा जाता है कि कमी सुधारने से पहले जरूरी होता है कमी को जानना. बिहार में शिक्षा की हालत क्या है वह अब उजागर हो चुकी है. यह 35 प्रतिशत पास परसेंट ही हमारी हकीकत है. अब समय है इसे सुधारने का.file image (twitter)
शिक्षा में सुधार की तत्काल जरूरत
बिहार में कदाचार मुक्त परीक्षा इस बात का उदहारण है कि अगर सरकारी तंत्र में इच्छाशक्ति हो तो क्या कुछ हासिल किया जा सकता है. कई सरकारी योजनाओं के चलते राज्य में शिक्षा व्यवस्था में सुधार भी सबके सामने है. लड़कियों को साइकिल, यूनिफार्म, शौचालय और सेनेटरी पैड्स आदि योजनाओं के आने से स्कूलों में लड़कियों की मौजूदगी बढ़ी है. राज्य की साक्षरता दर भी तेजी से बढ़ रही है, खासतौर से महिलाओं की.
ऐसे में जहां एक ओर इतने छात्रों का फेल करना परेशान करता है, वहीं दूसरी ओर उम्मीद की किरण भी जगाता है कि सुधार के प्रयास शुरू हो गए हैं. व्यवस्था में बड़े स्तर पर सुधार में समय भी लगेगा और धन भी. कोशिशें जारी रहीं तो आने वाले वक्त में शिक्षा के मामले में बिहार में बहार लाने की उम्मीद तो की ही जा सकती है.